वर्ण
संस्कार से ही वर्ण और स्वभाव निश्चित होता है। वर्ण क्या है ? वर्ण का अर्थ है - बनावट,रंग अथवा विशेषता। जिस वर्ण की हम यहां चर्चा करेंगे उसका आशय विशेषता से है अर्थात व्यक्ति के गुण और कर्मों के आधार पर उसमें जो विशेषता आई है, उस विशेषता के आधार पर भिन्न भिन्न वर्ण बना देना।जैसे इंद्रधनुष में प्रकाश सात वर्णों में प्रकट हो जाता है, जबकि प्रकाश का कोई वर्ण नहीं होता।इस प्रकार बने विभागों में आपस में भेद हो जाता है।वास्तव में देखा जाए तो सभी वर्णों का मूल एक ही है और भेद केवल दिखालाई पड़ता है, होता नहीं है।
संसार में रंग के आधार पर बहुत भेदभाव होता है यहां तक कि कथित विकसित देश अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। वहां काले लोगों पर बहुत अत्याचार होते हैं ।आये दिन रेड इंडियन्स पर पुलिस अत्याचार की खबरें सुनने को मिल जाती है।ऐसे सभी देश भारत को विकाशशील देश कहते हुए उसे भेदभाव में सबसे आगे बतलाते हैं।हमारे यहां जितना कम भेदभाव है, उतना कम भेदभाव संसार में कहीं नहीं है।
भारत में भी जो भेदभाव दृष्टिगोचर हो रहा है उसका एकमात्र कारण है, व्यक्ति का अपने स्वभावानुसार आचरण न करना।वैदिक काल में यहां प्रत्येक मनुष्य अपने वर्ण और आश्रम व्यवस्था के अनुसार आचरण करता था।इस कारण से किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता था। आज सभी स्वयं के वर्ण के अनुसार आचरण न कर दूसरे के वर्ण के अनुसार आचरण करना चाहते हैं, उसी से समाज में अव्यवस्था पैदा हो गई है। यही अव्यवस्था समाज में भेदभाव का कारण बनती है।
शेष कल
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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