Tuesday, March 14, 2017

चुम्बक बनाम गुरु-1

आपने चुम्बक (Magnet) तो देखा ही होगा | चुम्बक की एक विशेषता होती है कि वह अपने प्रभाव क्षेत्र का निर्माण करता है, उस प्रभाव क्षेत्र को चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic field) कहा जाता है | इस चुम्बक और उसके प्रभाव क्षेत्र के संपर्क में किसी भी लौह वस्तु (Iron object) के आने पर तीन परिस्थितियां बन सकती है | प्रथम स्थिति में इस चुम्बकीय क्षेत्र में जो भी लोहे की वस्तु प्रवेश करती है अथवा ले जाई जाती है, वह तुरंत ही उस चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से चुम्बक की तरह व्यवहार (Behave) करने लग जाती है | ज्योंही वह चुम्बक बनी लौह वस्तु उस चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर निकल जाती है तत्काल ही वह लौह बन जाती है | जितना अधिक प्रभावशाली (Powerful) चुम्बक होता है, उसका प्रभाव क्षेत्र उतना ही अधिक व्यापक होता है | दूसरी स्थिति में जब कोई लौह वस्तु किसी चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश कर उस चुम्बक से छू (Touch) जाती है और कुछ समय बाद उससे अलग होकर उसके चुम्बकीय क्षेत्र से भी बाहर निकल जाती है, तो भी वह चुम्बक ही बनी रहती है | हालाँकि वह एक हल्का चुम्बक (Low intensity magnet) बनती है और अपना एक अलग ही चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र का निर्माण कर भी लेती है | तीसरी और अंतिम स्थिति में चुम्बक से छूई उस लौह वस्तु पर अगर उस चुम्बक को सतत एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर घिसा जाये तो वह लौह वस्तु भी लगभग उतने ही प्रभाव वाला चुम्बक बन जाती है |
          यही स्थिति गुरु और शिष्य के संपर्क से बनती है | केवल मठ अथवा आश्रम के परिक्षेत्र (Area) में जाकर वापिस निकल आने से क्षणिक और अस्थाई रूप से लाभान्वित हुआ जा सकता है | गुरु को केवल छूकर, उनसे आशीर्वाद लेकर अथवा कुछ समय के लिए सत्संग कर आप ज्ञानी होने का दम्भ भर सकते हैं, परन्तु गुरु की तरह पारंगत नहीं हो सकते | गुरु के पास रहकर सतत अभ्यास करने से ही गुरु जैसी स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है | गुरु आपकी तब तक घिसाईं करता रहता है, जब तक आप उसकी स्थिति के आस-पास तक नहीं पहुँच जाओ | सत्य ही कहा जाता है कि-
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़-गढ़ काढ़े खोट |
अन्दर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट ||
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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