Thursday, October 31, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-९

क्रमश:९
            जितने भी Synapses हैं वे सभी स्मृति निर्माण (Memory formation)में भूमिका निभाते है |सभी Nerves ये स्मृतियाँ संकेत (Signal)के रूप में Hippocampus तक पहुंचाती है | Hippocampus मानव मस्तिष्क (Brain) में स्थित LImbic system का एक हिस्सा है ||इस सिस्टम में मन,चित्त और अहंकार समाहित है |इसी लिए यह सिस्टम भावनाओं ,आक्रामकता के साथ साथ सभी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों(Senses of knowlrdge and act) को भी नियंत्रित करता है |इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह सिस्टम शरीर द्वारा किये जा रहे  लगभग सभी कर्मों(Acts) और उनके अंकन(Storage of data) के लिए उत्तरदायी होता है | Limbic system के कई भाग होते है परन्तु प्रमुख भूमिका दो भागों की होती है Hypothalamusऔर  Hippocampus| Hypothalamusके बारे में पहले ही हम आवश्यक जानकारी ले चुके है |अब हम Hippocampus के बारे में विषय से सम्बंधित आवश्यक जानकारी प्राप्त करेंगें |

HIPPOCAMPUS---

         Hippocampus मस्तिष्क का स्मृति बनाने और उनको सुरक्षित रखने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है |इसकी आकृति घोड़े की नाल(Horse shoe shaped) के आकार की होती है|यह मस्तिष्क के दोनों अर्द्ध-गोलार्द्धों Cerebral Hemispheres) में स्थित होता है |यह कपाल(Skull) में कनपट्टी (Temporal part)के पास मस्तिष्क में स्थित होता है |यह लिम्बिक सिस्टम(Limbic system) का एक हिस्सा है |इसके प्रमुख कार्य है -
1.Consolidation of new memories.(नई स्मृतियों का निर्माण )
2.Emotional Responses.(भावनात्मक क्रियाएँ)
3.Navigation.(दिशाओं का ज्ञान)
4.Spatial orientation.(स्थान का ज्ञान)
           Hippocampus तंतुओं के द्वारा Hypothalamusसे जुदा होता है और Hypothalamusमस्तिष्क के मुख्य भाग  Neocortex(Cerebral cortex)से|इन तीनों के समन्वय से समस्त शरीर की सारी क्रियाएँ नियंत्रित होती है|मस्तिष्क के शेष हिस्से भी इन तीनों के कारण ही संचालित होते हैं ,केवल स्वतन्त्र तंत्रिका तंत्र (Autonomic nervous system)पर किसी का भी नियंत्रण नहीं होता है |
               इतना समझ लेने के बाद  मस्तिष्क के सभी हिस्सों के आपस में तालमेल और क्रियाओं को समझना आसान होगा ,जिससे पुनर्जन्म और उससे मुक्ति का विज्ञानं समझ में आ जायेगा |





                                                                                                                                                                    क्रमश:
                          || हरिः शरणम् ||   







Wednesday, October 30, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-८

क्रमश:८
                                                                           सभी तंत्रिका-तंत्र आपस में समन्वय (coordination)रखते हुए कार्य करते हैं|परन्तु जहाँ पर Nervesसमाप्त होती है वहां Synapsesबनाती है जो संकेतों (Signals)को स्थानातरित (Transmit)करने का कार्य करते हैं |यह Synapses दो प्रकार के होते है.-विद्युतीय(Electrical) और रासायनिक(Chemical) |रासायनिक Synapsesमें विद्युतीय संकेत(Electrical signals) रसायन संकेतों(chemical signals) में बदलकर Pre-Synaptic cell सेPost-synaptic cell तक पहुंचते हैं,जबकि विद्युतीय (Electric synapse में Preऔर Post synaptic cell के बीच एक रिक्त स्थान (Gap)होता है Pre synaptic cell में Voltageपरिवर्तन Post synaptic cell को प्रभावित करता है इस प्रकार के Synapsesमें संकेतों का परिवहन(Transmission) अति शीघ्र होता है |Synapse.के बाद में या तो Nerveहोती है या फिर Target cell.|Chemical synapses में केल्सियम (Calcium) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है |केल्सियम आयन Ca+के रूप में Preऔर Post synaptic cells के बीच संकेतों का आदान प्रदान करता है |
         


          ऊपर के चित्र में विभिन्न प्रकार के Synapses दिखाए गए हैं,जिनके आधार पर उनकी कार्य पद्धति समझने में मदद मिलेगी|
                    Synapses की मुख्य भूमिका स्मृति (Memory)निर्माण में होती है |स्मृति भी दो प्रकार की होती है-दीर्घ अवधि स्मृति(Long term memory) और अल्प अवधि स्मृति(Short term memory) |
            अल्प अवधि स्मृति(S.T.M.) कुछ समय के लिए रहती है जबकि दीर्घ अवधि स्मृति(L.T.M.) किसी भी स्मृति के बार बार दोहराते(Repetition) रहने से उत्पन्न होती है |यह दीर्घ अवधि स्मृति Hippocampus में बनती है और Cortex में जाकर सुरक्षित रहती है |दीर्घ अवधि स्मृति की कोई भी समय सीमा नहीं होती है,कई बार यह स्मृति जीवनभर(Life long) सुरक्षित रहती है |
क्रमश:
                     || हरिः शरणम् || 

