Friday, July 19, 2019

गुरु-3

गुरु-3   
    हमारा यह स्थूल शरीर पांच भौतिक तत्वों से बना है, पृथ्वी,जल, वायु,अग्नि और आकाश।एक भी तत्व की कमी अथवा अनुपस्थिति स्थूल शरीर को सदैव के लिए अनुपयोगी बना देती है।इन पांच तत्वों से भी दत्तात्रेयजी ने शिक्षा प्राप्त की है। इसी आधार पर दतात्रेय महाराज कहते हैं कि मेरी प्रथम गुरु है, पृथ्वी। पढ़ने और सुनने में यह एक साधारण सी बात प्रतीत होती है और आश्चर्य भी होता है कि क्या पृथ्वी से भी कुछ सीखने को मिल सकता है? हाँ, पृथ्वी भी हमें कुछ न कुछ सिखाती ही है,बस हमें हमारी बुद्धि और दृष्टि का उपयोग दत्तात्रेय की तरह करना होगा।
      पृथ्वी से शिक्षा मिलती है, धैर्य रखने और क्षमा करने की। संसार के अरबों खरबों प्राणी इस धरा पर निवास करते हैं। सभी अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रयास करते हैं।यह प्रयास होता है, इसी पृथ्वी पर।भोजन के लिए धरती से अनाज प्राप्त करने के लिए इसकी सतह को चीरते हुए हल चलाकर बीज बोए जाते हैं। जल प्राप्त करने के लिए इसके सीने में छेद किये जाते हैं। घर बनाने के लिए पृथ्वी पर उगे जंगल को काटकर लकड़ी प्राप्त की जाती है, पहाड़ों को तोड़कर पत्थर लिए जाते हैं। क्या पृथ्वी कभी इस बात की शिकायत करती है, क्या कभी उसको चीरे जाने पर वह रोती, चिल्लाती है ? नहीं रोती चिल्लाती, कोई शिकायत नहीं करती, क्यों? क्योंकि उसके पास इन सबको सहन करने की क्षमता है।यही उसका धैर्य है।क्या पृथ्वी कभी मनुष्य द्वारा इस प्रकार व्यवहार किये जाने पर हमसे कोई प्रतिशोध लेती है? नहीं लेती न । जब इस संसार में छोटी छोटी बातों पर प्राणी एक दूसरे से बदला लेने को आतुर रहते हैं फिर भी  क्यों प्रतिशोध नहीं लेती यह पृथ्वी ? क्योंकि पृथ्वी अपने प्रति किये जाने वाले सभी प्रकार के अपराधों को क्षमा करना जानती है। कबीर ने भी कहा है-
खोद खाद धरती सहे,काट कूट वनराय।
कुटिल वचन साधु सहे, और से सहे न जाय ।।
     इन्हीं दो क्षमताओं, धैर्य और क्षमा के कारण दत्तात्रेयजी ने पृथ्वी को अपना प्रथम गुरु माना है। मनुष्य को अगर सहजावस्था को उपलब्ध होना है तो उसमें इन दो क्षमताओं अर्थात धैर्य और क्षमा का होना आवश्यक है। अगर हमें साधारण मनुष्य से ऊपर उठकर साधुत्व को उपलब्ध होना है, तो हमारे में धैर्य रखने और क्षमा करने के दोनों गुण होना आवश्यक है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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