वर्ण-व्यवस्था
वर्ण व्यवस्था का आगमन कैसे हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मनुष्य के शरीर के निर्माण को जानना होगा। प्रत्येक शरीर का निर्माण प्रकृति के माध्यम से होता है।परमात्मा को पिता और प्रकृति को माता कहा गया है।गीता में भगवान स्पष्ट करते हुए कहते हैं-मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचारम्।(9/10).
फिर आगे भगवान कहते हैं-
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।
तासां ब्रह्म महदयोनिरहं बीजप्रदः पिता।।
-गीता-14/4
अर्थात है कुन्तीनन्दन !सम्पूर्ण प्राणियों के जितने शरीर पैदा होते हैं, मूल प्रकृति तो उन सबकी माता है और मैं बीज स्थापन करने वाला पिता हूँ।
जब सभी मनुष्यों के साथ ऐसा ही है और मनुष्यों के शरीरों में किसी प्रकार का भेद नहीं है तो फिर उनको अलग अलग वर्णों में क्यों बांटा गया ? इसके लिए मनुष्य के द्वारा किये जाने वाले कर्म है जोकि शरीर में उपस्थित प्रकृति के तीनों गुणों के संतुलन को बिगाड़ देते हैं। किसी मनुष्य में सात्विक गुण बढ़ जाता है तो किसी मे राजसिक अथवा तामसिक।इसी गुणों के कारण संस्कार अच्छे अथवा खराब बनते हैं जो फिर आगे जाकर मनुष्य का स्वभाव बनाते हैं। स्वभाव के अनुसार ही मनुष्य को उसी वर्ण में जन्म मिलता है, जिसका वह अधिकारी होता है।
शेष कल
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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