Tuesday, October 29, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-७

क्रमश:७
                                                                  आत्मा(Soul)),बुद्धि(Neocortex),मन(Hypothalamus) और इन्द्रियों के नियंत्रण केंद्र(Pitutary gland) को समझ लेने  के बाद प्रश्न यह पैदा होता है कि मानव जन्म के दौरान किये गए कर्म चित्त (Hypothalamus)में कैसे अंकित होते है ?इसको जानने के लिए हमें तंत्रिका-तंत्र (Nervous system)को कुछ और गहराई से समझना होगा|तंत्रिका-तंत्र के सभी भागों में आपसी तालमेल बहुत ही अच्छा होता है|उपरोक्त सभी केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (C.N.S.)के अंतर्गत आते है |इसके बाद परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral nervous system)आता है |परिधीय तंत्रिका तंत्र के दो भाग होते हैं -स्वतन्त्र तंत्रिका तंत्र (Autonomic nervous system)और कायिक तंत्रिका तंत्र (Somatic nervous system)|स्वतन्त्र तंत्रिका तंत्र (A.N.S.)भी दो प्रकार के होते हैं-Sympathetic और Parasympathetic nervous system)|स्वतन्त्र तंत्रिका तंत्र (A.N.S.)पर किसी का भी नियंत्रण नहीं होता है (Involuntary)| इस तंत्र का प्रमुख कार्य होता है-ह्रदय की धडकन को अनवरत जारी रखना(Heart beating),श्वास लेने और छोड़ने की क्रिया(Respiration),भोजन के पाचन की क्रिया(Digestion),मुंह में लार का बनना(Salivation),पसीना आना( Perspiration),आँख की पुतली का फैलना(Pupillary dilatation),पेशाब और शौच की क्रिया(Micturation and defaecation) तथा समागम की इच्छा होना(Sexual arousal) आदि |यह तंत्र मस्तिष्क (Brain)के Medulla oblongata और Lower brain stem में स्थित होता है | इस तत्र से संबधित कई Ganglia होते हैं जहाँ से दो प्रकार की Nerves निकलती है-Sensory और Motor nerves|Sensory nerves संकेतों(Signals) को Medulla oblongata तक पहुंचाती है जबकि Motor nerves प्रतिक्रिया स्वरुप कर्म करने के संकेत संबधित मांस पेशियों (Muscles)को प्रेषित करती है |उदहारण स्वरुप अगर कोई व्यक्ति गर्मी के वातावरण में रहता है तो Sensory nervves,Medulla oblongeta  तक शरीर को गर्मी लगने के संकेत भेजती है |तुरंत ही Medulla से Motor nerves के माध्यम से खून की नलियों (Blood vessels)की मांसपेशियों(Circular muscles) को संकेत भेजे जाते हैं|परिणामस्वरूप खून की नलियों का व्यास(Diameter) बढ़ जाता है और साथ ही खून का प्रवाह (Blood flow)भी|जिसके कारण हमें पसीना आता है और शरीर का तापक्रम तुरंत ही नियंत्रण(Temprature control) में आ जाता है |
                                   स्वतन्त्र तंत्रिका तंत्र (A.N.S.)की यही विशेषता है कि यह अपने आप कार्य करता है और सम्बंधित व्यक्ति को इसका अहसास भी नहीं होता |परिधीय तंत्रिका तंत्र(P.N.S.) का दूसरा प्रकार होता है -कायिक तंत्रिका तंत्र(Somatic nervous system) |इसके अंतर्गत केवल Nerves ही आती है ,जो चार प्रकार की होती है -
                          1.Sensory nerves
                          2.Motor nerves
                          3.Cranial nerves
                          4.Spinal nerves
                 तंत्रिका-तंत्र से जो भी Nerves निकलती है वे सभी संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने का कार्य करती है|उदाहरणार्थ अगर आपकी अंगुली किसी तेज गर्म वस्तु से छू जाती है तो इन Nerves के माध्यम से संकेत तुरंत मुख्य तंत्रिका-तंत्र तक पहुँच जाते हैं और प्रतिक्रिया स्वरुप वहाँ से भेजे गए संकेत वापिस त्वरित गति से वहाँ पहुंचकर मांसपेशियों को हाथ वहाँ से हटाने का आदेश देते हैं |
                        सभी Nerves परिधीय तंत्रिका तंत्र(Peripheral nervous system) का भाग होती है|इनके माध्यम से ही सभी कार्य सम्पादित होते हैं|12 जोड़े cranial nerves के होते हैं और अन्य Nerves सुषुम्ना नाडी(Spinal cord) से निकलती है |Nervesभी कार्य के अनुसार दो प्रकार की होती है-sensory और motor|Sensory nerves हमें ताप,ठण्ड,दर्द,छूने इत्यादि का ज्ञान करवाती है ,जबकि Motor nerves हमारी मांसपेशियों को संकेत पहुंचाकर कार्य करवाती है|उदाहरणार्थ अगर हमारे पांव में कोई कील चुभती है तो वहाँ से संकेत Sensory nerves के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचते हैं और हमें कील चुभने पर दर्द का अनुभव होता है|प्रतिक्रिया स्वरुप मस्तिष्क Motor nerves के माध्यम से पांव की मांसपेशियों को संकेत भेजता है जिससे पांव की मांसपेशियां तुरंत अपना कार्य करती हुई पांव को उस कील से दूर हटा देती है|
                                    सभी Nerves अपने आखरी छोर(End point) पर Synapses बनाती है,जिससे संकेत (Signals)आगे की Nerves अथवा Target cells को पहुंचाए जाते हैं |
क्रमश:
                        || हरिः शरणम् ||

