मनुष्य जो कुछ भी करता है, वह सोचकर करता है। वह मंदिर जाता हो, चोरी करता हो या अनैतिक काम करता हो, वह सोचकर करता है।
मंदिर जाने के पहले वह मंदिर आने का विचार करता है, तब मंदिर जाता है। अनैतिक काम करने से पहले भी वह विचार करता है। विचार करते समय उस काम के अच्छे-बुरे प्रभाव के बारे में भी सोचता है, लेकिन जब उसके दिमाग पर बुरे विचारों का प्रभाव रहता है, तो वह अपने सभी अच्छे विचारों को अपने ही तर्क से दबा देता है और अपने बुरे विचारों के समर्थन में तर्क भी गढ़ लेता है।
वह अपने तर्को द्वारा मान लेता है कि उसका प्रत्येक गलत काम सही है। ऐसा इसलिए क्याेंकि मनुष्य तार्किक व्यक्ति है। ऐसा होता भी है कि जो व्यक्ति गलत करता है, उसके पास अपने गलत काम के समर्थन में बहुत तर्क होते हैं। शराब पीने वाला आपको मनवा देगा कि वह सही कर रहा है, क्योंकि वह अपनी चालाकी से अपने समर्थन में मजबूत तर्क एकत्र कर लेता है। जैसे किसी वकील के पास आप जाइए और यह कहें कि मैंने कोई दुराचार किया है, तो वह अपने तर्क से यह साबित कर देगा कि आपने गलत नहीं किया। गलत काम करने वालों के पास तर्क बहुत होते हैं।
सत्य को साबित करने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं होती। तर्र्को के द्वारा असत्य को सत्य साबित किया जा सकता है। कई लोग आपको भी यह साबित कर बता देंगे कि अमुक व्यक्ति मनुष्य नहीं पशुतुल्य है। कई बार सत्य बोलने वाले को असत्यवादी लोग चौराहे पर खड़ा करके असत्य साबित कर देते हैं और ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा देते हैं, सुकरात को जहर पिला देते हैं। ऐसे लोग बड़े तार्किक होते हैं। तर्क का जन्म विचार से होता है। शरीर में जो ऊर्जा बनती है, उस ऊर्जा को अगर विवेकपूर्ण कार्यो में खर्च किया जाए तो उसका प्रभाव रचनात्मक होता है। अगर इस ऊर्जा को गलत दिशा में खर्च किया जाए तो मानवता का नाश करने के लिए हिरोशिमा और नागासाकी की घटना घट जाती है। मनुष्य मूल रूप से न अच्छा होता है और न बुरा होता है। वह केवल मनुष्य होता है। बाद में वह जिस परिवेश में पलता है जैसा विचार करता है, वैसा ही बन जाता है।
|| हरिः शरणम् ||
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