मुक्ति का वैज्ञानिक आधार-(Scientific basis of freedom from reincarnation )
अब तक पुनर्जन्म से मुक्ति का विवेचन(Discussion) आध्यात्मिक आधार(Spiritual basis) पर किया गया है |इसका विवेचन अब हम वैज्ञानिक आधार(Scientific basis) पर करेंगे |जिसके कारण यह स्पष्ट हो सकेगा कि वास्तव में इस पुनर्जन्म से मुक्ति की प्रक्रिया (process)कैसे संपन्न (Complete)होती है ?
जैसा कि पुनर्जन्म का "वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना "में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि संसार में जो भी दृश्य-अदृश्य (Visible and non-visible)है,वह सब उर्जा (Energy)ही है |मानव शरीर (Body)भी केवल मात्र उर्जा ही है और आत्मा (Soul)भी उर्जा है |शरीर के द्वारा जितने भी कर्म (Act)किये जाते हैं वे सब आत्मा के आदेश से बुद्धि (Intelligence)का उपयोग करते हुए ,मन (Mind) के माध्यम से शरीर में स्थित ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा किये जाते हैं |सभी मात्र उर्जा ही है|ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ शरीर के हिस्से हैं अतः यह सब दृश्यमान उर्जा है जबकि मन, बुद्धिऔर आत्मा शरीर से सूक्ष्म होने के कारण अदृश्य उर्जा है |वास्तव में उर्जा दिखाई नहीं देती है ,केवल अनुभव(Experience) की जाती है |यह ठीक वैसे ही है जैसे वायु (Air)दिखाई नहीं देती ,लेकिन अनुभव की जा सकती है |शरीर द्वारा कर्म किये जाने दिखाई देते हैं अतः इनको हम दृश्यमान उर्जा कह सकते हैं |वास्तव में उर्जा अदृश्य ही होती है |
आत्मा (Soul),परमात्मा (Supreme power)का ही एक अंश है | परमात्मा के विभक्त (Divide)होने से आत्मा का प्रादुर्भाव(Appearance) हुआ |परम-ब्रह्म परमात्मा इस ब्रह्माण्ड(Universe) का मुख्य उर्जा स्रोत(Main energy source) है |यहीं से सब जगह उर्जा का वितरण(Distribution) होता है |परमात्मा सृष्टि के प्रारंभ जब विभक्त(Divide) होता है तब उर्जा का वितरण प्रारंभ होता है और सृष्टि के अंत में जब परमात्मा पुनः भक्त(Unite) होता है तब सृष्टि की समस्त उर्जा का पुनः वहीं जाकर समावेश हो जाता है |यह समस्त चक्र एक निश्चित समयावधि में पूरा होता है जिसे कल्प कहते हैं |कई कल्पों के बीतने पर ही यह चक्र सम्पूर्ण होता है |मनुष्य जन्म की ही यह विशेषता है कि इस अवधि में व्यक्ति प्रयास करे तो यह चक्र स्वयं के लिए समय पूर्व भी पूरा कर सकता है |जब हम जानते हैं कि समस्त आत्मा रुपी उर्जाओं को एक दिन मुख्य उर्जा श्रोत को ही आत्मसात करना होता है तो यह फिर कभी भी किया जा सकता है |
सृष्टि के प्रारंभ में जब उर्जा विभक्त होती है तब आत्मा रुपी उर्जा बिलकुल ही निर्मल (Pure)और विकार रहित होती है |यह इस उर्जा यानि आत्मा का उच्चत्तम स्तर(Highest level) होता है |लेकिन जितने भी कर्म किये जाते हैं उन्ही के कर्मफलों के अनुसार जन्म-मरण का चक्र प्रारंभ हो जाता है |और मन के कारण विकार पैदा होने पर आत्मा का परमात्मा में विलय नहीं हो पाता है |यहाँ आत्मा रुपी उर्जा का पतन(Degradation) होता है |इसका उद्धार करना केवल मानव जन्म में ही संभव है |आत्मा रुपी उर्जा का पतन क्यों होता है ?इसे जानने के लिए साधारण व्यक्ति के लिए श्रीरामचरितमानस का एक दोहा और श्रीमद्भागवत गीता के मात्र दो श्लोक ही प्रयाप्त हैं |
रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ |
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ||(मानस ५/३८ )
अर्थात्,हे नाथ!काम,क्रोध,मद और लोभ-ये सब नर्क के रास्ते हैं |इन सबको छोड़ कर परमात्मा श्री राम को भजिये,जिन्हें संत भजते हैं |