Monday, October 28, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-६

क्रमश:६
                गीता में पुनर्जन्म से मुक्ति हेतु ध्यान योग के लिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                        समं   कायशिरोग्रीवं   धारयन्नचलं   स्थिरः |
                                        सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् || गीता-६/१३||  
अर्थात्,शरीर,गर्दन और सिर को सीधा,अचल-स्थिर करके दृढ होकर बैठ जाएँ और अपनी नासिका के अग्र भाग को देखते हुए अन्य दिशाओं को न देखते हुए स्थिर होकर बैठें|
                            वैज्ञानिक तौर पर निरंतर अभ्यास  करते रहने से आपका यह ध्यान-योग (Meditation) मन (Hypothalamus)और इन्द्रियों(Pitutary gland) पर नियंत्रण करेगा |  क्योंकि दोनों भृकुटियों(Eyebrows) के बीच की सीधी रेखा(Horizontal line) में कपाल (Skull)के भीतर पीयूष ग्रंथि (Pitutary gland)और मन(Hypothalamus) होते है | (पीछे के चित्रों को देखें)ध्यान-योग के निरंतर अभ्यास से आपका इन दोनों अर्थात् मन और इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित होने लगता है|जैसा कि हम जानते हैं कि मन और इन्द्रियों के विषय ही पुनर्जन्म का कारण होते हैं |जितनी भी कामनाएं पैदा होती है ,वे सभी दृष्टि के कारण पैदा होती है|काम सदैव नेत्रों के माध्यम से ही शरीर में प्रवेश करता है |जब दृष्टि नाक के अग्र भाग पर केंद्रित होगी तो अन्य किसी भी दिशा में देख पाना संभव भी नहीं होगा |इस प्रकार ध्यान-योग से शरीर में काम को प्रवेश करने से रोका जा सकता है |काम के प्रवेश न करने से कामनाएं भी पैदा नहीं हो पायेगी और मन तथा इन्द्रियों को नियंत्रित करना भी आसान हो जायेगा|
                               सनातन संस्कृति में ललाट(Forehead) पर पूजा के दौरान तिलक लगाने का प्रावधान है|यह तिलक ललाट पर दोनों भृकुटियों(Eyebrows) के मध्य लगाया जाता है |जिस भाग पर यह तिलक लगाया जाता है विज्ञानं की भाषा में उस भाग को Glabella कहते हैं | Glabellaकी सीधी रेखा (Horizontal line)में कपाल (Skull)के भीतर ही Sella tersica होती है जहाँ पर पीयूष ग्रंथि (Pitutary gland)और Hypothalamus होते हैं |मान्यता है की ललाट पर नित्य तिलक लगाने से मन(Hypothalamus) और इन्द्रियों (Pitutary gland)पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता मिलती है |
                           पीयूष ग्रंथि(Pitutary gland or Hypophysis) कई तरह के हार्मोन्स बनाती है ,जिनके कारण वह पूरे शरीर को सीधे तौर पर यानि परोक्ष(Directly)  या किसी के माध्यम से यानि अपरोक्ष(Indirectly) रूप से प्रभावित(Effect) करती है|पीयूष ग्रंथि के हार्मोन्स की व्याख्या (Detailing of the hormones of pitutary gland)विषय से सम्बंधित नहीं(Not related) है अतः उनका यहाँ उल्लेख(Mention) करना तर्कसंगत नहीं है |पीयूष ग्रंथि के कुछ प्रमुख कार्य हैं-(Functions of Hypophysis)-
         शारीरिक विकास(Growth) ,रक्त चाप पर नियंत्रण(Blood pressure control),गर्भधारण और शिशु का जन्म(Pregnancy and child birth),दूध का स्राव(Lactation),भोजन को उर्जा में बदलना(Metabolism),थाइरोइड ग्रंथि में हार्मोन्स का निर्माण(Thyroid function),प्रजनन अंगों के कार्य का विकास(Sex  organ functions),जल का शरीर में नियंत्रण(Water regulation) , तापक्रम पर नियंत्रण (Temperature regulation)और दर्द के अहसास को कम करना(Control on pain) आदि|

                 उपरोक्त चित्र में पीयूष ग्रंथि(Hypophysis) के दोनों भाग (Anterior and posterior lobes)दिखाये गए हैं,जिनसे अलग अलग प्रकार के हार्मोन्स का स्राव(Secretion of hormones) होता है,जो पूरे शरीर को नियंत्रित (Control)करते हैं |इसीलिए शरीर में जितने भी कार्य या कर्म होते है उन सबके लिए यही ग्रंथि परोक्ष या अपरोक्ष(Directly or indirectly) रूप से उत्तरदायी(Responsible) होती है |
क्रमश:
                 || हरिः शरणम् ||

