सहज-योग
सगुण मार्ग में अटकने की और निर्गुण मार्ग में भटकने की संभावना रहती है।सगुण मार्गी प्रायः मंत्र पर,पूजा स्थल,धर्मग्रंथ आदि पर आकर अटक जाते हैं।लेकिन निर्गुण में तो निराकार होता है,वहां पकड़ने के लिए कुछ नहीं होता,वहां अटकना नहीं होता बल्कि भटकना हो सकता है ।निर्गुण निराकार की साधना भटकाव का कारण बन सकती है।
सहज योग इन दोनों के बीच मौज में,आत्मसफूर्त होकर जीने का नाम है।सहज योग यानि अपने स्वभाव में जीना।अपने स्वभाव में स्थित होना बड़ा कठिन है क्योंकि हम अपने स्वभाव से पहले ही बहुत दूर निकल आये हैं।सहज योग को कबीर ने गोविंद से मिलन का मार्ग बताया है।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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