गहना कर्मणो गति: -1
अभी कुछ दिनों पहले ही हमने गुण-कर्म
विज्ञान का विश्लेषण किया था | श्री मद्भगवद्गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कर्म
पर सबसे अधिक जोर दिया है | कर्म का वर्णन करते करते वे ज्ञान विषय पर आते हैं और
फिर भक्ति को स्पष्ट करते हुए अंत में शरणागति के साथ इस गीता ज्ञान का समापन करते
हैं | अगर देखा जाये तो मनुष्य के जीवन की चारों अवस्थाओं की तरह ही यह विश्लेषण किया
गया होगा, ऐसा समझा जा सकता है | बाल्यकाल से युवावस्था और फिर पूर्वार्ध तक की
स्थिति को प्राप्त होते होते व्यक्ति कर्म और ज्ञान को लेकर ही संशयग्रस्त रहता है
| वह यह नहीं समझ पाता है कि जीवन में ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है अथवा कर्म | जब वह
अपने जीवन के उतरार्ध के प्रवेश द्वार पर दस्तक दे रहा होता है, तब उसे परमात्मा याद
आते हैं और वह कर्म व ज्ञान से आगे बढ़ते हुए भक्ति-मार्ग को प्राथमिकता दे रहा लगता
है | जीवन और संसार की कामनाओं के कारण वह सदैव ही मोहग्रस्त रहता है और
भक्ति-मार्ग भी उसे कठिनाइयों भरा नज़र आने लगता है | वास्तव में इसे जीवन की एक विडंबना
ही कहा जा सकता है कि मनुष्य अपने जीवन को कोडियों के मोल पर गँवा रहा है |
सांसारिक मोह और अपूरणीय कामनाएं उसे जीवन के
वास्तविक पथ से भटका ही देती है | हजारों में कोई एक व्यक्ति तो इस पथ पर आगे बढ़ने
की सोचता है परन्तु बहुधा व्यक्ति तो कर्म के नाम पर सकाम कर्मों और और ज्ञान के
नाम पर अज्ञान का कूड़ा-करकट एकत्रित करते रहते हैं | न उसे कर्म का पता है और न
ज्ञान का | आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि भक्ति मार्ग पर चलने के लिए
न तो कुछ जानने की आवश्यकता है और न ही कुछ करने की | आवश्यकता है केवल मानने की |
परन्तु मानना इतना सरल होता तो मनुष्य कभी का संसार सागर से पार होकर मुक्त हो गया
होता | ‘करना, जानना और मानना’, ये तीन बातें ही गीता में प्रमुखता से स्पष्ट की
गयी है | जब व्यक्ति तीनों ही बातों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकता तो अंत में
चौथी बात अर्थात शरणागति ही बचती है, जिसे अंगीकार कर वह शांति को प्राप्त हो सकता
है | यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ कि अगर व्यक्ति इन चारों में से किसी भी एक मार्ग
का ह्रदय से अनुसरण कर ले तो इन चारों को प्राप्त करते हुए वह शांति को प्राप्त
होकर मुक्त हो सकता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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