Sunday, October 27, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-५

क्रमश:५
             मानव और अन्य योनियों में मात्र एक ही अंतर है-अन्य योनियाँ भोग योनियाँ है अर्थात् मानव योनि  में किये गए कर्मों के अनुसार कर्मफल भोगने के लिए ही ये योनियाँ होती है जब कि मानव योनि भोग योनि के साथ साथ योग योनि भी है अर्थात् मानव योनि में व्यक्ति कर्म करते हुए उनको भोगता भी है और कर्मफलों का संचय भी करता है |कर्मफलों का संचय ही उसे पुनर्जन्म में जाने को विवश करता है |मानव और अन्य योनियों में अंतर स्पष्ट करता है कि अन्य योनियों में मात्र शरीर ही अपना कार्य करता है जबकि मानव योनि में शरीर के साथ साथ मन भी कार्य करता है |अन्य योनियों में मन का सर्वथा अभाव होता है |इसीलिए हम कह सकते हैं कि मानव की शारीरिक अवस्था के साथ साथ एक मानसिक अवस्था भी होती है जबकि अन्य जीवों की केवल शारीरिक अवस्था ही होती है |
                 आइये ,अब हम यह जानने का प्रयास करते है कि यह मन शरीर में कहाँ स्थित होता है? वैज्ञानिक इसे Mind कहते हैं और हम इसे मन |विज्ञानं के अनुसार मन मस्तिष्क का ही एक हिस्सा है ,जो कि अग्र मस्तिष्क (Prosencephalon) में स्थित होता है |अग्र मस्तिष्क के दो भाग होते हैं-Telencephalon और diencephalon | Telencephalon  में मानव मस्तिष्क में Neocortex  होता है जो अन्य जीवों में स्थितCortex की तुलना में अधिक विकसित होता है |Diencephalonमें Thalamus,hypothalamus,subthalamus ,  Pitutary   और Pineal ग्रंथियां होती है |
                 Diencephalon का एक भाग  Hypothalamus(मन) होता है |जोकि मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|Hypothalamus में निश्चित कर्मों के लिए संकेत प्रेषित(Transmission of signals) करने के लिए कई केन्द्र(Nuclei) होते हैं,जिनके द्वारा विशेष कार्य(Specific act) करने हेतु संकेत मस्तिष्क के अन्य भागो के माध्यम से प्रेषित करते हुए कर्म सम्पादित(Completion of act) किये जाते हैं | यही भाग सभी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों(Senses) को नियंत्रित(Control) करता है ,जिनकी भूमिका पुनर्जन्म (Reincarnation)में होती है |इसी मन और इसके माध्यम से किये जाने वाले कर्मों के बारे में कबीर ने भी कितनी सुन्दर बात कही है-
                                         मन के मते न चालिए,मन के मते अनेक |
                                         जो मन पर असवार है,सो साधू कोई एक ||
      कबीर यहाँ पर यही कहना चाहते हैं कि मन ही सभी कर्मों के लिए जिम्मेवार है |जो कोई भी मन को नियंत्रित कर लेता है वही व्यक्ति साधू कहलाने का अधिकारी होता है |
                                                 मस्तिष्क में Telencephalonके Neocortexसे संकेत Diencephalon के Thalamus से होते हुए Hypothalamus तक पहुंचते हैं और यहीं से उनका क्रियान्वन शुरू होता है |Hypothalamus का प्रमुख कार्य हैं-तंत्रिका-तंत्र (Nervous system)के Neocortexको अन्तःर्स्रावी (Endocrine system))तंत्र से पीयूष ग्रंथि के माध्यम(Via Pitutary gland) से जोड़ना |यहाँ Neocortex को बुद्धि का क्षेत्र माना जा सकता है |चित्त या मनHypothalamus में स्थित होता और समस्त इन्द्रियों का नियंत्रण का केन्द्र  Pitutary gland यानि पीयूष ग्रंथि है||बुद्धि (Neocortex)चित्त या मन (Hypothalamus) के माध्यम से इंदियों के नियंत्रण केन्द्र पीयूष ग्रंथि (Pitutary gland) से इन्द्रियों को आदेश (Endocrines)दिलवाकर कर्म करवाती है |आत्मा (Soul)जन्म के समय ही मस्तिष्क के अग्र भाग (Prosencephalon-Telencephalon-Neocortex)को अपने नियंत्रण में ले लेती है |चूँकि आत्मा एक चुम्बकीय उर्जा है और जन्म के समय मस्तिष्क में विद्युतीय उर्जा भी चुम्बकीय क्षेत्र का  निर्माण करती है |अग्र मस्तिष्क के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ आत्मा की चुम्बकीय उर्जा अपना समन्वय(Coordination) कायम कर लेती है ,जिससे आत्मा अपनी इच्छानुसार अग्र मस्तिष्क से संकेत भिजवाकर बुद्धि (Neocortex)और मन (Hypothalamus)के माध्यम से इन्द्रियों के विषयों का रसास्वादन कर सकती है |आत्मा शरीर में चित्त के साथ प्रवेश करती है |आत्मा तो Neocortex को और चित्त Hypothalamus को नियंत्रण में रखते हुए पूर्व जन्म की अधूरी रही इच्छाओं और कामनाओं को पूरी करने में सक्रिय(Active) हो जाते हैं |


         ऊपर दिए गए चित्र से आप आसानी से समझ सकते हैं कि मन वास्तव में कैसे कार्य करता है ?मानव ललाट के बिलकुल मध्य भाग और नाक् से एकदम ऊपर ललाट का भाग जो दोनों भृकुटियों (Eye brows )के मध्य स्थित होता है,उसकी सीधी रेखा में कपाल (Skull)के अंदर हड्डियोंBone) से आच्छादित(Covered) जगह होती है उसे Sella-tursica कहते है |इसी sella-tursica में Pitutary ग्रंथि (Gland)होती है जिसका आकार मटर के दाने के बराबर होता है |यहीं पर Hypothalamus होता है ,जिसका आकार एक बादाम जैसा होता है|उसके ऊपर दोनों आँखों से  संकेत लेकर आनेवालीOptic Nerves आपस में cross बनाती है जिसे Optic chiasma कहते है |
 क्रमश:
                                 || हरिः शरणम् ||

Saturday, October 26, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-४


क्रमश:४
केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र -
                             केन्द्रीय  तंत्रिका-तत्र (C.N.S.)एक जटिल तंत्र है|इसको साधारण व्यक्ति के लिए समझना बड़ा ही दुष्कर है |मस्तिष्क के अतिरिक्त सुषुम्ना नाडी इसके प्रमुख हिस्से हैं |मस्तिष्क को पुनः मुख्य रूप से दो भागों में बनता जा सकता है-Prosenchalon और Brain stem(Mesencephalon और Rhombencephalon)|नीचे दी गयी टेबिल से केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र के मुख्य वर्गीकरण को आसानी से समझा जा सकता है
               
Central
nervous
system
BrainProsencephalonTelencephalon
Diencephalon
Brain stemMesencephalon
RhombencephalonMetencephalon
MyelencephalonMedulla oblongata
Spinal cord

