Sunday, February 26, 2023

वर्ण और स्वाभाविक कर्म

 वर्ण और स्वाभाविक कर्म

       वर्ण व्यवस्था का एकमात्र आधार पूर्व मानव जीवन में किए गए कर्म हैं, जिनसे हमारा इस जीवन का स्वभाव बना है।किस वर्ण का उसके जीवन में कैसा स्वभाव होगा, उनके कर्म कैसे होंगे, इसका श्री कृष्ण ने गीता में वर्णन किया है।वे कहते हैं -

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप |

कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणै: || गीता -18/41||

ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों के कर्तव्यों को उनके गुणों के अनुसार, उनके गुणों के अनुसार बांटा गया है।

          स्वाभाविक कर्म मनुष्य के द्वारा किए ही जायेंगे । उन कर्मों को देखकर आप उस मनुष्य का वर्ण पता कर सकते हैं।ब्राह्मण वर्ण में जन्मे मनुष्य के स्वाभाविक कर्म कौन कौन से हैं, भगवान बतला रहे हैं -

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।

ज्ञानँ विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।गीता -18/42।।

मन का निग्रह करना,इंद्रियों को वश में करना,धर्म पालन के लिए कष्ट सहना, बाहर भीतर की शुद्धि,क्षमा करना, सरलता, वेदाध्ययन, यज्ञ करना और परमात्मा में श्रद्धा रखना, ये नौ ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं।

        अगर कोई व्यक्ति इन कर्मों को नहीं कर रहा है, तो समझ लीजिए उसके ब्राह्मण वर्ण का होने में संदेह है।कम से कम बाहर भीतर की शुद्धि, क्षमाशील होना और परमात्मा में विश्वास रखना तो बाहर से भी देखकर अनुभव में आ जाएगा।

शेष कल 

प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरि:शरणम्।।

No comments:

Post a Comment