एकोहं बहुस्यामः
छान्दोग्योपनिषद् कहती है मैं एक हूँ और अनेकों रूपों में प्रकट हुआ है | इसी प्रकार भागवत में ब्रह्माजी विराट्स्वरुप की विभूतियों का वर्णन करते हुए कहते हैं -
स एषः आद्यः पुरुषः कल्पे कल्पे सृजत्यजः |
आत्माssत्मन्यात्मनाssत्मानं संयच्छति च पाति च ||भागवत-2/6/38||
अर्थात वे अजन्मा और पुरुषोत्तम है | प्रत्येक कल्प में वे स्वयं अपने आपमें अपने आप की सृष्टि करते हैं, रक्षा करते हैं और संहार कर लेते हैं |
भगवान एक अनुभूति है। भगवान अभी यहां है, यहां ही क्यों वे तो सर्वत्र हैं,सब समय हैं।जब सब कुछ वे ही हैं तो फिर क्या तो किसी से लेना और क्या किसी से मांगना ? 'योगक्षेमं वहाम्यहम्।' वे मेरे हैं और मैं उनका हूँ।यही भगवान के साथ अपनापन है।इसलिए जीवन में कभी भी उन्हें अपनी स्मृति से बाहर न होने दें।
प्रस्तुति –डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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