                    Prosencephalon(अग्र मस्तिष्क) को फिर से दो भागों में बांटा जा सकता है-Telencephalonऔर Diencephalon|
                               Brain stem(मस्तिष्क स्तंभ)के दो भाग होते हैं- Mesencephalon (मध्य मस्तिष्क )और Rhobencephalon (पश्च मस्तिष्क)|
                                इसी प्रकार प्रत्येक भाग के अलग अलग प्रकार के छोटे छोटे भाग और होते हैं |सभी भागों का अपना अपना कार्य होता है और सभी एक दूसरे से समन्वय रखते हुए कार्य करते हैं |पुनर्जन्म और उससे मुक्ति को जानने के लिए मानव मस्तिष्क के केवल उन भागों की ही विवेचना करेंगे जो "पुनर्जन्म और उससे मुक्ति" विषय से सम्बंधित है|अन्यथा मस्तिष्क का समग्र अध्ययन  एक जटिलता ही पैदा करेगा |
                               मानव मस्तिष्क में केवल अग्र मस्तिष्क ही अपनी मुख्य भूमिका निभाता है |शेष सभी स्तनपायी जीवों की तुलना में मानव का अग्र मस्तिष्क ही ज्यादा विकसित होता है |  दूसरी विभिन्नता यह है की शरीर की तुलना में मानव मस्तिष्क का वजन अन्य जीवों के शरीर की तुलना में कही ज्यादा होता है,जो किइसके अधिक विकसित होने का प्रमाण है |उदाहरणार्थ सबसे वजनी मस्तिष्क हाथी का होता है परन्तु शारीरिक भार के अनुपात में वह मानव मस्तिष्क की तुलना में कम वजनी होता है |मानव मस्तिष्क की तरह ही शेष सभी जीवों में मस्तिष्क और उसके सभी भाग समान होते है परन्तु उनके विकसित होने का ही अंतर होता है |अग्र मस्तिष्क ही मानव मस्तिष्क का सबसे अधिक विकसित हिस्सा है जो उसे अन्य जीवों से अलग करता है |

Friday, October 25, 2013

Ending conflict in all our relationships

                                                                    Our first demand is whether it is possible to end conflict in all our relationships—at home, in the office, in every area of our life—to put an end to conflict. This does not mean that we retire in isolation, become a monk, or withdraw into some corner of our own imagination and fancy; it means living in this world to understand conflict. Because, as long as there is conflict of any kind, naturally our minds, hearts, brains, cannot function to their highest capacity. They can only function fully when there is no friction, when there is clarity. And there is clarity only when mind that is the totality—which is the physical organism, the brain cells, and the total thing which is called the mind—is in a state of non-conflict, when it functions without any friction; only then is it possible to have peace.

Thursday, October 17, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-३

क्रमश:३
                              प्रत्येक जीव-जंतु में अपना एक तंत्रिका-तंत्र होता है |परन्तु सबसे विकसित तंत्रिका -तंत्र मानव का ही होता है |विज्ञानं की खोज बताती है कि मानव के तंत्रिका- तंत्र का विकास अभी भी निरंतर हो रहा है |आदि मानव से लेकर आज तक के मानव की विकास यात्रा अगर देखें तो यह बात बिलकुल सही साबित होती है |अभी भी मानव के इस तंत्र का विकास अपने चरम (Peak)पर नहीं पहुंचा है |जिस दिन सांसारिकता को छोड़ व्यक्ति आध्यात्मिकता (Spirituality)को महत्वपूर्ण मानने लगेगा उस दिन उसका विकास अपने सर्वोच्च स्तर पर होगा |

मानव तंत्रिका-तंत्र-(Nervous system of human )

                                       मानव के तंत्रिका तंत्र को अध्ययन हेतु दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है-
                                                       १.केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र   (Central Nervous System)-इसके अंतर्गत मुख्य रूप से मस्तिष्क(Brain) और सुषुम्ना नाडी(Spinal Cord) आते हैं |
                                                       २.परिधीय तंत्रिका तंत्र  (Peripheral Nervous system)-इसके अंतर्गत फिर से दो प्रकार के तंत्रिका तंत्र आते हैं-(क)कायिक (Somatic),और (ख ) स्वतन्त्र (Autonomic)तंत्रिका-तंत्र |
      केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र    (C.N.S.)--
                                          C.N.S.के अंतर्गत जो मुख्य हिस्से आते हैं वे हैं-मस्तिष्क की झिल्लियाँ (Meninges), सुषुम्ना नाडी(Spinal cord)और मस्तिष्क (Brain)|मस्तिष्क (Brain)के हिस्से है-A>Rhombencephalon,(Medulla oblongata+pons+cerebellum),B>Mesencephalon,and C>Prosencephalon (Diencephalon+Telencephalon).
    परिधीय तंत्रिका-तंत्र (P.N.S.)---
                   क-कायिक तंत्रिका-तंत्र (Somatic nervous system)- इसके अंतर्गत निम्न Nerves आती हैं-Sensory nerves,Motor nerves,Cranial nerves,Spinal nerves.
                    ख-स्वतन्त्र तंत्रिका-तंत्र (Autonomic nervous system)-इसके अंतर्गत Sympathetic, Parasympathetic  and  Enteric nervous systemआते हैं |
         
                                     
2-C.N.S. includes 1.Brain and 3.Spinal cord






This is the development of C.N.S. in 4 week embryo..Prosencephalon, Mesencephalon and Rhobencephalon are parts of brain which are connected to spinal cord.
यह चित्र ४ सप्ताह के भ्रूण में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के विकास को दर्शा रहा है |चित्र में मस्तिष्क के तीनो भाग और सुषुम्ना नाडी का विभेदीकरण (Differentiation) स्पष्ट दिखाई दे रहा है |



