Wednesday, October 16, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |२

क्रमश:२
              मुक्ति यानि इस संसार में आने-जाने के चक्र (Cycle of birth and death)से बाहर निकल जाना |क्या इसको भी विज्ञानं के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है ?मेरा उत्तर बिलकुल स्पष्ट है-हाँ,सिद्ध किया जा सकता है |जब हम जानते हैं कि पुनर्जन्म का एक मात्र चित्त(Mind) में अंकित कर्म(Act) ही हैं,जो कि कामनाओं और इच्छाओं (Wills)की पूर्ति (Fulfillment)हेतु मनुष्य द्वारा किये जाते है | उन्हीं कर्मों के स्वरुप का परिवर्तन (Changing the nature of act)कर मनुष्य अपने पत्येक जन्म में निरंतर अपनी स्थिति में सुधार करते हुए मुक्त हो सकता है |इसके वैज्ञानिक आधार को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें मनुष्य के तंत्रिका - तंत्र  (Nervous system)के बारे में आधारभूत ज्ञान (Basic knowledge)प्राप्त करना होगा | भारतीय मनीषियों(Intellectuals) ने मानव शरीर में मष्तिष्क(Brain) को सत् (Truth)कहा है,ह्रदय को चित्त कहा है और ज्ञानेन्द्रियोंऔर कर्मेन्द्रियों(Organs of senses and action) से कर्म करते हुए आनन्द प्राप्त किया जा सकता है |इसी को सत्+चित्त +आनन्द = सच्चिदानन्द स्वरुप कहा जा सकता है जोकि साक्षात् परमात्मा का ही स्वरुप है | चूँकि आत्मा(सत् ) के आदेशानुसार बुद्धि के द्वारा मन (चित्त ) के माध्यम से ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों से कर्म करवाते हुए आनन्द प्राप्त किया जाता है और इस आनंद की भोक्ता और कोई नहीं स्वयं आत्मा ही है इसी लिए आत्मा का स्वरुप ही सच्चिदानन्द हुआ |आत्मा ही परमात्मा का एक अंश है इसी कारण से    परमात्मा को सच्चिदानंदघन कहा जाता है |परमात्मा न तो कोई कर्म करता है,न ही कोई कर्म करवाता है और न ही लिप्त होता है |अतः आत्मा का भी स्वाभाव ऐसा ही होना चाहिए |परन्तु शरीर में प्रवेश के साथ ही आत्मा जब मन के साथ सम्बन्ध बना लेती है तभी वह विकारग्रस्त हो जाती है | उसका विकारमुक्त होना ही वास्तविक मुक्ति है |
                            आत्मा का शरीर में प्रवेश (Entrance)और निकाष(Exit) दोनों ही शीश यानि सिर(Head) से होता है और वह प्रवेश के साथ ही मस्तिष्क(Brain) में अपने आप को स्थित कर लेती है |वहीँ से उसका ह्रदय (Heart)के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है जो कि मन (चित्त )का निवास स्थान होता है |आत्मा की प्रकृति परा यानि सूक्ष्म (Micro)है और वह शरीर निर्माण के बाद सबसे अंत में अपना स्थान लेती है |मन की प्रकृति अपरा यानि स्थूल(Macro) है जो ह्रदय की धडकन(Heart beat) के साथ ही शरीर में अस्तित्व(Existence) में आ जाता है |  मन का ही दूसरा हिस्सा चित्त के साथ संलग्न Attached)पूर्व जन्म में ही रहता है जो आत्मा के साथ ही नए शरीर में प्रवेश करता है और तत्काल ही अपने मूल स्वरुप मन के साथ एकाकार होकर आत्मा का सम्बन्ध मन के साथ बना देता है |आत्मा ,मस्तिष्क में आती है और मष्तिष्क तंत्रिका-तंत्र का मुख्य हिस्सा है इस लिए आत्मा के आने और वापिस जाने के दौरान उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है | सनातन संस्कृति में अंतिम संस्कार के दौरान मृत शरीर की जो कपाल-क्रिया (Breaking of skull)की जाती है उसका मुख्य कारण है-आत्मा के शरीर में रहने के अस्थायी निवास स्थान(Temporary residence) को ध्वस्त यानि समाप्त कर दिया जाय|
                                                                        आत्मा ही शरीर के जीवित रहने का एक प्रमाण है|ज्योंही आत्मा शरीर त्यागती है ,मस्तिष्क को मृत (Brain death)घोषित कर दिया जाता है |मस्तिष्क का मृत हो जाना ही शरीर की मृत्यु हो जाना है |अतः हमें मुक्ति का आधार समझने के लिए तंत्रिका-तंत्र का आधारभूत ज्ञान (Basic knolwedge)आवश्यक है |
                           हम जानते ही हैं कि विषयों का संग(Attachment with subjects of senses) आत्मा जब कर लेती है तब इच्छाओं और कामनाओं का जन्म होता है |उन विषयों की प्राप्ति की चाह में आत्मा शरीर से ऐसे कर्म करवाती है जो बुद्धि के द्वारा मन यानि चित्त में अंकित होते रहते है ,और यह अंकन की प्रक्रिया जीवनपर्यंत (Through out Life) चलती रहती है |जब आत्मा शरीर छोडती है तब चित्त को साथ ले जाती है जिसमे विषयों को भोगने हेतु किये गए सम्पूर्ण कर्मों का लेखा-जोखा(Record) रहता है |उसी को दृष्टिगत आत्मा नए जन्म और शरीर का चयन करती है |यहाँ आत्मा बिलकुल भी स्वतन्त्र नहीं है -निर्णय करने में|आत्मा शरीर त्यागने के पश्चात मात्र न्यायाधीश(Judge) की भूमिका में ही होती है |उसका निर्णय कभी भी पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता |जिस प्रकार दंड संहिता के अनुसार एक न्यायाधीश निर्णय(Decision) करता है ,उसी प्रकार आत्मा का भी भावी जन्म के बारे में निर्णय होता है |
                                      चूँकि कर्म करने में कर्मेन्द्रियों की भूमिका रहती है,विषयों की भूमिका में ज्ञानेन्द्रियों का योगदान रहता है तथा इनके लिए कर्मों का अंकन(Record) चित्त में करने के लिए मस्तिष्क की भूमिका होती है और वहीँ आत्मा का शरीर में अस्थायी निवास होता है |अतः तंत्रिका -तंत्र इसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|आईये ,सर्वप्रथम मानव के तंत्रिका-तंत्र और पुनर्जन्म तथा उससे मुक्ति में उसकी भूमिका(Role) के बारे में जाने|
  क्रमश:
                             || हरिः शरणम् || 

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