Tuesday, July 30, 2019

गुरु-14

गुरु-14
           दत्तात्रेयजी ने साथ ही साथ भौंरे की  ही एक अन्य प्रजाति मधुमक्खी के बारे में कहते हैं कि उससे हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए। मधुमक्खी रात दिन मेहनत कर शहद का संग्रह करती है,परन्तु उसका किया हुआ यह मधु-संग्रह कोई अन्य जीव ही चुरा ले जाता है।इस प्रकार मधुमक्खी का केवल संग्रहित शहद ही उसके हाथ से नहीं निकलता बल्कि कई बार उसका जीवन भी दांव पर लग जाता है।अतः मधुमक्खी से सीख लेते हुए साधु को भी संग्रह करने की भावना से सदैव दूर रहना चाहिये।
     दत्तात्रेय के अगले गुरु है, हाथी। हाथी, पृथ्वी पर रहने वाला विशालतम प्राणी, जिसकी देह के बल की तुलना किसी अन्य प्राणी से नहीं कि जा सकती। इतना बलवान जीव भी अपनी आसक्ति के कारण शिकारियों के जाल में फंस जाता है।शिकारी को जब किसी हाथी को पकड़ना होता है, तो वे एक विशाल और गहरा गड्ढा खोदते हैं। उस गड्ढे को विभिन्न प्रकार के वृक्षों की टहनियों से ढक दिया जाता है। उस पर कागज़ की बनी एक हथिनी को खड़ा कर दिया जाता है। बलवान हाथी स्पर्श सुख प्राप्त करने के लिए उस कागज़ की हथिनी को वास्तविक हथिनी समझकर उस गड्ढे की तरफ खींचा चला आता है। टहनियां उस हाथी का वजन सहन नहीं कर पाती है, वे टूट जाती है और बलवान हाथी उस गहरे गड्ढे में गिर जाता है। बहुत प्रयास करने के बाद भी वह उससे बाहर नहीं निकल पाता। कई दिन की भूख-प्यास से बलवान हाथी भी निर्बल हो जाता है और शिकारी उसको पकड़ कर फिर उसका यथोचित उपयोग करते हैं।
       ठीक इस हाथी की तरह ही मनुष्य भी स्त्री का स्पर्श सुख पाने को सदैव आतुर रहता है। हाथी से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि स्वप्न में भी कभी काठ की स्त्री का भी स्पर्श नहीं करना चाहिए अन्यथा उसका पतन होना निश्चित है। अतः विवेकवान पुरुष को एक स्त्री को कभी भी भोग्या रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए, नहीं तो वह या तो उस स्त्री के जाल में फंस कर अधोगति को प्राप्त होगा, नहीं फिर किसी अन्य मनुष्य के हाथों प्रतिस्पर्धी के रूप में जीवन खो बैठेगा। हथिनी से स्पर्श सुख का अधिकार प्राप्त करने के लिए हाथियों में  प्रतिस्पर्धा होती है जिसमें एक हाथी ही विजयी हो पाता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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