क्रमश:
                         || हरिः शरणम् ||

Wednesday, October 16, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |२

क्रमश:२
              मुक्ति यानि इस संसार में आने-जाने के चक्र (Cycle of birth and death)से बाहर निकल जाना |क्या इसको भी विज्ञानं के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है ?मेरा उत्तर बिलकुल स्पष्ट है-हाँ,सिद्ध किया जा सकता है |जब हम जानते हैं कि पुनर्जन्म का एक मात्र चित्त(Mind) में अंकित कर्म(Act) ही हैं,जो कि कामनाओं और इच्छाओं (Wills)की पूर्ति (Fulfillment)हेतु मनुष्य द्वारा किये जाते है | उन्हीं कर्मों के स्वरुप का परिवर्तन (Changing the nature of act)कर मनुष्य अपने पत्येक जन्म में निरंतर अपनी स्थिति में सुधार करते हुए मुक्त हो सकता है |इसके वैज्ञानिक आधार को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें मनुष्य के तंत्रिका - तंत्र  (Nervous system)के बारे में आधारभूत ज्ञान (Basic knowledge)प्राप्त करना होगा | भारतीय मनीषियों(Intellectuals) ने मानव शरीर में मष्तिष्क(Brain) को सत् (Truth)कहा है,ह्रदय को चित्त कहा है और ज्ञानेन्द्रियोंऔर कर्मेन्द्रियों(Organs of senses and action) से कर्म करते हुए आनन्द प्राप्त किया जा सकता है |इसी को सत्+चित्त +आनन्द = सच्चिदानन्द स्वरुप कहा जा सकता है जोकि साक्षात् परमात्मा का ही स्वरुप है | चूँकि आत्मा(सत् ) के आदेशानुसार बुद्धि के द्वारा मन (चित्त ) के माध्यम से ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों से कर्म करवाते हुए आनन्द प्राप्त किया जाता है और इस आनंद की भोक्ता और कोई नहीं स्वयं आत्मा ही है इसी लिए आत्मा का स्वरुप ही सच्चिदानन्द हुआ |आत्मा ही परमात्मा का एक अंश है इसी कारण से    परमात्मा को सच्चिदानंदघन कहा जाता है |परमात्मा न तो कोई कर्म करता है,न ही कोई कर्म करवाता है और न ही लिप्त होता है |अतः आत्मा का भी स्वाभाव ऐसा ही होना चाहिए |परन्तु शरीर में प्रवेश के साथ ही आत्मा जब मन के साथ सम्बन्ध बना लेती है तभी वह विकारग्रस्त हो जाती है | उसका विकारमुक्त होना ही वास्तविक मुक्ति है |
                            आत्मा का शरीर में प्रवेश (Entrance)और निकाष(Exit) दोनों ही शीश यानि सिर(Head) से होता है और वह प्रवेश के साथ ही मस्तिष्क(Brain) में अपने आप को स्थित कर लेती है |वहीँ से उसका ह्रदय (Heart)के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है जो कि मन (चित्त )का निवास स्थान होता है |आत्मा की प्रकृति परा यानि सूक्ष्म (Micro)है और वह शरीर निर्माण के बाद सबसे अंत में अपना स्थान लेती है |मन की प्रकृति अपरा यानि स्थूल(Macro) है जो ह्रदय की धडकन(Heart beat) के साथ ही शरीर में अस्तित्व(Existence) में आ जाता है |  मन का ही दूसरा हिस्सा चित्त के साथ संलग्न Attached)पूर्व जन्म में ही रहता है जो आत्मा के साथ ही नए शरीर में प्रवेश करता है और तत्काल ही अपने मूल स्वरुप मन के साथ एकाकार होकर आत्मा का सम्बन्ध मन के साथ बना देता है |आत्मा ,मस्तिष्क में आती है और मष्तिष्क तंत्रिका-तंत्र का मुख्य हिस्सा है इस लिए आत्मा के आने और वापिस जाने के दौरान उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है | सनातन संस्कृति में अंतिम संस्कार के दौरान मृत शरीर की जो कपाल-क्रिया (Breaking of skull)की जाती है उसका मुख्य कारण है-आत्मा के शरीर में रहने के अस्थायी निवास स्थान(Temporary residence) को ध्वस्त यानि समाप्त कर दिया जाय|
                                                                        आत्मा ही शरीर के जीवित रहने का एक प्रमाण है|ज्योंही आत्मा शरीर त्यागती है ,मस्तिष्क को मृत (Brain death)घोषित कर दिया जाता है |मस्तिष्क का मृत हो जाना ही शरीर की मृत्यु हो जाना है |अतः हमें मुक्ति का आधार समझने के लिए तंत्रिका-तंत्र का आधारभूत ज्ञान (Basic knolwedge)आवश्यक है |
                           हम जानते ही हैं कि विषयों का संग(Attachment with subjects of senses) आत्मा जब कर लेती है तब इच्छाओं और कामनाओं का जन्म होता है |उन विषयों की प्राप्ति की चाह में आत्मा शरीर से ऐसे कर्म करवाती है जो बुद्धि के द्वारा मन यानि चित्त में अंकित होते रहते है ,और यह अंकन की प्रक्रिया जीवनपर्यंत (Through out Life) चलती रहती है |जब आत्मा शरीर छोडती है तब चित्त को साथ ले जाती है जिसमे विषयों को भोगने हेतु किये गए सम्पूर्ण कर्मों का लेखा-जोखा(Record) रहता है |उसी को दृष्टिगत आत्मा नए जन्म और शरीर का चयन करती है |यहाँ आत्मा बिलकुल भी स्वतन्त्र नहीं है -निर्णय करने में|आत्मा शरीर त्यागने के पश्चात मात्र न्यायाधीश(Judge) की भूमिका में ही होती है |उसका निर्णय कभी भी पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता |जिस प्रकार दंड संहिता के अनुसार एक न्यायाधीश निर्णय(Decision) करता है ,उसी प्रकार आत्मा का भी भावी जन्म के बारे में निर्णय होता है |
                                      चूँकि कर्म करने में कर्मेन्द्रियों की भूमिका रहती है,विषयों की भूमिका में ज्ञानेन्द्रियों का योगदान रहता है तथा इनके लिए कर्मों का अंकन(Record) चित्त में करने के लिए मस्तिष्क की भूमिका होती है और वहीँ आत्मा का शरीर में अस्थायी निवास होता है |अतः तंत्रिका -तंत्र इसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|आईये ,सर्वप्रथम मानव के तंत्रिका-तंत्र और पुनर्जन्म तथा उससे मुक्ति में उसकी भूमिका(Role) के बारे में जाने|
  क्रमश:
                             || हरिः शरणम् || 

Tuesday, October 15, 2013

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार |-१

मुक्ति का वैज्ञानिक आधार-(Scientific basis of freedom from reincarnation )

