Thursday, March 23, 2017

गहना कर्मणो गतिः - 8

गहना कर्मणो गतिः – 8
                कर्म ही व्यक्ति को जीवन भर भ्रम में डालकर उलझाये रखते हैं | इस कर्म-जाल से निकलना इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि हम सभी कर्म करने को विवश है | ऐसे में मात्र एक ही रास्ता हमारे पास शेष रह जाता है कि हम कर्मों को भली भांति समझें, कर्मों की गति को समझें और फिर उसी अनुसार अपने कर्मों के स्वरुप में परिवर्तन करते हुए अपना उत्थान करें | इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है –‘गहना कर्मणो गतिः |’ (गीता-4/17) अर्थात कर्म की गति गहन है | कर्म की गति जानने से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि गति क्या है ? गति कैसे उत्पन्न होती है ? गति को बढ़ाने अथवा रोकने का क्या साधन है ? गति का क्या परिणाम है ? जैसा कि आप जानते हैं कि विज्ञान विषय से मेरा सम्बन्ध प्रारम्भ से ही है, इस कारण से ज्ञान को भी मैं विज्ञान की कसौटी पर परखता हूँ | इस कसौटी पर हमारे शास्त्र सदैव खरे उतरे हैं | अतः मेरा मानना है कि ज्ञान (Knowledge) जब साध्य (Executable) हो जाता है, वह विज्ञान (Science) कहलाने लगता है | दोनों में रत्तीभर का भी अंतर नहीं है | कथित प्रगतिवादी (Progressive) चाहे कितना भी दिग्भ्रमित करे, हमें उनके जाल में नहीं फंसना है | विज्ञान का आधार हमारे शास्त्रों में समाहित सनातन ज्ञान (Eternal knowledge) ही है, हमारे शास्त्र गुरु हैं और विज्ञान उनका आज्ञाकारी शिष्य | भला ! गुरु और शिष्य में कभी कोई मतभेद हो सकता है ?
        आइये ! सबसे पहले गति के बारे में विज्ञान क्या कहता है, यह जान लेते हैं | तत्पश्चात उस विज्ञान को हमारे ज्ञान से जोड़ते हुए कर्मों की गति की गहनता से परिचित होते हैं | जब हम विज्ञान से ज्ञान की तरफ बढ़ेंगे, तब हमें पता चलेगा कि आधुनिक विज्ञान से हमारे शास्त्र अभी भी बहुत आगे हैं | ज्ञान को कुछ सीमा तक साध्य बनाने के लिए अभी भी हमें कई शताब्दियाँ लग सकती है | सम्पूर्ण रूप से ज्ञान को विज्ञान बनाना लगभग असंभव है क्योंकि ज्ञान अनंत है और उसको पूर्ण रूप से जान लेना (Exploration) कठिन है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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