अष्टावक्र,जिनका शरीर आठ स्थानों से मुड़ा हुआ था ,राजा जनक के गुरु थे |गर्भावस्था के दौरान अपने ऋषि पिता द्वारा उच्चारित मंत्रों और श्लोकों को सुनकर उन्होंने पाया कि वे गलत उच्चारण कर रहे हैं |उन्होंने अपने पिता को गर्भ से ही आवाज़ देकर आठ बार उनके उच्चारण में हुई भूलों के बारे में बताया |प्रत्येक बार उनके पिता ने अहंकारवश इसे अनुचित मानते हुए एक एक अंग को टेढ़ा हो जाने का श्राप दिया |इस प्रकार आठ बार ऐसा होने पर उनके शरीर के विभिन्न भाग आठ स्थानों से टेढ़े यानि वक्रता लिए हुए हो गए | जब वे पैदा हुए तब उनका शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था ,इसी कारण से उनका नाम अष्टावक्र हो गया | वे अद्वेतवादी थे |अद्वेतवादी,अर्थात् संसार में एक मात्र शक्ति या परम ब्रह्म को मानना |जो भी इस संसार में है,हो रहा है या भविष्य में होने वाला है ,वह सब उस एक का ही खेल है और एक मात्र वही सब कुछ है ,करता है और व्यक्त होता है |प्रकृति भी वही है ,व्यक्ति भी वही है ,वही सब करता है और करवाता है |वह अपनी मर्जी से सारा खेल चलाता है और अपनी मर्जी से उस खेल को समेट भी लेता है |आज के इस युग में अद्वेतवादी बहुत कम ही देखने को मिलते है |आदिगुरू शंकराचार्य अद्वेतवादी थे |अष्टावक्र भी मात्र एक परमब्रह्म को ही मानने वाले अद्वेतवादी ही थे |
राजा जनक अपने रात को देखे स्वप्न से इतने उद्वेलित थे कि उन्होंने देरी करना उचित नहीं समझा और शीघ्रता से तैयार होकर पहुँच गए अपने गुरु अष्टावक्र के पास |अष्टावक्र ने उनको समय से पहले आया देखकर उन्हें आदर सहित बैठाकर आने का प्रयोजन पूछा |राजा जनक ने रात को देखे गए स्वप्न को विस्तार से बताकर पूछा-"हे आचार्य!जो कुछ भी मैंने रात को सपने में देखा वह असत्य है या सत्य तथा जो मैं वर्तमान में हूँ वह सत्य है या असत्य ?"अष्टावक्र महाराज ने उन्हें शांति के साथ बैठाकर जवाब दिया कि "राजन ! न तो स्वप्न असत्य है और न ही वह जो आप वर्तमान में है और अगर सपना असत्य है तो फिर वर्तमान में जो भी आप हैं वह भी असत्य है | इस संसार में कुछ भी असत्य नहीं है , सब सत्य ही है ।"
यह सुनकर राजा जनक आश्चर्यचकित रह गए |उनकी उलझन सुलझने के स्थान पर और ज्यादा बढ़ गयी |उन्होंने पुनः अष्टावक्र से पूछा-"गुरुदेव!मैं कुछ समझा नहीं |कृपा करके इस बात को और अधिक स्पष्ट करने की कृपा करे |"अष्टावक्र ने उत्तर दिया _"राजन ! इस संसार में कोई भी व्यक्ति राजा से भिखारी कभी भी हो सकता है और एक भिखारी कभी भी राजा भी बन सकता है ,ऐसे में सपना और आपका यह वर्तमान सत्य हुआ या नहीं |" राजा जनक ने सहमति में अपना सिर हिलाया और स्वीकार किया कि आप सत्य कह रहे हैं |अष्टावक्र ने आगे कहा-"यह सपना और आपका वर्तमान आपके नियंत्रण में कदापि भी नहीं है जबकि आप सोच रहे हैं कि वर्तमान आपके नियंत्रण में है और स्वप्न आपके नियंत्रण में नहीं है |आप ऐसा समझ रहे हैं कि सपना असत्य है और वर्तमान सत्य |आप ऐसा गलत सोच रहे है |दोनों पर ही