गहना कर्मणो गतिः -13
भगवान श्री कृष्ण ‘कर्म से पलायन (Escape)’ के लिए गीता में इन्हीं दो को महत्वपूर्ण कारण बताते हैं उसी प्रकार मनुष्य
में जडता पैदा होने के मुख्य कारण भी यही दो हैं | न्यूटन कहते हैं कि पिंड के
स्थान परिवर्तन के लिए बाह्य बल की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार शास्त्र कहते
हैं कि जड़ता का त्याग करने के लिए भी बल आवश्यक हैं | एक बार आपका अपना बल सक्रिय
होकर जब कर्मों के स्वरुप को परिवर्तित कर देता है तब वह बल मनुष्य को प्रगति की
राह पर डाल देता है, तब उसकी प्रगति सतत होती रहती है |
गति
का दूसरा नियम कहता है कि संवेग (Acceleration) लगाये गए बल के समानुपाती
और पिंड के भार या मात्रा के विलोमानुपाती
होता है | सनातन-ज्ञान (Eternal
knowledge) भी कहता है कि प्रगति का संवेग भी हमारे द्वारा
लगाये गए बल के समानुपाती और कर्म-बंधन (कर्म-भार), मोह, अहंकार आदि विकारों के
विलोमानुपाती होता है | सकाम कर्म बंधन पैदा करता है, जो कि प्रगति के लिए एक अवरोधक
(Barrier) का कार्य करता है जिससे व्यक्ति की प्रगति का संवेग मद्धम (Slow) पड़कर प्रगति को रोक भी सकता है |
न्यूटन की गति का तीसरा नियम कहता है कि प्रत्येक क्रिया (Action) की समान रूप से और उसी अनुपात में प्रतिक्रिया (Reaction) होती है | हमारे
शास्त्र कहते हैं कि जैसे आप कर्म करेंगे, उसी अनुरूप आपको फल भी मिलेंगे | यह
कर्म की गति है, जिसके अनुसार नया जन्म पाकर उसी की प्रतिक्रिया स्वरुप उसी
तीव्रता के साथ आपको नए कर्म करने को बाध्य होना पड़ता है | भौतिक संसार में जैसे
क्रिया की प्रतिक्रिया होती है उसी प्रकार कर्म संसार में भी प्रत्येक कर्म का
प्रतिकर्म होता है, जो इस जन्म में अपना प्रभाव न दिखाकर नए जन्म में अपना प्रभाव
दिखता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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