गुरु-9
एक विशाल घना जंगल था।इस जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी निवास करते थे।इस जंगल में कई शिकारी शिकार करने के लिए भी चले आया करते थे। उसी जंगल में एक कबूतर भी रहा करता था। वह जीवनसाथी की तलाश में इधर उधर भटक रहा था। अन्ततः उसकी तलाश पूरी हुई और उसे अपने योग्य एक कबूतरी मिल ही गयी। अब वे दोनों, कबूतर और कबूतरी उसी जंगल में प्रेमपूर्वक रहने लगे। कबूतर का प्रेम कबूतरी के प्रति दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। वह उसका पूरा ध्यान रखता था और उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी करता था। कहने का अर्थ है कि वह कबूतरी के प्रति पूर्ण रूप से आसक्त हो गया था।समय पाकर कबूतरी ने गर्भधारण किया। कबूतर युगल ने अपना घौंसला बनाया। गर्भकाल पूरा होने के बाद कबूतरी ने घौंसले में अंडे दिए। अंडे देने के बाद कबूतरी उन अंडों को परिपक्व करने के लिए उन पर बैठी रहती। वह अपने घौंसले से बाहर कहीं आ जा नहीं सकती थी, यहां तक कि चुग्गा पानी के लिए भी नहीं। उसके चुग्गे पानी की व्यवस्था भी कबूतर को करनी पड़ती थी।
कुछ समय उपरांत अंडों से प्यारे प्यारे बच्चे निकल आये।कबूतर युगल अपने बच्चों से बहुत प्यार करते थे। वे दोनों अपने बच्चों के पास बैठकर उनका स्पर्श पाकर बड़े खुश होते थे। अपने बच्चों के कोमल पंख और उनका फुदकना देखकर वे अपनी सुध बुध तक खो बैठते थे।दोनों अपने बच्चों के लिए दिन भर चुग्गा पानी की व्यवस्था करते और उनको खिला पिलाकर बड़े प्रसन्न होते। रात को दोनों अपने बच्चों को अपने सीने से लगाकर विश्राम करते। इस प्रकार धीरे धीरे दोनों का अपने बच्चों के प्रति मोह बढ़ता जा रहा था। दोनों ही उनके साथ मोह के बंधन में बंध गए थे।अब एक क्षण के लिए भी कबूतर का अपनी पत्नी कबूतरी व बच्चों से वियोग सहन नहीं होता था।वास्तव में देखा जाए तो कबूतर कबूतरी भगवान की माया से मोहित हो रहे थे, भगवान की माया है ही बांधने वाली।अगर यह माया न हो तो संसार-चक्र चल ही नहीं सकता। माया के बंधन में बंधा जीव अपने शरीर के रहते मुक्त हो ही नहीं सकता और अनंतकाल तक संसार के आवागमन चक्र में भटकता रहता है। इसीलिए कबीर ने माया को महाठगिनी कहा है। माया के जाल में उलझने से कोई विरला ही बच सकता है, भला कबूतर जैसे भोले भाले प्राणी के उलझने से बचने के बारे में सोचा भी कैसे जा सकता है?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
एक विशाल घना जंगल था।इस जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी निवास करते थे।इस जंगल में कई शिकारी शिकार करने के लिए भी चले आया करते थे। उसी जंगल में एक कबूतर भी रहा करता था। वह जीवनसाथी की तलाश में इधर उधर भटक रहा था। अन्ततः उसकी तलाश पूरी हुई और उसे अपने योग्य एक कबूतरी मिल ही गयी। अब वे दोनों, कबूतर और कबूतरी उसी जंगल में प्रेमपूर्वक रहने लगे। कबूतर का प्रेम कबूतरी के प्रति दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। वह उसका पूरा ध्यान रखता था और उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी करता था। कहने का अर्थ है कि वह कबूतरी के प्रति पूर्ण रूप से आसक्त हो गया था।समय पाकर कबूतरी ने गर्भधारण किया। कबूतर युगल ने अपना घौंसला बनाया। गर्भकाल पूरा होने के बाद कबूतरी ने घौंसले में अंडे दिए। अंडे देने के बाद कबूतरी उन अंडों को परिपक्व करने के लिए उन पर बैठी रहती। वह अपने घौंसले से बाहर कहीं आ जा नहीं सकती थी, यहां तक कि चुग्गा पानी के लिए भी नहीं। उसके चुग्गे पानी की व्यवस्था भी कबूतर को करनी पड़ती थी।
कुछ समय उपरांत अंडों से प्यारे प्यारे बच्चे निकल आये।कबूतर युगल अपने बच्चों से बहुत प्यार करते थे। वे दोनों अपने बच्चों के पास बैठकर उनका स्पर्श पाकर बड़े खुश होते थे। अपने बच्चों के कोमल पंख और उनका फुदकना देखकर वे अपनी सुध बुध तक खो बैठते थे।दोनों अपने बच्चों के लिए दिन भर चुग्गा पानी की व्यवस्था करते और उनको खिला पिलाकर बड़े प्रसन्न होते। रात को दोनों अपने बच्चों को अपने सीने से लगाकर विश्राम करते। इस प्रकार धीरे धीरे दोनों का अपने बच्चों के प्रति मोह बढ़ता जा रहा था। दोनों ही उनके साथ मोह के बंधन में बंध गए थे।अब एक क्षण के लिए भी कबूतर का अपनी पत्नी कबूतरी व बच्चों से वियोग सहन नहीं होता था।वास्तव में देखा जाए तो कबूतर कबूतरी भगवान की माया से मोहित हो रहे थे, भगवान की माया है ही बांधने वाली।अगर यह माया न हो तो संसार-चक्र चल ही नहीं सकता। माया के बंधन में बंधा जीव अपने शरीर के रहते मुक्त हो ही नहीं सकता और अनंतकाल तक संसार के आवागमन चक्र में भटकता रहता है। इसीलिए कबीर ने माया को महाठगिनी कहा है। माया के जाल में उलझने से कोई विरला ही बच सकता है, भला कबूतर जैसे भोले भाले प्राणी के उलझने से बचने के बारे में सोचा भी कैसे जा सकता है?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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