Monday, April 28, 2014

सत्य - असत्य |-१

                               इस संसार में सत्य और असत्य की हम सबसे ज्यादा चर्चा करते हैं |जबकि वास्तविकता यह है कि हममें से कोई विरला ही इस के बारे में स्पष्टतः जानता होगा |सत्य और असत्य में भेद करना इतना आसान नहीं है |कहा भी जाता है कि एक असत्य को अगर कई बार दोहराया जाये तो एक अवस्था ऐसी भी आती है जब प्रायः लोग उस असत्य को ही सत्य समझने लगते है |परन्तु यह भी सत्य है कि चाहे असत्य को हजारों बार दुहराया जाये वह कभी भी सत्य नहीं हो सकता | इस संसार में क्या तो सत्य है और क्या असत्य ,समझ पाना लगभग असंभव है |जो आज असत्य लग रहा है, वह कल सत्य भी हो सकता है और इसी तरह जो आज सत्य है ,कल असत्य भी प्रमाणित हो सकता है |यह सब देश,काल और परिस्थितियों पर निर्भर करता है | अतः एक बात को ही सदैव के लिए सत्य या असत्य मान लेना उचित नहीं होगा |                  
                                                    राजा जनक के जीवन का एक वृतांत है | एक रात को नींद में राजा जनक ने एक स्वप्न देखा | वे भिखारी हो गए | कृशकाय शरीर भूख से बिलबिला रहा था |शरीर में इतनी भी शक्ति नहीं थी कि भीख मांगने के लिए जा सके |हाथ में कोई कटोरा भी नहीं था,जिसमे वे भिक्षा का कुछ अन्न भी ले सके |उन्होंने आस पास किसी मिटटी से बने टूटे फूटे पात्र की तलाश की|परन्तु वे किसी भी पात्र को ढूंढ पाने में असफल रहे |अंत में उन्हें एक मानव कपाल नज़र आया |उन्होंने उसे ही भिक्षा पात्र बना लिया |अब उनकी भूख और तीव्र हो गयी |उन्होंने किसी व्यक्ति की तलाश शुरू की ,जो उन्हें भिक्षा के रूप में कुछ खाने को दे सके | अंत में उनकी तलाश पूरी हुई |एक साधारण महिला ने रात के खाने में से बचा हुआ रूखा सूखा बासी भोजन उनके खप्पर में डाल दिया |जनक ने इतना सा पाकर भी यूँ महसूस किया मानो पूरे विश्व की दौलत उन्हें प्राप्त हो गयी हो |वे उसको उदरस्थ करने की सोच ही रहे थे कि आसमान से एक चील ने उनके खप्पर ,उनके भिक्षा पात्र को झपट्टा मारा |उनके हाथ से भिक्षा पात्र नीचे कीचड़ में गिर पड़ा |भिक्षा में प्राप्त सारा अन्न कीचड़ से सनकर खाने योग्य नहीं रह गया था |भिखारी जनक की हिम्मत टूट गई |अब उनका बचा खुचा धैर्य भी जवाब दे चूका था |उनके मुहं से चीत्कार निकल गयी |बदहवास से होकर वे भोजन के लिए इधर उधर दौड़ने लगे | अचानक एक पत्थर की ठोकर लगी और भिखारी जनक धरती पर गिर पड़े |भिखारी जनक के पत्थर की ठोकर लगते ही राजा जनक का सपना टूट गया |उन्होंने पाया कि वे शाही महल में आराम से अपने आरामदायक पलंग पर सो रहे हैं |उन्हें बड़ा ही अचरज हुआ कि अभी कुछ पल पहले वे क्या थे ?एक रोटी के छोटे से तुकडे के लिए वे तरस रहे थे और इधर नींद से जागते ही वे राजा हैं और उनके पास सभी प्रकार की भोग सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं |सब कुछ जानते हुए भी वे अपने स्वप्न को चाहकर भी भूला नहीं पा रहे थे |वे शेष रात्रि की अवधि को करवटें बदल बदल कर व्यतीत कर रहे थे |आखिर रात्रि ने विदा ली और प्रभात वेला में राजा जनक उठकर तैयार होने लगे |उनको जल्दी थी ,अष्टावक्र जी के पास जाने की और उनसे अपने स्वप्न के बारे में जानने की और अपनी वास्तविकता को जानने की |वे जानना चाहते हैं कि दोनों में से कौन सा सत्य है और कौन सा असत्य ?
क्रमशः
                                              || हरिः शरणम् ||

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