Friday, February 24, 2023

वर्ण-भेद

 वर्ण-भेद

      गुण और कर्मों के आधार पर शरीर का वर्ण निश्चित होता है और प्राणी का स्वभाव भी इन गुण और कर्मों से निश्चित होता है। इसका अर्थ हुआ कि प्रत्येक प्राणी के भावी जन्म सदैव एक ही वर्ण में होना आवश्यक नहीं है।साथ ही यह भी निश्चित है कि वर्ण प्रकृति के अंतर्गत ही है क्योंकि गुण और कर्मों के आधार पर मिला यह शरीर भी प्रकृति का ही भाग है।

        प्रकृति में कोई भी दो वस्तुएं, व्यक्ति अथवा प्राणी एक समान नहीं हो सकते।इसका कारण है कि प्रकृति असत है।असत इसलिए कि यह स्थिर नहीं है और जो अस्थिर है, वह कभी सत्य नहीं हो सकता। "पल में तोला पल में माशा" की बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि यह असत है, जो प्रतिपल बदल रहा है।

     शरीर, गुण, कर्म, स्वभाव आदि सभी प्रकृति के अंतर्गत है।इसीलिए ये असत हैं और असत्य होने के कारण इनमें भेद होना अवश्यम्भावी है। वर्ण का आधार भी गुण,कर्म, स्वभाव आदि हैं इसलिए ही भगवान ने मनुष्यों  के चार वर्ण बनाये हैं। इस भेद को किसी भी प्रकार मिटाया नहीं जा सकता क्योंकि ये भिन्नता स्वभाव पर आधारित है और स्वभाव को लाख प्रयास करके भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता।

     वर्ण में परिवर्तन लाना है तो व्यक्ति को अपने स्वभावानुसार आचरण करते हुए कर्मों को सुधारना होगा। कर्म गुणों की अवस्था को परिवर्तित करते हैं और ये गुण ही संस्कार बनाते हैं। संस्कार से नए जीवन में वर्ण और स्वभाव बनता है।

     वर्ण भिन्न भिन्न भले ही हों परंतु इन वर्णों में क्या कोई समानता भी है ? इसी बात पर कल चर्चा करेंगे -'वर्ण-अभेद' में।

प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरि:शरणम्।।

No comments:

Post a Comment