                                अब तक पुनर्जन्म से मुक्ति का विवेचन(Discussion) आध्यात्मिक आधार(Spiritual basis) पर किया गया है |इसका विवेचन अब हम वैज्ञानिक आधार(Scientific basis) पर करेंगे |जिसके कारण यह स्पष्ट हो सकेगा कि वास्तव में इस पुनर्जन्म से मुक्ति की प्रक्रिया (process)कैसे संपन्न (Complete)होती है ?
                           जैसा कि पुनर्जन्म का "वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना "में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि संसार में जो भी दृश्य-अदृश्य (Visible and non-visible)है,वह सब उर्जा (Energy)ही है |मानव शरीर (Body)भी केवल मात्र उर्जा ही है और आत्मा (Soul)भी उर्जा है |शरीर के द्वारा जितने भी कर्म (Act)किये जाते हैं वे सब आत्मा के आदेश से बुद्धि (Intelligence)का उपयोग करते हुए ,मन (Mind) के माध्यम से शरीर में स्थित ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा किये जाते हैं |सभी मात्र उर्जा ही है|ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ शरीर के हिस्से हैं अतः यह सब दृश्यमान उर्जा है जबकि मन, बुद्धिऔर आत्मा शरीर से सूक्ष्म होने के कारण अदृश्य उर्जा है |वास्तव में उर्जा दिखाई नहीं देती है ,केवल अनुभव(Experience) की जाती है |यह ठीक वैसे ही है जैसे वायु (Air)दिखाई नहीं देती ,लेकिन अनुभव की जा सकती है |शरीर द्वारा कर्म किये जाने दिखाई देते हैं अतः इनको हम दृश्यमान उर्जा कह सकते हैं |वास्तव में उर्जा अदृश्य ही होती है |
                          आत्मा (Soul),परमात्मा (Supreme power)का ही एक अंश है | परमात्मा के विभक्त (Divide)होने से आत्मा का प्रादुर्भाव(Appearance) हुआ |परम-ब्रह्म परमात्मा इस ब्रह्माण्ड(Universe) का मुख्य उर्जा स्रोत(Main energy source) है |यहीं से सब जगह उर्जा का वितरण(Distribution) होता है |परमात्मा सृष्टि के प्रारंभ जब विभक्त(Divide) होता है तब उर्जा का वितरण प्रारंभ होता है और सृष्टि के अंत में जब परमात्मा पुनः भक्त(Unite) होता है तब सृष्टि की समस्त उर्जा का पुनः वहीं जाकर समावेश हो जाता है |यह समस्त चक्र एक निश्चित समयावधि में पूरा होता है जिसे कल्प कहते हैं |कई कल्पों के बीतने पर ही यह चक्र सम्पूर्ण होता है |मनुष्य जन्म की ही यह विशेषता है कि इस अवधि में व्यक्ति प्रयास करे तो यह चक्र स्वयं के लिए समय पूर्व भी पूरा कर सकता है |जब हम जानते हैं कि समस्त आत्मा रुपी उर्जाओं को एक दिन मुख्य उर्जा श्रोत को ही आत्मसात करना होता है तो यह फिर कभी भी किया जा सकता है |
                       सृष्टि के प्रारंभ में जब उर्जा विभक्त होती है तब आत्मा रुपी उर्जा बिलकुल ही निर्मल (Pure)और विकार रहित होती है |यह इस उर्जा यानि आत्मा का उच्चत्तम स्तर(Highest level) होता है |लेकिन जितने भी कर्म किये जाते हैं उन्ही के कर्मफलों के अनुसार जन्म-मरण का चक्र प्रारंभ हो जाता है |और मन के कारण विकार पैदा होने पर आत्मा का परमात्मा में विलय नहीं हो पाता है |यहाँ आत्मा रुपी उर्जा का पतन(Degradation) होता है |इसका उद्धार करना केवल मानव जन्म में ही संभव है |आत्मा रुपी उर्जा का पतन क्यों होता है ?इसे जानने के लिए साधारण व्यक्ति के लिए श्रीरामचरितमानस का एक दोहा और श्रीमद्भागवत गीता के मात्र दो श्लोक ही प्रयाप्त हैं |
                      रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
                                            काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ |
                                           सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ||(मानस ५/३८ )
           अर्थात्,हे नाथ!काम,क्रोध,मद और लोभ-ये सब नर्क के रास्ते हैं |इन सबको छोड़ कर परमात्मा श्री राम को भजिये,जिन्हें संत भजते हैं |
                     गीता में श्री कृष्ण कहते हैं -
                                        ध्यायतो    विषयान्पुंसः     संगस्तेषूपजायते |
                                        संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || गीता २/६२ ||
                                       क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
                                       स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति  || गीता २/६३ ||
        अर्थात्,विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है,आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न  होती है और कामनाओं के पूर्ण होने में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है |  क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है,मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है,स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञान-शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है |
                  यहाँ दोनों ही ग्रन्थ स्पष्ट करते हैं कि आत्मा की स्थिति में गिरावट क्यों होती है ?इस स्थिति में सुधार होने पर ही व्यक्ति को पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सकती है और इसी को परमात्मा की प्राप्ति कहते हैं |अर्थात्,आत्मा रुपी उर्जा का परम-ब्रह्म परमात्मा रुपी मुख्य उर्जा श्रोत में विलय|
                         सृष्टि के प्रारंभ में जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो वह मन के साथ सम्बन्ध बना लेती है |मन के दो भाग होते हैं-पहला चित्त ,जो कि सदैव आत्मा के साथ चिपका रहता है |और दूसरा मन का मुख्य हिस्सा जिसे मन ही कहते हैं उसका सम्बन्ध सदैव ही इन्द्रियों और शरीर के साथ होता है |चित्त का कार्य केवल किये जाने वाले कर्मों को अंकित करना होता है |यह समस्त कर्म मृत्यु के बाद आत्मा से सम्बंधित चित्त के साथ ही शरीर छोड़ देते हैं |इन्हीं कर्मों के आधार पर कर्मफल निश्चित होते हैं और उसी के अनुरूप भावी जन्म भी |हम जानते ही हैं कि यह सब उर्जा के ही रूप हैं |और विज्ञानं के अनुसार उर्जा कभी भी समाप्त नहीं होती है |केवल उसका स्वरुप परिवर्तित होता है |कर्म भी उर्जा के कारण होते हैं और उर्जा के रूप में ही उनका अंकन चित्त में होता है |अगर हम अपने कर्मों की उर्जा के स्वरुप को परिवर्तित कर दें तो कर्मों के अंकन की उर्जा का स्वरुप भी परिवर्तित हो जायेगा और भावी जन्म भी |इसी को आत्मा रुपी उर्जा की स्थिति या व्यक्ति की स्थिति में सुधार होना कहते हैं |
                                   समस्त जीवों में मात्र मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसके स्वयं के हाथ में है कि अपनी स्थिति में निरंतर सुधार करते हुए मुक्ति का द्वार खोल ले अर्थात् अपनी उर्जा को मुख्य उर्जा श्रोत में मिला दे |यह संभव हो सकता है,उन पांच तरीकों से जो इस खंड के पूर्व में विस्तृत रूप से बताये गए हैं |यथा ध्यान(Meditation),ज्ञान(Knowledge), कर्म(Action),प्रेम (Affection)मार्ग और अंत में शरणागति(Surrender to supreme power) का मार्ग |
क्रमश:
                                || हरिः शरणम् ||

