Monday, July 29, 2019

गुरु-13

गुरु-13
           कामिनी का प्रभाव इतना तेज होता है कि बड़े से बड़े संत भी इनसे मुक्त हो चुके हों, कहा नहीं जा सकता। इसीलिए संतों ने सदैव कामिनी से सतर्क रहने को कहा है। स्त्री के हाव भाव से आकर्षित हो व्यक्ति कभी भी अपना संयम खो सकता है।पतंगे से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हम उसकी तरह रूप के आकर्षण में अपना पतन न कर बैठें।अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए स्त्री को केवल भोग्या ही न समझें।जब हम स्त्री को केवल भोग्या ही समझ बैठते हैं, समस्या तभी पैदा होती है। प्रत्येक स्त्री को देवी और मातृ स्वरूप समझें।सबसे उचित तो यही है कि कामिनी के संपर्क में आने से सदैव बच कर रहा जाए।
        स्वामी विवेकानंद जब शिकागो(सं.रा. अमेरिका) की यात्रा पर थे तब उन्होंने वहां पर विश्व धर्म सम्मेलन में शानदार और प्रभावी भाषण दिया था। उनके विचार व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता देखकर एक अति सुंदर स्थानीय महिला उनपर मोहित हो गई थी। वह स्त्री उनके पास पहुंची और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। स्वामीजी ने विवाह करने के पीछे उसकी मंशा पूछी तो उस महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा ही एक पुत्र चाहती हूँ। स्वामी विवेकानन्द ने कहा-"माते, आप मेरे जैसा ही पुत्र चाहती हैं न, तो फिर विवाह करनेका झंझट ही क्यों करती हैं?आज से आप मेरी माँ हुई और मैं आपका पुत्र।"
           हाँ, स्वामी विवेकानन्द जी की दृष्टि में जो स्थान एक स्त्री का था, वैसा स्थान प्रत्येक मनुष्य के भीतर स्त्री का होना चाहिए, तभी पतन से बचा जा सकता है। आइए!आगे चलते हैं, गुरु भंवरे के पास।
       भौंरा जिस प्रकार विभिन्न फूलों से रस ग्रहण कर अपना पेट भरता है, उसी प्रकार एक साधु को चाहिए कि वह किसी एक व्यक्ति अथवा परिवार पर आश्रित नहीं रहे बल्कि कई परिवारों से जो भी मिले, खाकर अपना पेट भर ले।साथ ही यह भी ध्यान रखे कि भंवरे की तरह एक ही फूल पर आसक्त न हो। जैसे भंवरा एक फूल के रस में आसक्त हो जाता है तब उसे यह ध्यान ही नहीं रहता कि सूर्यास्त होने वाला है। सूर्यास्त होते ही फूल की पंखुड़ियां बन्द हो जाती है और भौंरा उसमें कैद होकर अपना जीवन गंवा बैठता है।
        जिस प्रकार भौंरा विभिन्न फूलों से रस ग्रहण करता है वैसे ही हमें विभिन्न शास्त्रों से शिक्षा का सार ग्रहण करनी चाहिए।हमें शास्त्रों का मंथन करते हुए मक्खन से मतलब रखना चाहिए, केवल छाछ पा लेने का क्या लाभ?संत कबीर ने सत्य ही कहा है-
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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