गहना कर्मणो गतिः – 12
अभी पिछली शताब्दी के अंत से वैज्ञानिक लगातार
कह रहे हैं कि आधारभूत इन चार बलों का भी पांचवां कोई एक कारण बल (Causal force) भी है, जिसका रहस्य अभी तक प्रकट नहीं हो सका है | मनुष्य की जिज्ञाषा का कोई
अंत नहीं है | मनुष्य विभिन्न प्रकार की जितनी भी खोज करता जा रहा है, उतने ही नित
नए प्रश्न उसके मन में उठते जा रहे हैं |
एक प्रश्न का उत्तर ढूंढ निकालता है, फिर दस नए प्रश्न सम्मुख आ खड़े होते हैं | इन
नए प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए वह फिर से हमारे सनातन ज्ञान की तरफ रूख करता
है | तो आइये ! अब हम भी अपने सनातन-ज्ञान
की ओर चलते हैं, जो केवल एक भौतिक पिंड की गति को ही स्पष्ट नहीं करता है बल्कि
कर्मों की गति को भी स्पष्ट करता है |
गति का सनातन-ज्ञान –
न्यूटन ने गति का प्रथम नियम दिया,
जिसे जड़त्व का नियम (Law of inertia) भी कहा जाता है | हमारे शास्त्र कहते हैं कि जडत्व (Inertia) को त्यागना आवश्यक है, नहीं तो व्यक्ति की प्रगति नहीं हो
सकती | विज्ञान गति (Motion) की बात करता है, शास्त्र प्रगति (Progress) की बात करते हैं | जड़ता
(Inertness) अथवा जडत्व (Inertia) है क्या ? स्थिति अथवा स्थान परिवर्तन के लिए लगाये जाने
वाले बल का प्रयेक पिंड अथवा प्राणी जो प्रतिरोध करता है, उस प्रतिरोध (Resistance) को ही जड़ता अथवा जडत्व कहा जाता है | स्थान अथवा स्थिति परिवर्तन के लिए
प्रतिरोध को त्यागना (Give up) आवश्यक है | यह प्रतिरोध इच्छा (Will) से अथवा जबरदस्ती (Forcefully) दूर किया जा सकता है | मनुष्य में जड़ता का त्याग उसकी स्वयं की इच्छा से ही हो
सकता है जबकि पिंड की जड़ता जबरदस्ती दूर की जाती है | आचार्य श्री गोविन्द राम
शर्मा कहते हैं कि ‘मनुष्य की जड़ता का त्याग बड़ा ही मुश्किल है | बिना जड़ता को
त्यागे आप भक्ति को उपलब्ध नहीं हो सकते | इस जडता को त्यागने में प्रमुख बाधा है -
मोह (Fascination) और अहंकार (Egotism)
| बिना अपना अहंकार त्यागे और परिवार अथवा
व्यापार से मोह हटाये इस जड़ता से बाहर निकलना संभव नहीं है | ऐसा वह व्यक्ति स्वयं
ही कर सकता है |’
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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