वर्ण और स्वाभाविक कर्म -कल से आगे
एक क्षत्रिय के स्वाभविक कर्म क्या हैं, अर्जुन को स्पष्ट करते हुए भगवान कह रहे हैं-
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।गीता -18/43।।
शूरवीरता,तेज,धैर्य,प्रजा का संचालन,युद्ध में पीठ न दिखाना,दान करना और शासन करना, ये एक क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।
अर्जुन एक क्षत्रिय वर्ण का था।जब वह युद्धभूमि से पलायन करने जा रहा था,तो भगवान ने कहा था कि आज तू मेरी बात न सुनकर युद्ध से भाग रहा है परंतु एक दिन तेरा स्वभाव तुम्हें युद्धभूमि में खींच लाएगा। युद्ध से बढ़कर एक क्षत्रिय के लिए कोई अन्य कार्य है ही नहीं।युद्ध उसके लिए स्वर्गदायी और कीर्ति को देने वाला है।
वैश्य और शूद्र वर्ण के मनुष्यों के कर्तव्य कर्म क्या हैं ? भगवान कह रहे हैं -
कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् |
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यपि स्वभावजम् ||गीता-18/ 44||
वैश्यों के गुण वाले लोगों के लिए कृषि, दूध डेयरी और वाणिज्य स्वाभाविक कार्य हैं। शूद्रों के गुणों वाले लोगों के लिए अपने शरीर से काम करते हुए सेवा करना स्वाभाविक कर्तव्य है।यही कारण है कि वैश्य वर्ण का व्यक्ति व्यापार में सफलता प्राप्त करता है और शूद्र वर्ण के व्यक्ति सेवा के माध्यम से समाज में प्रतिष्ठा पाते हैं।जिस दिन शूद्र अपने सेवा भाव से विमुख हो जाएंगे, कर्मचारी मिलने मुश्किल हो जाएंगे। आज अमेरिका में सेवा के लिए कर्मचारी मिलने असम्भव होते जा रहे हैं।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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