परधर्मो भयावहः
बचपन में स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम के अंतर्गत एक कहानी पढ़ी थी - रंगा सियार। जिसमें एक सियार भोजन की खोज में गांव में घुस आता है।वह एक रंगरेज के घर में एक ड्रम में, जिसमें रंग का मिश्रण भरा होता है, गिर जाता है। बड़ी मुश्किल से वह उस ड्रम से बाहर निकल पाता है, तब तक सुबह हो जाती है। वह जंगल की ओर चल पड़ता है। उस रंगीन सियार को देखकर सभी जानवर डरते हैं, यहां तक कि जंगल का राजा शेर भी।
सभी जानवरों को भयग्रस्त देखकर उसने जंगल का राजा बनने के लिए एक युक्ति निकाली। उसने सभी डरे हुए जानवरों से कहा कि भगवान ने उसे आप सभी पर शासन करने भेजा है। पहले से डरे सभी जानवरों ने उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया।राजा बनते हुए उसने अपनी पोल खुल जाने के डर से सभी सियारों को जंगल-निकाला दे दिया। बेचारे सियार क्या करते ? उस जंगल से निकल कर बाहर इधर उधर भटकने लगे।
सियारों को लगा कि है तो यह हमारे जैसा ही, परंतु इस प्रकार इसका रंग-ढंग कैसे बदल गया? एक वृद्ध सियार ने कहा कि अगर यह हमारी बिरादरी का ही है, तो अपना स्वभाव नहीं बदल सकता।यह सोचकर सभी सियार "हू-हू" एक साथ करने लगे। थोड़ी देर तो रंगा सियार ने स्वयं पर नियंत्रण रखा।अंततः उसका सब्र जवाब दे गया और वह भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर 'हू-हू' करने लगा। जंगल के अपदस्थ राजा शेर के सामने उसकी पोल खुल गयी। उस शेर ने तत्काल ही सियार का काम तमाम कर दिया।
इस कहानी का संदेश है कि अपने स्वभाव के अनुसार ही चलें, दूसरे के स्वभाव के अनुसार चलने में हानि ही है। गीता में भगवान ने कहा है -"परधर्मो भयावहः। दूसरे का धर्म भले ही कितना ही अच्छा प्रतीत हो रहा हो, व्यक्ति को स्वधर्म का ही पालन करना चाहिए।"स्वभाव से ही स्वधर्म का पालन होता है।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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