Monday, October 7, 2013

पुनर्जन्म से मुक्ति अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति |-१४

क्रमश:१४ 

कर्म-मार्ग यानि कर्म-योग -क्रमश:

                                 कर्म मार्ग में निष्काम कर्म,परमात्मा के निमित्त कर्म और कर्मफल का त्याग ये तीन विकल्प हैं |विचारणीय विषय यही है कि उपरोक्त तीनो विकल्पों में से कौन सा विकल्प सबसे सुगम है |मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह प्रत्येक कार्य में सरलता और सुगमता देखता है |कर्तापन एक ऐसा भाव है जो कितना भी ज्ञानी और विवेकशील व्यक्ति हो छूटना मुश्किल है ,साधारण व्यक्ति की तो बात ही छोड़ दें |निष्काम कर्म सबसे कठिन विकल्प माना जाता है,क्योंकि बिना किसी कामना के कर्म करना आज के इस भौतिक युग में असंभव ही है | यह विकल्प तो कोई सिद्ध पुरुष ही अपना सकता है ,अन्य के लिए यह सरल और सुगम विकल्प बिलकुल भी नहीं है |गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                               अनन्याश्चिन्तयन्तो  माँ  ये जनाः पर्युपासते |
                                               तेषां नित्याभिययुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् || गीता ९/२२ ||
   अर्थात्,जो अनन्यप्रेमी भक्त मुझ परमेश्वर का निरंतर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं अर्थात निष्कर्मता को प्राप्त होकर कर्म करते हैं उस पुरुष का योगक्षेम मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ |
                                         योगक्षेम का अर्थ होता है अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त किये हुए की रक्षा |यहाँ परमात्मा स्पष्ट करते है कि जो व्यक्ति निष्काम कर्म करता है ,उसकी समस्त जिम्मेवारी मेरी होती है|उसको जो भी प्राप्त नहीं हुआ है वह सब मैं प्रदान करता हूँ और जो उसको प्राप्त हो जाता है उस प्राप्ति की मैं स्वयं रक्षा करता  हूँ |आश्चर्य की बात है कि इससे अधिक स्पष्ट निष्काम कर्म के सम्बन्ध में परमात्मा नहीं कह सकते,फिर भी इस संसार में सांसारिक लोगों को उनकी बात पर तनिक भी विश्वास नहीं है |तभी तो अपने जीवनकाल में सब कार्य  वह स्वयं ही कर सकता है ,यही मानता है |इस कारण से परमात्मा प्राप्ति की तरफ उसकी यात्रा संभव नहीं हो पाती है |इसीलिए निष्काम कर्म के विकल्प का चयन करना आम व्यक्ति के लिए असंभव है |
                                            दूसरा विकल्प है कि मनुष्य जो भी कर्म करे वह सब परमात्मा के निमित्त करे अर्थात् परमात्मा के लिए करे |इससे कर्ताभाव समाप्त हो जाता है |जैसे बच्चों का लालन पालन करना,वृद्ध माता-पिता की सेवा करना ,समाज सेवा करना ,असहाय व्यक्तियों की सहायता करना,प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखते हुए उनकी सहायता करना आदि |आधुनिक युग एक आपा-धापी का युग है|इस युग में किसी के पास भी इतना समय नहीं है कि वह स्वयं के अतिरिक्त किसी और के बारे में भी सोचे |इस कारण से यह विकल्प भी आजकल लगभग अस्वीकार्य हो गया है |आजकल कुछ व्यक्ति समाज और असहायों की सेवा के लिए समय समय पर कर्म करते हुए प्रतीत होते हैं उनमे भी भीतर कहीं कर्ताभाव छुपा होता है |
                                  तीसरा और अंतिम विकल्प है कर्मफल का त्याग |तीनों विकल्पों में यह सबसे सरल और सुगम विकल्प है |यहाँ कर्म तो मन में कामना  रखकर ही किये जाते है ,फलस्वरूप जो भी परिणाम मिलता है उसका त्याग कर दिया जाता है |यहाँ कर्मफल के त्याग से मतलब जो भी फल मिलता है उसको सहर्ष स्वीकारना है |कर्म का परिणाम चाहे आपकी कामना के अनुरूप हो या विरुद्ध |उससे आप बिलकुल भी प्रभावित नहीं होते हों |वास्तविक कर्मफल त्याग यही है |
                                तीनो विकल्प में से किसी भी एक को चुनने की सुविधा होने के बाद भी व्यक्ति इनमे से किसी को भी आत्मसात नहीं करना चाहता |ऐसी परिस्थिति में अन्य क्या विकल्प हो सकता है ?मनुष्य न तो सकाम कर्म करना ही छोडना चाहता है और न ही कर्मफल का त्याग करना चाहता तथा न ही कोई कर्म परमात्मा के निमित्त या परमात्मा को अर्पित करते हुए नहीं करना चाहता |ऐसे में कर्म - बंधन अवश्यम्भावी है | और एक बार अगर कर्म-बंधन हो गया तो चित्त में सभी कर्म अंकित होकर ही रहेंगे |जिनके कर्मफल प्राप्त करने के लिए मनुष्य को पुनर्जन्म में जाना ही होगा |ऐसे कर्म कभी भी नष्ट नहीं होते |इनको नष्ट करने के जो भी उपाय है,वे सभी कठिन और ज्यादा समय लेने वाले है|महापुरुषों ने सकाम कर्मों को समाप्त करने के तीन तरीके बताये हैं -
               १.कर्मफल भोग कर-इसके लिए मनुष्य जीवन में किये गए सभी कर्मों के कर्मफल भोगने पड़ते हैं चाहे कितने भी जन्म लग जाये |सभी कर्मों के कर्मफल भोगने के पश्चात ही ये कर्म समाप्त होते हैं |
               २.प्रायश्चित कर-   इस विधि में किये गए कर्मों को समाप्त करने के लिए प्रायश्चित करना होता है ,जो कि बड़ी ही कठिन प्रक्रिया है,और इसमे समय भी बहुत अधिक लगता है |
                ३.ज्ञान के द्वारा - जब व्यक्ति को तत्व ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब उसके सभी कर्म अकर्म हो जाते हैं और उनका कर्मफल नहीं मिलता है |गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान की अग्नि में आकर सारे कर्म भस्म हो जाते हैं |
                                      श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप |
                                      सर्वं कर्माखिलं पर्थ ज्ञाने परिसमाप्यते || गीता ४/३३ ||
               अर्थात्,हे परंतप अर्जुन ! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ अत्यंत श्रेष्ठ है तथा संसार के समस्त कर्म ज्ञान में आकर समाप्त हो जाते हैं |
                                        यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन |
                                        ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा || गीता ४/३७ ||
             अर्थात्,हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि इंधनों को भस्ममय कर देती है,वैसे ही ज्ञानरूपी अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है |
              अतः स्पष्ट है कि संसार में जितने भी कर्म है सभी ज्ञान में आकर समाप्त हो जाते हैं |ज्ञान हो जाने पर सभी कर्म तत्काल ही समाप्त हो जाते है |सकाम कर्मों को नष्ट करने का सबसे आसान उपाय यही है |अर्थात् ज्ञान प्राप्त होते ही कर्मों और कर्मफल से मुक्ति मिल जाती है |
  क्रमश :
                           || हरिः शरणम् ||

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