Saturday, February 25, 2023

वर्ण - अभेद

 वर्ण-अभेद

         वर्ण भले ही चार हों उनमें जो भी भिन्नता दिखलाई देती है,वह सब असत है।असत इसलिए क्योंकि वर्ण व्यवस्था संसार की व्यवस्था है । अभेद केवल एक ही स्तर पर है -भीतरी स्तर पर। सभी वर्ण के मनुष्यों के भीतर परमात्मा निवास करते हैं। इसीलिए भगवान ने गीता में कहा है -

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5/18।।

      जिनके आत्माका अज्ञान ज्ञान द्वारा नष्ट हो चुका है वे पण्डितजन परमार्थतत्त्वको कैसे देखते हैं ? भगवान कहते हैं कि विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण में अर्थात् विद्या आत्मबोध और विनय उपरामता इन दोनों गुणोंसे सम्पन्न जो विद्वान् और विनीत ब्राह्मण है उस ब्राह्मण में, गौ में हाथी में, कुत्ते और चाण्डाल में भी पण्डितजन समभाव से देखते हैं । 

       सभी में परमात्मा को समभाव से देखना तो उचित है परंतु सब के साथ व्यवहार समान रूप से नहीं किया जा सकता।व्यवहार में भिन्नता रखने को ही वर्ण के कारण भेदभाव रखना बताया जाता है, जोकि उचित नहीं है। कार्यालय में विभागाध्यक्ष और कर्मचारियों आदि को समभाव से तो देखा जा सकता है परंतु इन सब के साथ व्यवहार अलग अलग प्रकार से किया जाता है।

        इस प्रकार स्पष्ट है कि वर्ण व्यवस्था में भिन्नता व्यवहार के स्तर पर होना उचित है परंतु सबको समभाव से देखना वर्ण-अभेद है। भिन्न व्यवहार करने को भेदभाव नहीं कहा जा सकता।

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।।हरि:शरणम्।।

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