Sunday, August 11, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:२७|आत्मा-३|

क्रमश:
          आत्मा क्या है?यह जानने के लिए हमें अब स्थूल या अपरा को छोड़ कर परा यानि सूक्ष्म की तरफ ही देखना होगा| परमाणु व कौशिका से सूक्ष्म तरंगें व तरंगों से उत्पन्न उनका क्षेत्र है| इसलिए ,आइये,सबसे पहले तरंगों के बारे में जान लेते हैं|तरंगे तीन तरह की होती है--
(१)ध्वनि तरंगें-(SOUND WAVES)---
                           ये तरंगें पदार्थ तरंगे कहलाती है|एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन के लिए इन्हें किसी माध्यम की आवश्यकता होती है|जहाँ वायु मंडल भी नहीं होता , वहां ये तरंगे जा नहीं पाती है|यह सर्पाकार चलती है|इनकी गति लगभग ३३२ मीटर प्रति सैकिंड होती है|इन तरंगों में पदार्थ का चरित्र(Characteristics of Material)  होता है|
(२)प्रकाश तरंगें (LIGHT WAVES)---
                          ये तरंगें पदार्थ तरगें नहीं होती है|एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन के लिए इन्हें किसी तरह के माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है|ये तरंगे सीधी रेखा में चलती है|इनकी गति ३ लाख किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है अर्थात् ध्वनि से लगभग साढ़े आठ लाख गुणा अधिक|प्रकाश के अपने छोटे छोटे कण होते हैं,जिन्हें फोटोन कहते है|प्रकाश के साथ अगर ऊष्मा यानि गर्मी या अग्नि होती है तब वह ऊष्मा फोटोन पर सवार होकर फैलती है|फोटोन जब चलते हैं तब उनमे मात्र या भर महसूस होता है,लेकिन वास्तव में उनमे भर होता नहीं है,क्योंकि ये पदार्थ नहीं होते है|इन तरंगों में प्रकृति का चरित्र (Characteristics of Nature) होता है|
(३)चुम्बकीय तरंगें(MAGNETIC WAVES)---
                       ये तरंगें चुम्बकीय बल तरंगें होती है|इनको गमन के लिए किसी कण या पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती है|इनकी गति को मापा भी नहीं जा सकता यानि इनकी गति असीमित होती है|जहाँ ये तरंगे पैदा होती है वहां अपना एक क्षेत्र बना लेती हैऔर स्थिर हो जाती है|इस तरह का परम चुम्बकीय क्षेत्र पूरे अंतरिक्ष के असीमित क्षेत्र  में फैला हुआ है|इन तरंगों का आकार (- - - - - - - - - - )सत् और असत् में विभाजित होता है,यानि दो" है" के बीच एक" नहीं" है,अर्थात् एक रिक्तता है|ये गोलाकार(Circular) रूप में बढती है|गोलाकार में बढ़ने के कारण इन तरंगों का आकार बढता जरूर है परन्तु टूटता नहीं है,साथ में  रिक्तता वाली जगह भी बढती जाती है|
                      यह चुम्बकीय क्षेत्र भी दो प्रकार का होता है|प्रथम वह जो इस विशाल अंतरिक्ष(Space) के असीमित क्षेत्र में फैला हुआ है,जो न सत् है और न ही असत्|यह परा चुम्बकीय क्षेत्र (Micro magnetic field) शास्त्रों में परम ब्रह्म(Supreme Brain) नाम से कहा गया है|दूसरा चुम्बकीय क्षेत्र ,विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (Electra magnetic field)होता है ,जो प्रत्येक सजीव कौशिका(Living Cells) में होता है,शास्त्रों में इसे ब्रह्मा नाम से कहा गया है|आप इसे एक कौशिका का अपना ब्रह्म(Brain) कह सकते हैं|इसी तरह प्रत्येक उत्तक (Tissue)और अंग (Organ)का भी अपना एक ब्रह्म होता है|और इसी तरह शरीर का भी एक अपना स्वतन्त्र ब्रह्म होता है|जो ब्रह्मा कहलाता है|यह ब्रह्मा ही शरीर में चेतना(Consciousness) है|
                       इस प्रकार हमने तरंगों से जाना---पदार्थ(Material) को,प्रकृति(Nature) को और चेतना(Consciousness) को|पदार्थ यानि शिव,प्रकृति यानि विष्णु और चेतना यानि ब्रह्मा|ये सब इस परा चुम्बकीय क्षेत्र के कारण ही होता है|दूसरे शब्दों में कहूँ तो यह परम ब्रह्म(Supreme Brain)या परमात्मा  (Cosmic Consciousness) ही इस मिथ्या जगत का कारण स्वरुप (Cause and Effect)है|
              परम ब्रह्म (Supreme Brain) परमात्मा (Cosmic consciousness)
                                          परम ब्रह्म परमात्मा जो कि अव्यक्त (Invisible) है,अपने आप को व्यक्त (Visible) करने के लिए अपने आप को तीन भागों में विभक्त (Devide) किया|जो कि इसका स्वभाव है|ये तीन भाग निम्न प्रकार है---
                (१)पदार्थ /पुरूष     --          महेश(शिव)   --            तत्व          --Element/Material
                (२)प्रकृति            --           विष्णु            --           भाव           --Fact/nature
                (३)चेतना             --           ब्रह्मा              --           प्रभाव        --Effect/consciousness
         जब ये तीनो विभाग  आपस में भक्त/संयुक्त (joint)हुये तब ये एक व्यक्ति के रूप में व्यक्त किया अर्थात् मानव के रूप में व्यक्त किया|इस अव्यक्त जो कि परम ब्रह्म परमात्मा है,उसके विभक्त होने और पुनः भक्त या संयुक्त होने की प्रकिया बहुत ही जटिल है|जिसे विज्ञानं अब समझने की कोशिश कर रहा है,जबकि हमारे ऋषि मुनियों ने सहस्राब्दियों पहले ही खोज करके शास्त्रों में वर्णित कर दिया था|
                                 पुनर्जन्म को समझने के लिए आवश्यक है कि परम ब्रह्म परमात्मा से शुरू होकर मानव बनने तक की पूरी जटिल प्रक्रिया को समझा जाये ,तभी यह पुनर्जन्म की पहेली हल हो सकती है ,अन्यथा नहीं|
क्रमश:
                   || हरि शरणम् ||


                    

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