Monday, April 21, 2014

मौन -आपकी एक शक्ति |(Power of silence)

                  मौन की अपनी एक भाषा होती है। मौन की अभिव्यक्ति को हर कोई नहीं समझ सकता। अत्यधिक वाचालता हमें उच्छृंखल बनाती है, जबकि मौन हमें समझदार। मौन से शक्ति प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति का जीवन ऊर्जास्वित होता है।
                  क्षुब्ध मन को एकाग्र करके उसे समाधि की अवस्था में पहुंचाना सबके वश की बात नहीं है। अपने देश में अनेक कथाएं अनेक व्यक्तियों के संबंध में मिलती हैं, जिन्होंने अखंड समाधि के द्वारा अपरिमित ऊर्जा प्राप्त की। दुनिया के लगभग सभी आध्यात्मिक महापुरुषों ने मौन की महिमा का बखान किया है। वैदिक काल से लेकर पुराणकाल तक अनेक ऋषियों-मुनियों के द्वारा समाधि लगाकर मौन की सिद्धि की गई और इसके फलस्वरूप मनोरथ पूर्ण करने के प्रमाण मिलते हैं।
                  मौन इंद्रिय संयम का सर्वोपरि साधन है। महाभारत का लेखन समाप्त होने पर कृष्ण द्वैपायन व्यास ने श्रीगणोश से कहा था, 'मेरा बोलना अकथ था, किंतु आप मौन में अवस्थित होकर धैर्यपूर्वक लेखन कार्य में निमग्न रहते थे। आपको धन्यवाद! ऐसा वाक् संयम अप्रतिम है।' इस पर श्रीगणोश ने उत्तर दिया था, 'मूल ऊर्जा तो प्राण है। प्राण ही समस्त इंद्रियों को चैतन्य करने वाला चिन्मय पीयूष है। उसका अनावश्यक क्षरण महापातक है। वाक्-संयम के साध लेने से अन्य इंद्रियों का संयम भी स्वत: सध जाता है।' श्रीगणोश ने अपनी बात जारी रखी-'अधिक बोलने वाले व्यक्ति के मुख से कभी-कभी अवांछित शब्द भी निकल जाते हैं। इसका कुफल इंद्रियों को भोगना पड़ता है। आप मेरे इस गुण पर मुग्ध हैं तो यह मेरी उपास्य देवता वचोगुप्ति (मौन) का ही कृपा प्रसाद है।' इसीलिए इंद्रिय संयम में वाक् संयम प्रमुख है। महावीर, तथागत बुद्ध, ईसा, मूसा, जरथुस्त्र आदि लोगों ने आध्यात्मिक ऊर्जा वाक् संयम से ही प्राप्त की थी। महात्मा गांधी कहते थे-'बोलना सुंदर कला है, मौन इससे भी ऊंची कला है। मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर एक शब्द से काम चले तो दो मत बोलो।' इसलिए मौन का अभ्यास अवश्य करें। यह शक्तिशाली अस्त्र है। इसमें शांति के फल लगते हैं। मौन आत्मा का सर्वोत्तम मित्र है। मौन बहुत से सवालों का जवाब भी है, लेकिन यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है।
                              || हरिः शरणम् || 

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