स्वभाव
प्रत्येक प्राणी का स्वभाव जन्मजात होता है। पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर बने संस्कार ही नए जन्म में स्वभाव के रूप में प्रकट होते हैं। स्वभाव के अनुसार ही मनुष्य को उसी प्रकार के वर्ण (ब्राह्मण आदि) के परिवार में जन्म मिलता है।
व्याघ्रः सेवति काननं च गहनं सिंहो गुहां सेवते
हंसः सेवति पद्मिनीं कुसुमितां गृधः श्मशानस्थलीम् ।
साधुः सेवति साधुमेव सततं नीचोऽपि नीचं जनम्
या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते ॥
शेर गहरे जंगल में और सिंह गुफा में रहता है; हंस विकसित कमलिनी के पास रहना पसंद करता है, गिद्ध को शमशान अच्छा लगता है । वैसे ही साधु, साधु की और नीच पुरुष नीच की संगति करता है; यानि कि जन्मजात स्वभाव किसी से छूटता नहीं है ।
शेष कल
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
No comments:
Post a Comment