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं -
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते |
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || गीता २/६२ ||
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || गीता २/६३ ||
अर्थात्,विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है,आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामनाओं के पूर्ण होने में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है | क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है,मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है,स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञान-शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है |
यहाँ दोनों ही ग्रन्थ स्पष्ट करते हैं कि आत्मा की स्थिति में गिरावट क्यों होती है ?इस स्थिति में सुधार होने पर ही व्यक्ति को पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सकती है और इसी को परमात्मा की प्राप्ति कहते हैं |अर्थात्,आत्मा रुपी उर्जा का परम-ब्रह्म परमात्मा रुपी मुख्य उर्जा श्रोत में विलय|
सृष्टि के प्रारंभ में जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो वह मन के साथ सम्बन्ध बना लेती है |मन के दो भाग होते हैं-पहला चित्त ,जो कि सदैव आत्मा के साथ चिपका रहता है |और दूसरा मन का मुख्य हिस्सा जिसे मन ही कहते हैं उसका सम्बन्ध सदैव ही इन्द्रियों और शरीर के साथ होता है |चित्त का कार्य केवल किये जाने वाले कर्मों को अंकित करना होता है |यह समस्त कर्म मृत्यु के बाद आत्मा से सम्बंधित चित्त के साथ ही शरीर छोड़ देते हैं |इन्हीं कर्मों के आधार पर कर्मफल निश्चित होते हैं और उसी के अनुरूप भावी जन्म भी |हम जानते ही हैं कि यह सब उर्जा के ही रूप हैं |और विज्ञानं के अनुसार उर्जा कभी भी समाप्त नहीं होती है |केवल उसका स्वरुप परिवर्तित होता है |कर्म भी उर्जा के कारण होते हैं और उर्जा के रूप में ही उनका अंकन चित्त में होता है |अगर हम अपने कर्मों की उर्जा के स्वरुप को परिवर्तित कर दें तो कर्मों के अंकन की उर्जा का स्वरुप भी परिवर्तित हो जायेगा और भावी जन्म भी |इसी को आत्मा रुपी उर्जा की स्थिति या व्यक्ति की स्थिति में सुधार होना कहते हैं |
आत्मा (Soul),परमात्मा (Supreme power)का ही एक अंश है | परमात्मा के विभक्त (Divide)होने से आत्मा का प्रादुर्भाव(Appearance) हुआ |परम-ब्रह्म परमात्मा इस ब्रह्माण्ड(Universe) का मुख्य उर्जा स्रोत(Main energy source) है |यहीं से सब जगह उर्जा का वितरण(Distribution) होता है |परमात्मा सृष्टि के प्रारंभ जब विभक्त(Divide) होता है तब उर्जा का वितरण प्रारंभ होता है और सृष्टि के अंत में जब परमात्मा पुनः भक्त(Unite) होता है तब सृष्टि की समस्त उर्जा का पुनः वहीं जाकर समावेश हो जाता है |यह समस्त चक्र एक निश्चित समयावधि में पूरा होता है जिसे कल्प कहते हैं |कई कल्पों के बीतने पर ही यह चक्र सम्पूर्ण होता है |मनुष्य जन्म की ही यह विशेषता है कि इस अवधि में व्यक्ति प्रयास करे तो यह चक्र स्वयं के लिए समय पूर्व भी पूरा कर सकता है |जब हम जानते हैं कि समस्त आत्मा रुपी उर्जाओं को एक दिन मुख्य उर्जा श्रोत को ही आत्मसात करना होता है तो यह फिर कभी भी किया जा सकता है |
