Monday, February 13, 2023

कीर्तन

 कीर्तन 

मुक्त होने के लिए इनमें से किसी एक का होना आवश्यक है -प्रथम संसार से विमुखता और द्वितीय परमात्मा के सम्मुख होना।इन दोनों में से किसी एक कार्य को अपनाते ही दूसरा कार्य स्वतः ही मूर्तरूप लेने लगता है। संसार से विमुख होने के लिए प्रयास करना पड़ता है जिसमें शक्ति का व्यय होता है।इसके लिए सांसारिक सुख की इच्छा का त्याग करना पड़ता है।जबकि परमात्मा के सम्मुख होने के लिए आपकी इच्छा ही पर्याप्त है,जिसके लिए किसी प्रकार का श्रम करना नहीं पड़ता है।

         परमात्मा के सम्मुख होने के लिए नाम-संकीर्तन अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भावपूर्ण संकीर्तन आपको परमात्मा के निकट ले जाता है, जिससे संसार से दूरी स्वतः ही बढ़ने लगती है। चैतन्य महाप्रभु तो कीर्तन करते हुए तल्लीन होकर नाचने तक लगते थे, अपनी सुध-बुध तक खो बैठते थे।

      कलियुग में कीर्तन को मुक्ति का सुगम और सर्वोत्तम साधन बताया है। इस साधन को किसी भी श्रेणी और वर्ण का व्यक्ति अपना सकता है। परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करना है तो बिना और देरी किये भावपूर्ण नाम संकीर्तन  में डूब जाइए,समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।

प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरि:शरणम्।।

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