वस्तुत: प्रसन्नता या खुशी आपकी मनोदशा पर निर्भर करती है। इसलिए खुश रहना एक हुनर है। तमाम लोगों की धारणा है कि अमुक-अमुक वस्तुओं को हासिल करने से उन्हें खुशी मिलेगी तो उनकी ऐसी सोच बेबुनियाद है। इसका कारण यह है कि खुशी का अहसास किसी वस्तु विशेष पर निर्भर नहीं करता।
दुनिया में तमाम ऐसे धनवान व्यक्ति हैं जिनके पास समस्त भौतिक व विलासितापूर्ण वस्तुएं उपलब्ध हैं। इसके बावजूद आए दिन अखबारों व अन्य प्रचार माध्यमों में इस आशय की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं कि अमुक धनवान व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। स्पष्ट है कि ऐसे लोग स्वयं से या हालात से अप्रसन्न होने की स्थिति में ही आत्महत्या करते हैं। इस प्रकार यह बात स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है कि प्रसन्नता का कारण सिर्फ धन या वैभव ही नहीं है। वस्तुत: खुशी एक सकारात्मक मनोदशा है, जिसमें आप शांति व आनंद की अनुभूति करते हैं।
यदि आपके जीवन में अथक प्रयासों के बाद भी खुशी का अहसास नहीं हुआ है तो इसका अर्थ है कि आपने जीवन के आधारभूत तत्वों की उपेक्षा की है। बात चाहे संबंधों की प्रगाढ़ता की हो या परिस्थिति विशेष से निबटने में कार्यकुशलता की, आप बेहतर तभी कर सकते हैं जब खुश हों। सच तो यह है कि खुश रहना या नहीं रहना आप पर निर्भर है। जीवन में चाहे आप जो भी पा लें, यह मायने नहीं रखता। यदि आप खुश हैं, कुछ और नहीं भी हासिल करते हैं तो आपका क्या बिगड़ जाता है? खुश रहना आपका स्वभाव है। इसलिए आप खुश रहना चाहते हैं। जब आप छोटे थे तो खुश थे, लेकिन जीवन-यात्र में खुशियों को आपने कहीं खो दिया है, क्योंकि आपका मन और शरीर आपकी पहचान को आसपास की चीजों से जोड़कर देखने का आदी हो चुका है। जिसे आप मन कहते हैं उस पर सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। आप जैसे समाज में पले-बढ़े हैं, आपके मन-मस्तिष्क की अवधारणा वैसी ही होगी। आपके मन-मस्तिष्क में भी वही है जो आपने समाज में देखा है। आप इन चीजों से इतने गहन रूप में जुड़ गए हैं कि यह प्रवृत्ति आपकी परेशानियों का मूल कारण बन गई है।
II हरि:: शरणम् II
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