Saturday, March 18, 2017

गहना कर्मणो गतिः - 3

गहना कर्मणो गतिः -3
              जानना, मानना और परमात्मा का आश्रय लेना, इन तीनों के बारे में हम आगे कभी विस्तृत रूप से विचार करेंगे | अभी का मूल विषय है-“गहना कर्मणो गतिः” अर्थात कर्म की गति बड़ी गहन है | कर्म इस संसार-चक्र के केंद्र में है | कर्मों के कारण ही हमारा यह संसार है, चल रहा है और चलता रहेगा | जब तक हम कर्म करते रहेंगे, संसार को चलते रहने से कोई नहीं रोक सकता | कर्म को हमने पहले ही ‘गुण-कर्म विज्ञान’ में विस्तृत रूप से स्पष्ट कर दिया है | कर्म की गति ही संसार की गति है, बिना कर्म के संसार गतिहीन है | कभी कर्म के बिना इस जीवन की कल्पना करके देखिये, आपको अपना जीवन कितना नीरस नज़र आता है | अतः यह स्पष्ट है कि हमारे संसार के साथ साथ हमारे इस जीवन का आधार भी कर्म ही हैं | नहीं, केवल इस जीवन का ही आधार क्यों, कर्म तो हमारे प्रत्येक जन्म का आधार है, चाहे पूर्व के जन्म हों, यह जीवन हों अथवा मिलने वाले भावी जन्म हों |
            जन्म भी कर्म के प्रभाव से होता है और कर्म से ही हमारा जीवन आगे बढ़ता है | कर्म से ही एक जीवन समाप्त होता है और कर्म से ही फिर एक नया जीवन प्रारम्भ होता है | जानना, मानना, और शरणागत होना बाद की बातें है परन्तु करना अदि से अंत तक चलता रहता है | गीता में इसी सतत कुछ न कुछ करते रहने को भगवान् श्री कृष्ण स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि-
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: || गीता-3/5 ||
अर्थात निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षण मात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता; क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने को बाध्य किया जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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