वर्ण -कल से आगे
संसार में कम से कम दो वर्ण सदैव ही रहे हैं।रंग के आधार पर अथवा धन के आधार पर।काला और गोरा तथा धनी और निर्धन।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में इन दोनों अर्थात रंग और सम्पति के आधार पर कभी भेदभाव नहीं किया गया।यहां काने कुबड़े भी सम्मान पाते थे और निर्धन भी इसके अधिकारी थे।
जब इस पावन भूमि पर भेदभाव कभी नहीं रहा तो फिर आज उस पर सर्वाधिक भेदभाव रखने वाला देश होने का आरोप क्यों मढ़ा जा रहा है? मेरे मत में इसके लिए आधुनिक शासन व्यवस्था अधिक जिम्मेदार है। भारत में जबसे विदेशी आक्रांताओं ने शासन संभाला था, तब से लेकर आज स्वतंत्रता पश्चात स्थापित हुई लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सभी वर्णों में आपसी मतभेद पैदा कर उस भेदभाव को आगे बढ़ाने का ही कार्य किया है।जिस समाज के सभी वर्ग आपस में अपने अपने स्वभावानुसार कार्य कर रहे थे, उनको एक दूसरे के विरुद्ध भड़काया गया । आज इस प्रकार का उकसाया जाना अपने चरम पर है।
अपने स्वार्थवश कुछ लोगों ने वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में बदल दिया था।जाति व्यवस्था के अनुसार जो जिस वर्ण में पैदा हुआ है,वह उसकी जाति हो जाती है। ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण ही होता है, चाहे उसके कर्म वैश्य या शूद्र के से हों।आज ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ कोई भी परशुराम क्षत्रिय नहीं कहलाता और न ही क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ कोई विश्वामित्र ब्राह्मण बन सकता है।
इस देश में जाति व्यवस्था कभी रही नहीं, केवल वर्ण व्यवस्था ही थी।वर्ण व्यवस्था का होना कोई लज्जा की बात नहीं है। सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने के लिए हमें इसी वर्ण व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना होगा, तभी समाज में शांति स्थापित हो सकेगी।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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