सृष्टि के प्रारंभ में जब उर्जा विभक्त होती है तब आत्मा रुपी उर्जा बिलकुल ही निर्मल (Pure)और विकार रहित होती है |यह इस उर्जा यानि आत्मा का उच्चत्तम स्तर(Highest level) होता है |लेकिन जितने भी कर्म किये जाते हैं उन्ही के कर्मफलों के अनुसार जन्म-मरण का चक्र प्रारंभ हो जाता है |और मन के कारण विकार पैदा होने पर आत्मा का परमात्मा में विलय नहीं हो पाता है |यहाँ आत्मा रुपी उर्जा का पतन(Degradation) होता है |इसका उद्धार करना केवल मानव जन्म में ही संभव है |आत्मा रुपी उर्जा का पतन क्यों होता है ?इसे जानने के लिए साधारण व्यक्ति के लिए श्रीरामचरितमानस का एक दोहा और श्रीमद्भागवत गीता के मात्र दो श्लोक ही प्रयाप्त हैं |
रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ |
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ||(मानस ५/३८ )
अर्थात्,हे नाथ!काम,क्रोध,मद और लोभ-ये सब नर्क के रास्ते हैं |इन सबको छोड़ कर परमात्मा श्री राम को भजिये,जिन्हें संत भजते हैं |
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं -
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते |
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || गीता २/६२ ||
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || गीता २/६३ ||
अर्थात्,विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है,आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामनाओं के पूर्ण होने में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है | क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है,मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है,स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञान-शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है |
यहाँ दोनों ही ग्रन्थ स्पष्ट करते हैं कि आत्मा की स्थिति में गिरावट क्यों होती है ?इस स्थिति में सुधार होने पर ही व्यक्ति को पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सकती है और इसी को परमात्मा की प्राप्ति कहते हैं |अर्थात्,आत्मा रुपी उर्जा का परम-ब्रह्म परमात्मा रुपी मुख्य उर्जा श्रोत में विलय|
सृष्टि के प्रारंभ में जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो वह मन के साथ सम्बन्ध बना लेती है |मन के दो भाग होते हैं-पहला चित्त ,जो कि सदैव आत्मा के साथ चिपका रहता है |और दूसरा मन का मुख्य हिस्सा जिसे मन ही कहते हैं उसका सम्बन्ध सदैव ही इन्द्रियों और शरीर के साथ होता है |चित्त का कार्य केवल किये जाने वाले कर्मों को अंकित करना होता है |यह समस्त कर्म मृत्यु के बाद आत्मा से सम्बंधित चित्त के साथ ही शरीर छोड़ देते हैं |इन्हीं कर्मों के आधार पर कर्मफल निश्चित होते हैं और उसी के अनुरूप भावी जन्म भी |हम जानते ही हैं कि यह सब उर्जा के ही रूप हैं |और विज्ञानं के अनुसार उर्जा कभी भी समाप्त नहीं होती है |केवल उसका स्वरुप परिवर्तित होता है |कर्म भी उर्जा के कारण होते हैं और उर्जा के रूप में ही उनका अंकन चित्त में होता है |अगर हम अपने कर्मों की उर्जा के स्वरुप को परिवर्तित कर दें तो कर्मों के अंकन की उर्जा का स्वरुप भी परिवर्तित हो जायेगा और भावी जन्म भी |इसी को आत्मा रुपी उर्जा की स्थिति या व्यक्ति की स्थिति में सुधार होना कहते हैं |
समस्त जीवों में मात्र मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसके स्वयं के हाथ में है कि अपनी स्थिति में निरंतर सुधार करते हुए मुक्ति का द्वार खोल ले अर्थात् अपनी उर्जा को मुख्य उर्जा श्रोत में मिला दे |यह संभव हो सकता है,उन पांच तरीकों से जो इस खंड के पूर्व में विस्तृत रूप से बताये गए हैं |यथा ध्यान(Meditation),ज्ञान(Knowledge), कर्म(Action),प्रेम (Affection)मार्ग और अंत में शरणागति(Surrender to supreme power) का मार्ग |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment