तप के आयाम। जीवन में कठिन तप के बिना सफलता नहीं मिलती। तप का सीधा सा अर्थ है-तपना। ठीक वैसे ही जैसे सोना आग में तप कर कुंदन बनता है। तभी तो इस देश के सिद्ध-साधकों और ऋषि-मुनियों ने तप के सहारे जीवन में परम लक्ष्य की प्राप्ति की। सत्य के महान खोजियों ने तप को एक दर्शन माना। तप एक कठोर साधना है। इस साधना के अंतर्गत तप मनुष्य करता है और सिद्धि परमात्मा देता है।
अध्यात्म में तप के विविध आयामों की चर्चा की गई है। कहा गया है कि अपने जीवन के दीपक को तपस्या से प्रकाशित करो। तप के भी कई प्रकार हैं। बहुत से लोग शरीर के तप को महत्व देते हैं। जो सच्चा साधक है वह तपस्वी होगा ही। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसके जीवन में तप स्वत: बस जाता है। वह दुविधा में भी हर कार्य सुविधा से करता है। उसके आभामंडल का तो कहना ही क्या। देश को राजनीतिक आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी तप को जीवन में प्रमुखता दी। जहां गांधीजी सत्याग्रह कर रहे थे वहीं भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे तपस्वी क्त्रांतिकारी आजादी की अलख जगा रहे थे।
गौतम बुद्ध ने करुणा को साधा और महावीर ने अहिंसा को साधा। लोग उनकी तपश्चर्या की चर्चा आज भी करते हैं। सदाचरण की साधना दैहिक तप है। वैचारिक रूप से पवित्र रहना मानसिक तप है। एक तप वाणी का भी है। जो कहा वह सोच-समझकर। जो तपस्वी होता है उसका जीवन संतुलित होता है, परंतु अफसोस कि कई बार कुछ तथाकथित लोग इसका भी आडंबर रचकर समाज से छलावा करते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क व सजग रहने की आवश्यकता है। भारत का स्वाधीनता संग्राम हम परम तपस्वियों के तप से जीत सके। तप कठोर व अनवरत साधना के बाद ही फल देता है। प्रभु श्रीराम 14 वर्षो तक वन में रहे और आसुरी शक्तियों को हराने के लिए तप किया। यह उत्कृष्ट तप है। मनुष्य जीवन में तप का संबंध भी जन्म-जन्मांतरों से होता है। भगवान श्रीराम तो कहते हैं कि एक साधक की साधना को मैं जन्म-जन्मांतर तक निरंतरता प्रदान करता हूं। प्रभु तो हम पर हर पल कृपा बरसाने को तैयार बैठे हैं, लेकिन हम अपने जीवन को सही तरीके से साधें तो।
|| हरिः शरणम् ||
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