गहना कर्मणो गतिः – 10
भौतिक गति का विज्ञान
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आदिमानव से आज के सुसभ्य मानव तक
की यात्रा में गति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | एक प्रश्न बार-बार उठता है कि
ऐसा कौन सा आविष्कार हुआ जिसने विज्ञान की गति को पंख लगा दिए | प्रारम्भ से आज तक
की विज्ञान की यात्रा पर दृष्टि डालें तो केवल एक ही आविष्कार नज़र आता है और वह आविष्कार
हुआ था - पहिये का | पहिया ही एक मात्र वह आविष्कार था, जो प्रकृति के द्वारा दिए गए
उपहारों से थोड़ा भिन्न था | पहिया ही वह मानवकृत प्रथम उपकरण था, जिसने मनुष्य की दशा
और दिशा दोनों ही बदल दी | पहिया प्रथम और अतिप्राचीन उपकरण होने के बाद भी आज भी
हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण बना हुआ है | पहिये ने ही भौतिक अस्तित्व को
गति प्रदान की |
आधुनिक युग के महान वैज्ञानिक न्यूटन ने इस गति के तीन नियम प्रस्तुत किये |
जो इस प्रकार हैं –
गति का प्रथम नियम – अगर कोई वस्तु स्थिर है तो
स्थिर ही रहेगी और अगर गतिमान है तो गतिमान ही बनी रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य
बल नहीं लगाया जाये | इसे जडत्व का नियम (Law of inertia) भी कहते हैं |
गति का दूसरा नियम – किसी भी पिंड की संवेग (Acceleration) परिवर्तन की दर उस पिंड/वस्तु पर लगाये गए बल के समानुपाती (Directly proportional) और वस्तु की मात्रा अर्थात भार के विलोमानुपाती (Inversely
proportional) होती है | संवेग परिवर्तन
की दिशा भी वही होती है, जिस दिशा में बल लगाया गया है |
गति का तीसरा नियम – प्रत्येक क्रिया के विरुद्ध
उसी अनुपात में उसकी प्रतिक्रिया अवश्य होती है |
यहाँ पर न्यूटन के नाम को गति के नियम
के साथ जोड़ने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि मैं यह कहना चाहता हूँ कि उन्होंने ही ये
नियम बनाये हैं | न तो उन्होंने यह नियम बनाये हैं और न ही ऐसा है कि उनसे पहले
गति बिना नियम के होती थी | आधुनिक विज्ञान में न्यूटन ही पहले व्यक्ति हैं
जिन्होंने प्रकृति के इस नियम को जान और समझकर संसार के समक्ष प्रतिपादित किया है
| गति के नियम तो शाश्वत हैं | संसार में जितनी भी व्यवस्था परमात्मा ने सृष्टि के
उद्भव काल में की है, वह एक नियमबद्ध व्यवस्था हैं | सृष्टि में कएक भी कार्य बिना
नियम के नहीं होता है | आदिकाल में भारतीय ऋषियों ने भी गति के नियम का पता लगाकर
शास्त्रों में वर्णित किया है | ऋषियों के गति के नियम और न्यूटन के गति के नियम
में केवल मात्र अंतर इतना ही है कि न्यूटन ने इनको व्यवस्थित तरीके से व्यक्त कर,
इसका एक निश्चित सूत्र दिया है | यहाँ गति के नियमों का वर्णन करना इसलिए आवश्यक
है क्योंकि जो बात मैं कर्मों की गति के बारे में कहने जा रहा हूँ, वह इन नियमों
को पुष्ट करेगी |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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