कर्म-मार्ग यानि कर्म -योग -क्रमश:
कर्म मार्ग ही ऐसा मार्ग है जो अपनाने में सबसे सरल है |जब भगवान स्वयं कहते हैं कि कोई भी मनुष्य क्षण भर के लिए भी कर्म किये बगैर नहीं रह सकता ,तो प्रत्येक के लिए कर्म करना एक आवश्यकता हो जाती है |कोई भी व्यक्ति चाहे कर्म न करने की कितनी ही सोच ले कुछ न कुछ तो कर्म उससे होंगे ही |इस संसार में कर्म करने से कोई बच भी नहीं सकता |योगेश्वर कृष्ण तो यहाँ तक कहते हैं कि इस संसार में वे स्वयं भी कर्म करते हैं जबकि संसार की अप्राप्य वस्तु भी उनके लिए प्राप्य है |क्योंकि अगर वे स्वयं अगर कर्म न करे तो उनका अनुसरण करते हुए कोई भी मनुष्य कर्म नहीं करेगा |कर्म न करने से एक प्रकार से मनुष्य का जीवन भी नष्ट होने की अवस्था तक पहुँच सकता है ,जिसकी समस्त जिम्मेवारी स्वयं भगवान की हो जायेगी |इससे बचने के लिए भगवान को भी कर्म करना पड़ता है |
परमात्मा की प्राप्ति या पुनर्जन्म से मुक्ति हेतु त्याग की महत्वता सबसे अधिक है |मार्ग आप चाहे कोई भी चुने,प्रत्येक मार्ग से परमात्मा को पाने के लिए त्याग करना ही पड़ता है |कर्म-मार्ग में त्याग के मुख्य रूप से तीन विकल्प हैं,जो अन्य दो मार्गों से ज्यादा और त्याग करने में आसान भी हैं |इसी लिए गीता को प्रमुखतया कर्म-योग के लिए जाना जाता है |ये तीन त्याग निम्न हैं-
१. निष्काम कर्म- इस प्रकार के कर्म में कामनाओं और इच्छाओं का त्याग होता है |जो भी कर्म किये जाते है वे आसक्ति रहित होते हैं |अनासक्त हुए कर्म करने में व्यक्ति किसी भी कर्मफल की आकांक्षा नहीं रखता है |इस कारण से वह कर्मों के साथ बंधता नहीं है |कर्म बंधन न होने से उसके कर्मफल से मनुष्य प्रभावित नहीं होता है |निष्काम कर्म में कामनाओं का त्याग होता है |
२.परमात्मा के निमित्त कर्म-इस प्रकार के सब कर्म परमात्मा के लिए किये जाते हैं |समस्त कर्म परमात्मा को अर्पित कर दिए जाने से व्यक्ति में "मैं ही करता हूँ "का भाव नहीं रहता है |इसमे भी कर्म-बंधन नहीं होता है जिससे कर्मफल के प्रति आसक्ति का पूर्ण अभाव होता है | परमत्मा के निमित्त किये हुए कर्म में कर्तापन का त्याग होता है |
३.कर्मफल का त्याग -यहाँ मनुष्य कर्म तो सकाम करता है परन्तु कर्मफल परमात्मा को अर्पित कर देता है |जो भी कर्मफल प्राप्त होता है उससे वह प्रभावित नहीं होता है,चाहे फल उसके सकाम कर्म के विपरीत ही क्यों न हो |निष्काम कर्म में कामनाओं का त्याग होता है ,परन्तु इसमे सकाम कर्म करते हुए कर्मफल का त्याग होता है |
इस प्रकार हम देखते हैं कि ईश्वर प्राप्ति के लिए त्याग का ही महत्त्व है |परमात्मा ने हमें कई विकल्प दिए है-त्याग करने के |फिर भी हम असफल ही साबित होते हैं |इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम स्वयं को ही कर्ता मानते हैं |जबकि प्रत्येक मनुष्य भली भांति यह जानता है कि जैसा ईश्वर ने भाग्य में पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर कर्मफल निश्चित किये हैं उनसे ना तो कुछ ज्यादा मिलना है और न ही कुछ कम |यह जानने और मानने का अंतर हीव्यक्ति को त्याग करने से रोक देता है | यह मनुष्य के साथ सबसे बड़ी विडम्बना है कि वह साक्षी की भूमिका निभाने में असफल रहता है |जबकि परमात्मा रचित इस भौतिक संसार में मनुष्य की भूमिका मात्र साक्षी की ही होनी चाहिए |साक्षी की भूमिका का निर्वाह करते हुए परमात्मा की प्राप्ति की राह आसान हो जाती है |गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने सत्य ही कहा है -
पहले तो प्रारब्ध रचा, पाछे रचा शरीर |
तुलसी चिंता छोड़ दे,भजले श्री रघुवीर ||
जब तक मनुष्य कर्ता बना रहेगा तब तक वह इस जन्म-मरण के चक्रव्यूह से कभी भी बाहर नहीं निकल सकेगा |अतः जितनी भी शारीरिक और मानसिक कामनाएं और इच्छाए है उन्हें त्याग दे,परमात्मा को सब पता है कि आप को क्या मिलना है ?उसी अनुसार वह सब व्यवस्था करता है ,आपको इस सम्बन्ध में बिलकुल भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है |
अजगर करे न चाकरी,पंछी करे न काम |
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ||
इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप अपने कर्म से विमुख होकर उन्हें करना ही छोड़ दें |इससे तो सबसे भयावह स्थिति पैदा हो जायेगी |आपका इस जन्म का तो सब कुछ पूर्व निश्चित है| अतः इस जन्म में किये गए कर्म आपको इस जन्म में फल नहीं देंगे ,ये कर्म तो भावी जन्म को और उसमें मिलने वाले कर्मफल को निश्चित करेंगे |वर्तमान जन्म के कर्म तो आपका भविष्य निश्चित करेंगे-पुनर्जन्म अथवा इससे मुक्ति |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
परमात्मा की प्राप्ति या पुनर्जन्म से मुक्ति हेतु त्याग की महत्वता सबसे अधिक है |मार्ग आप चाहे कोई भी चुने,प्रत्येक मार्ग से परमात्मा को पाने के लिए त्याग करना ही पड़ता है |कर्म-मार्ग में त्याग के मुख्य रूप से तीन विकल्प हैं,जो अन्य दो मार्गों से ज्यादा और त्याग करने में आसान भी हैं |इसी लिए गीता को प्रमुखतया कर्म-योग के लिए जाना जाता है |ये तीन त्याग निम्न हैं-
१. निष्काम कर्म- इस प्रकार के कर्म में कामनाओं और इच्छाओं का त्याग होता है |जो भी कर्म किये जाते है वे आसक्ति रहित होते हैं |अनासक्त हुए कर्म करने में व्यक्ति किसी भी कर्मफल की आकांक्षा नहीं रखता है |इस कारण से वह कर्मों के साथ बंधता नहीं है |कर्म बंधन न होने से उसके कर्मफल से मनुष्य प्रभावित नहीं होता है |निष्काम कर्म में कामनाओं का त्याग होता है |
२.परमात्मा के निमित्त कर्म-इस प्रकार के सब कर्म परमात्मा के लिए किये जाते हैं |समस्त कर्म परमात्मा को अर्पित कर दिए जाने से व्यक्ति में "मैं ही करता हूँ "का भाव नहीं रहता है |इसमे भी कर्म-बंधन नहीं होता है जिससे कर्मफल के प्रति आसक्ति का पूर्ण अभाव होता है | परमत्मा के निमित्त किये हुए कर्म में कर्तापन का त्याग होता है |
३.कर्मफल का त्याग -यहाँ मनुष्य कर्म तो सकाम करता है परन्तु कर्मफल परमात्मा को अर्पित कर देता है |जो भी कर्मफल प्राप्त होता है उससे वह प्रभावित नहीं होता है,चाहे फल उसके सकाम कर्म के विपरीत ही क्यों न हो |निष्काम कर्म में कामनाओं का त्याग होता है ,परन्तु इसमे सकाम कर्म करते हुए कर्मफल का त्याग होता है |
इस प्रकार हम देखते हैं कि ईश्वर प्राप्ति के लिए त्याग का ही महत्त्व है |परमात्मा ने हमें कई विकल्प दिए है-त्याग करने के |फिर भी हम असफल ही साबित होते हैं |इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम स्वयं को ही कर्ता मानते हैं |जबकि प्रत्येक मनुष्य भली भांति यह जानता है कि जैसा ईश्वर ने भाग्य में पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर कर्मफल निश्चित किये हैं उनसे ना तो कुछ ज्यादा मिलना है और न ही कुछ कम |यह जानने और मानने का अंतर हीव्यक्ति को त्याग करने से रोक देता है | यह मनुष्य के साथ सबसे बड़ी विडम्बना है कि वह साक्षी की भूमिका निभाने में असफल रहता है |जबकि परमात्मा रचित इस भौतिक संसार में मनुष्य की भूमिका मात्र साक्षी की ही होनी चाहिए |साक्षी की भूमिका का निर्वाह करते हुए परमात्मा की प्राप्ति की राह आसान हो जाती है |गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने सत्य ही कहा है -
पहले तो प्रारब्ध रचा, पाछे रचा शरीर |
तुलसी चिंता छोड़ दे,भजले श्री रघुवीर ||
जब तक मनुष्य कर्ता बना रहेगा तब तक वह इस जन्म-मरण के चक्रव्यूह से कभी भी बाहर नहीं निकल सकेगा |अतः जितनी भी शारीरिक और मानसिक कामनाएं और इच्छाए है उन्हें त्याग दे,परमात्मा को सब पता है कि आप को क्या मिलना है ?उसी अनुसार वह सब व्यवस्था करता है ,आपको इस सम्बन्ध में बिलकुल भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है |
अजगर करे न चाकरी,पंछी करे न काम |
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ||
इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप अपने कर्म से विमुख होकर उन्हें करना ही छोड़ दें |इससे तो सबसे भयावह स्थिति पैदा हो जायेगी |आपका इस जन्म का तो सब कुछ पूर्व निश्चित है| अतः इस जन्म में किये गए कर्म आपको इस जन्म में फल नहीं देंगे ,ये कर्म तो भावी जन्म को और उसमें मिलने वाले कर्मफल को निश्चित करेंगे |वर्तमान जन्म के कर्म तो आपका भविष्य निश्चित करेंगे-पुनर्जन्म अथवा इससे मुक्ति |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
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