                  

Sunday, October 13, 2013

पुनर्जन्म से मुक्ति अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति |-२०

क्रमश:२०
                 अभी तक हमने यह जानने की कोशिश की कि पुनर्जन्म से मुक्ति कैसे मिले?गीता के अनुसार ध्यान -मार्ग ,ज्ञान-मार्ग और कर्म-मार्ग का विवेचन किया |इन तीन मार्गों के अतिरिक्त एक मार्ग प्रेम का और दूसरा शरणागति का भी है |उपरोक्त सभी मार्गों की एक ही विशेषता है कि सभी में कर्मों का बड़ा ही महत्त्व है |सभी मे कर्मों के सम्बन्ध में कुछ ना कुछ त्याग करना ही पड़ता है |केवल ध्यान- मार्ग में विचारों का त्याग होता है |विचारों के त्याग के फलस्वरूप किये जाने वाले कर्मों की गुणवता में सुधार होता है जिसके कारण व्यक्ति शास्त्र विरुद्ध कर्म कर ही नहीं सकता |ज्ञान - मार्ग में भी कमोबेश यही स्थिति होती है,यानि कर्मों की गुणवत्ता में सुधार होता है |ये दोनों ही मार्ग आम मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं है |क्योंकि इनका साधन करना यानि  पालन करना अत्यंत ही दुष्कर है |शेष बचे तीन मार्ग -जिनमे कर्म-मार्ग आज के समय में सबसे उपयुक्त है |प्रेम-मार्ग और शरणागति मनुष्य की भावना से सम्बंधित है जिनमे कर्मों के स्वरुप का त्याग स्वतः ही हो जाता है |
                                        गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                                    जरामरणमोक्षाय    मामाश्रित्य   यतन्ति    ये |
                                                    ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् || गीता ७/२९ ||
                                      अर्थात्,जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं ,वे पुरुष उस ब्रह्म को,सम्पूर्ण अध्यात्म को तथा सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं |
                       यहाँ भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को शरणागत होकर किये जाने वाले प्रयास के बारे में समझा रहे हैं |शरणागत होकर जब व्यक्ति वृद्धावस्था और मृत्य से मुक्त होना चाहते हैं ,वे इस के लिए जो भी वे प्रयास करते हैं उससे वे ब्रह्म को ,सम्पूर्ण अध्यात्म और सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं |जरा अर्थात् बुढ़ापा और मरने से कोई भी व्यक्ति कैसे बच सकता है?इससे पहले भगवान गीता में ही कहते है कि जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है और उसके विपरीत यहाँ कहते हैं कि जो भी जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं वे ब्रह्म को जानते हैं |यहाँ जरा मरणसे छूटने का अर्थ है जन्म-मरण से मुक्ति |व्यक्ति जरावस्था को तभी प्राप्त होगा जब वह पुनर्जन्म लेगा और तभी वह फिर से मृत्यु को प्राप्त होगा |इसलिए इस जन्म-मरण के चक्कर से जो भी व्यक्ति बाहर निकलने का प्रयास करते हैं वे  इस ब्रह्म अर्थात् परम ब्रह्म परमात्मा को,सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण कर्म को जान जाते हैं|यह सब जान लेने के बाद कोई व्यक्ति पुनर्जन्म के लिए कैसे जा सकता है ?प्रश्न यह उठना स्वाभाविक है कि यह ब्रह्म,अध्यात्म और कर्म क्या हैं जिसको शरणागत पुरुष जानता है |श्री कृष्ण गीता में इसका उत्तर देते हैं-
                                         अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते |
                                         भूतभावोद्भवकरो   विसर्गः    कर्मसंज्ञितः || गीता ८/३ ||
                               अर्थात्,परम अक्षर यानि जिसका कभी भी विनाश नहीं होता वाही 'ब्रह्म' है,अपना स्वभाव या स्वरुप ही 'अध्यात्म' है तथा भूतों यानि जीवों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है वही' कर्म' है |इन सबको को शरणागत जानता है |
                          अतः शरणागत होना एक ऐसी अवस्था को प्राप्त होना है जिसमे व्यक्ति केवल मात्र परमात्मा को ही सब कुछ समझने लगता है |परमात्मा को जान लेना ही सम्पूर्ण अध्यात्म को जान लेना है |इतना सब कुछ जान जाने के बाद वह सभी कर्मों के स्वरुप को समझ लेता है ,ऐसे में उसके लिए न तो कोई कर्म होता है और न ही कोई कर्म-बंधन |उसके लिए तो शरणागति ही मुक्ति का मार्ग बन जाती है |

                                                 || हरिः शरणम् ||