नर्तकी - माया
भगवान ने माया बनाई, अनासक्त भाव से आनंद लेने के लिए और उसमें आसक्त होकर उलझ गया मनुष्य। माया में आसक्त मनुष्य को माया बहुत नचाती है। इसीलिए माया को नर्तकी भी कहा जाता है।अगर हम माया के आकर्षण में फंसकर उसमें आसक्त न हो तो यह नर्तकी हमें नहीं नचा सकती।उसके आकर्षण से कोई विरला ही बच सकता है अन्यथा इस कलियुग में तो चारों और मनुष्य इसके जाल में फंसकर नृत्य ही कर रहे हैं ।
नर्तकी के अक्षरों को उल्टा पढ़ें तो कीर्तन शब्द बनता है। नाम संकीर्तन ही इस युग में माया के जाल से हमें मुक्ति दिला सकता है। शुकदेवजी महाराज भागवतजी में परीक्षित को यही कह रहे हैं-
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत् ।।
।। भागवत-12/3/51।।
यों तो कलियुग दोषों का खजाना है, परंतु इसमें एक बहुत बड़ा गुण भी है।वह गुण यह है कि कलियुग में केवल भगवान श्रीकृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियां छूट जाती है और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।
इसलिए नर्तकी से बचने के लिए आइए ! नाम संकीर्तन करें।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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