आपका नियंत्रण नहीं है |ऐसे में आपका यह सोचना असत्य हुआ |अगर आप एक को असत्य मानते हैं तो फिर दोनों को ही असत्य मानें और इसी प्रकार अगर एक को सत्य मानते हो तो फिर दोनों ही सत्य है |"राजा जनक इस उत्तर से कुछ संतुष्ट हुए |आगे कई दिनों तक वे अष्टावक्र जी से अद्वेत पर चर्चा करते रहे |सब कुछ स्पष्टतः जानकर वे "विदेह" हो गए अर्थात सब कुछ उस परमब्रह्म का खेल ही मानते रहे |इस प्रकार सब कुछ -सत,असत आदि को जानकर इनसे ऊपर उठ गए |यही अध्यात्म की उच्च अवस्था है जो व्यक्ति को "विदेह" होने की और ले जाती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
राजा जनक अपने रात को देखे स्वप्न से इतने उद्वेलित थे कि उन्होंने देरी करना उचित नहीं समझा और शीघ्रता से तैयार होकर पहुँच गए अपने गुरु अष्टावक्र के पास |अष्टावक्र ने उनको समय से पहले आया देखकर उन्हें आदर सहित बैठाकर आने का प्रयोजन पूछा |राजा जनक ने रात को देखे गए स्वप्न को विस्तार से बताकर पूछा-"हे आचार्य!जो कुछ भी मैंने रात को सपने में देखा वह असत्य है या सत्य तथा जो मैं वर्तमान में हूँ वह सत्य है या असत्य ?"अष्टावक्र महाराज ने उन्हें शांति के साथ बैठाकर जवाब दिया कि "राजन ! न तो स्वप्न असत्य है और न ही वह जो आप वर्तमान में है और अगर सपना असत्य है तो फिर वर्तमान में जो भी आप हैं वह भी असत्य है | इस संसार में कुछ भी असत्य नहीं है , सब सत्य ही है ।"
यह सुनकर राजा जनक आश्चर्यचकित रह गए |उनकी उलझन सुलझने के स्थान पर और ज्यादा बढ़ गयी |उन्होंने पुनः अष्टावक्र से पूछा-"गुरुदेव!मैं कुछ समझा नहीं |कृपा करके इस बात को और अधिक स्पष्ट करने की कृपा करे |"अष्टावक्र ने उत्तर दिया _"राजन ! इस संसार में कोई भी व्यक्ति राजा से भिखारी कभी भी हो सकता है और एक भिखारी कभी भी राजा भी बन सकता है ,ऐसे में सपना और आपका यह वर्तमान सत्य हुआ या नहीं |" राजा जनक ने सहमति में अपना सिर हिलाया और स्वीकार किया कि आप सत्य कह रहे हैं |अष्टावक्र ने आगे कहा-"यह सपना और आपका वर्तमान आपके नियंत्रण में कदापि भी नहीं है जबकि आप सोच रहे हैं कि वर्तमान आपके नियंत्रण में है और स्वप्न आपके नियंत्रण में नहीं है |आप ऐसा समझ रहे हैं कि सपना असत्य है और वर्तमान सत्य |आप ऐसा गलत सोच रहे है |दोनों पर ही आपका नियंत्रण नहीं है |ऐसे में आपका यह सोचना असत्य हुआ |अगर आप एक को असत्य मानते हैं तो फिर दोनों को ही असत्य मानें और इसी प्रकार अगर एक को सत्य मानते हो तो फिर दोनों ही सत्य है |"राजा जनक इस उत्तर से कुछ संतुष्ट हुए |आगे कई दिनों तक वे अष्टावक्र जी से अद्वेत पर चर्चा करते रहे |सब कुछ स्पष्टतः जानकर वे "विदेह" हो गए अर्थात सब कुछ उस परमब्रह्म का खेल ही मानते रहे |इस प्रकार सब कुछ -सत,असत आदि को जानकर इनसे ऊपर उठ गए |यही अध्यात्म की उच्च अवस्था है जो व्यक्ति को "विदेह" होने की और ले जाती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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