Friday, July 26, 2019

गुरु-10

गुरु-10
       कबूतर परमात्मा की मायाशक्ति से सम्पूर्ण रूप से बंध चुका था।दिन-रात केवल अपनी पत्नी और बच्चों का ही चिंतन।परंतु विधि का विधान देखिए, सब जीव उसी के तो वश में है। एक दिन कबूतर युगल अपने बच्चों के लिए दाना पानी लाने गए हुए थे और पीछे से उस पेड़ के नीचे आकर एक बहेलिए ने अपना जाल फैला दिया, जिस पेड़ पर उस कबूतर का घौंसला था। कबूतर के बच्चे तो आखिर बच्चे ही थे। उन्होंने कभी बहेलिए और उसके जाल को देखा तक नहीं था। प्रतिदिन की तरह उस दिन भी घौंसले से बाहर निकले और नीचे आकर फुदकने लगे। फुदकते फुदकते आखिर बहेलिए के जाल में आकर फंस ही गए। जाल में फंसकर बच्चे उससे बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगे और अपनी चोंच को खोलकर सहायता के लिए जोर जोर से चीं चीं करते हुए अपनी मां को पुकारने लगे।कबूतरी कुछ ही दूरी पर थी, पुकार सुनकर बच्चों के पास तुरंत ही उड़ आई। उसने अपने बच्चों को बहेलिए के जाल में फंसा देखा और ममता के मोह में अपना विवेक खो बैठी। उनको जाल के बंधन से मुक्त कराने के प्रयास में वह खुद ही जाल में उलझ गई।
       थोड़ी ही देर बाद कबूतर भी मुँह में दाना दबाए अपने घर लौटा। उसने देखा कि उसकी पत्नी और बच्चे बहेलिए के जाल में जकड़े जा चुके हैं। वह व्याकुल होकर विलाप करने लगा। "हाय!अब उसका क्या होगा?अपनी प्रिया और बच्चों के बिना मेरा शेष जीवन कैसे बीतेगा? अभी तक तो मेरी जीवन की आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई, मेरा गृहस्थ जीवन बसने से पहले ही उजड़ गया। बिना पत्नी के विधुर का जीवन भी क्या कोई जीवन होता है? ऐसे विधुर के जीवन में जलन और व्यथा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ।" इस प्रकार विलाप करता हुआ यह जानते हुए भी कि उसकी पत्नी और बच्चे मृत्यु के मुख में है, वह मूर्ख कबूतर भी बहेलिए के जाल में कूद पड़ा और फंस गया। कबूतर के पूरे परिवार को जाल में फंसा देखकर बहेलिया बड़ा प्रसन्न हुआ और सबको ले चलता बना।
       दत्तात्रेयजी राजा यदु को कह रहे हैं कि राजन्! इस कबूतर से मैंने यह शिक्षा ली है कि किसी के साथ भी अत्यधिक स्नेह और आसक्ति नहीं करनी चाहिए अन्यथा उसकी बुद्धि स्वतंत्रता खोकर दीन हो जाएगी जिससे उसको एक दिन कबूतर की तरह अपना जीवन तक खोना पड़ जायेगा।जो व्यक्ति अपने कुटुम्बियों, विषयों आदि के सुख में ही आसक्त रहता है, वह एक दिन सुध बुध खोकर अपने जीवन में शांति तक को खो बैठता है।यह मनुष्य जीवन मुक्ति का द्वार है परंतु व्यक्ति गृहस्थाश्रम के सुख में खोकर अपना लक्ष्य भूल जाता है और पतन को प्राप्त होता है।इसलिए वीतरागी पुरुष को स्नेह का त्याग करना चाहिए, यही मोक्ष का साधन है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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