Tuesday, April 8, 2014

प्रेम ही परमेश्वर है |

         प्रेम ही संसार में प्रेरक शक्ति है, जो निरंतर स्फूर्त रखता है और बड़े से बड़ा काम करने को प्रेरित करता है। यही प्रेम सर्वव्यापी होकर ईश्वर का रूप ले लेता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन..
            प्रेम सर्वसाक्षी, सर्वव्यापी और सर्वत्र है। चेतन और अचेतन में, व्यष्टि और समष्टि में यही भगवत्प्रेम आकर्षक शक्ति के रूप में प्रकट होता है। संसार में यही एक प्रेरक शक्ति है। इसी प्रेम की प्रेरणा से ईसा मानव जाति के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करता है और बुद्ध एक प्राणी तक के लिए, माता अपनी संतान के लिए और पुरुष स्त्री के लिए कुछ भी कर सकता है। इसी प्रेम की प्रेरणा से मनुष्य अपने देश के लिए प्राण निछावर करने को उद्यत रहते हैं। संसार की यह प्रेरक शक्ति प्रेम निर्लेप और सभी में प्रकाशमान है। इसके बिना संसार क्षण भर में चूर्ण होकर नष्ट हो जाएगा। यह प्रेम ही परमेश्वर है।
             'पति से कोई पत्नी पति के लिए प्रेम नहीं करती, वरन पति में जो आत्मा है, उसी के लिए वह प्रेम करती है। कोई पति पत्नी से पत्नी के लिए नहीं, वरन उसमें जो आत्मा है, उसके लिए प्रेम करता है। कोई किसी भी चीज पर केवल आत्मा को छोड़कर और किसी अन्य बात के लिए प्रेम नहींकरता। (वृहदारण्यकोपनिषद)।' यह भी उसी प्रेम का ही एक रूप है।
             इस खेल को छोड़कर अलग खड़े हो जाओ, उसमें अपने को शामिल न करो, वरन इस अद्भुत दृश्य को, इस अपूर्व नाटक को, एक के बाद दूसरे अंक के अभिनय को देखते चलो और इस अद्भुत स्वर-संगति को सुनते जाओ। सभी उसी प्रेम की अभिव्यक्तियां हैं। स्वार्थपरायणता में भी वही आत्मा या 'स्व' अनेक हो जाता है और बढ़ता ही जाता है। वही एक आत्मा मनुष्य का विवाह हो जाने पर दो आत्मा और बच्चे पैदा होने पर अनेक आत्मा हो जाएगी। वही पूरा गांव हो जाएगा, शहर हो जाएगा और फिर भी बढ़ता ही जाएगा, जब तक कि वह सारी दुनिया को आत्मस्वरूप अनुभव न करने लगे।
               वही आत्मा अंत में सभी पुरुषों, सभी स्त्रियों, सभी बच्चों, सभी जीवधारियों, यहां तक कि समग्र विश्व को अपने में ढक लेगा। वही सामान्य प्रेम आगे चलकर बढ़कर सर्वव्यापी प्रेम अर्थात अनंत प्रेम का स्वरूप धारण कर लेगा और वही प्रेम ही तो ईश्वर है।
               आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म-दिन है |आप सभी को रामनवमी की शुभकामनाएं |
                   || हरिः शरणम् ||

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