गुरु-6
"आकाश सर्वत्र उपस्थित है", भला इसमें सीखने की क्या बात हुई? हाँ इस से भी सीखा जा सकता है, बस आवश्यकता है, बुध्दि के उपयोग में लेने की। हम सब जानते हैं कि आकाश सर्वत्र उपस्थित है परंतु इस बात से भी एक महत्वपूर्ण सीख मिलती है। घड़े में स्थित आकाश घटाकाश कहलाता है,किसी मठ में स्थित आकाश मठाकाश कहलाता है परंतु वास्तव में आकाश एक ही है, वह अपरिच्छिन्न यानि अखण्ड है। इसी प्रकार चर-अचर प्राणियों के विभिन्न रूप होते हुए भी सब में एक समान ही ब्रह्म उपस्थित है, सबमें वही एक परमात्मा निवास करते हैं।आकाश से हमें यह ज्ञान मिलता है।
इतने विवेचन के बाद घड़े और मठ में जो आकाश दिखलाई देने लगा है, उसका कारण घड़े और मठ की मिट्टी से बनी दीवारें है, जो इनमें और शेष बाहर के आकाश में भेद करती दिखलाई देती है। वास्तव में देखा जाए तो बाहर और भीतर के आकाश में किसी प्रकार का कोई विभाजन है ही नहीं और न ही कभी किया जा सकता है। इसी प्रकार ब्रह्म भी अखण्ड है केवल पांच तत्वों से बने शरीर के कारण भिन्न भिन्न प्रतीत हो रहा है। ये स्थूल शरीर ही निराकार ब्रह्म को साकार रूप से प्रकट करते हैं। शरीर मिलते ही यही ब्रह्म केवल राम, कृष्ण, बुद्ध आदि में ही नहीं बल्कि विभिन्न रूपों में प्राणियों व प्रत्येक वस्तु और स्थान में दिखलाई पड़ने लगते हैं । वास्तव में ब्रह्म सर्वत्र है तथा असीम और अखंड है।
कहीं पर आग लगती है तो वह आकाश में दिखलाई पड़ती है, आंधी तूफान, बरसात आती है, बादल उमड़ते घुमड़ते हैं,इतना सब कुछ होने पर आकाश इन सबसे अछूता रहता है, मानो कुछ हुआ ही न हो।इसी प्रकार भूतकाल में चाहे कुछ हुआ हो, वर्तमान में चाहे जो कुछ हो रहा हो अथवा भविष्य में कुछ भी होनेवाला हो, आत्मा सदैव उससे अछूता ही रहेगा।आत्मा के साथ इन सब बातों का स्पर्श तक नहीं होता है। यह सीख हमें आकाश से ही मिलती है।
परंतु हम अपने जीवन को ठीक इसके विपरीत होकर जीते हैं। संसार में होने वाली प्रत्येक घटना हमें प्रभावित करती है। हम या तो भूतकाल में विचरण करते रहते हैं या भविष्य की कल्पना में खोए रहते हैं।वर्तमान में कभी जीते ही नहीं है।हम न तो भूतकाल में घटित किसी घटना को परिवर्तित कर सकते हैं और न ही भविष्य में घटित होने को अपने अनुसार घटित करा सकते हैं तो फिर वर्तमान को क्यों व्यर्थ के चिंतन से नष्ट करें?हमें आकाश से यही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि भूत भविष्य से हम विचलित न होकर सदैव आत्मा की शुद्धता को बनाये रखें,आत्मा कभी इनसे प्रभावित हो ही नहीं सकती। हम शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को आत्मा पर होने वाला प्रभाव मान लेते है, यही गलती कर बैठते हैं और जीवन के आनंद से बहुत दूर चले जाते हैं।
आकाश जिस प्रकार अखंड है उसी प्रकार ब्रह्म भी अखण्ड है और सभी प्राणियों में समान रूप से उपस्थित है। जिस प्रकार बादल,अग्नि,धूल इत्यादि आकाश को प्रभावित नहीं करते उसी प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य हमें अर्थात आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकते। ये दो महत्वपूर्ण शिक्षाएं हमें आकाश तत्व से ग्रहण करनी चाहिए।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
"आकाश सर्वत्र उपस्थित है", भला इसमें सीखने की क्या बात हुई? हाँ इस से भी सीखा जा सकता है, बस आवश्यकता है, बुध्दि के उपयोग में लेने की। हम सब जानते हैं कि आकाश सर्वत्र उपस्थित है परंतु इस बात से भी एक महत्वपूर्ण सीख मिलती है। घड़े में स्थित आकाश घटाकाश कहलाता है,किसी मठ में स्थित आकाश मठाकाश कहलाता है परंतु वास्तव में आकाश एक ही है, वह अपरिच्छिन्न यानि अखण्ड है। इसी प्रकार चर-अचर प्राणियों के विभिन्न रूप होते हुए भी सब में एक समान ही ब्रह्म उपस्थित है, सबमें वही एक परमात्मा निवास करते हैं।आकाश से हमें यह ज्ञान मिलता है।
इतने विवेचन के बाद घड़े और मठ में जो आकाश दिखलाई देने लगा है, उसका कारण घड़े और मठ की मिट्टी से बनी दीवारें है, जो इनमें और शेष बाहर के आकाश में भेद करती दिखलाई देती है। वास्तव में देखा जाए तो बाहर और भीतर के आकाश में किसी प्रकार का कोई विभाजन है ही नहीं और न ही कभी किया जा सकता है। इसी प्रकार ब्रह्म भी अखण्ड है केवल पांच तत्वों से बने शरीर के कारण भिन्न भिन्न प्रतीत हो रहा है। ये स्थूल शरीर ही निराकार ब्रह्म को साकार रूप से प्रकट करते हैं। शरीर मिलते ही यही ब्रह्म केवल राम, कृष्ण, बुद्ध आदि में ही नहीं बल्कि विभिन्न रूपों में प्राणियों व प्रत्येक वस्तु और स्थान में दिखलाई पड़ने लगते हैं । वास्तव में ब्रह्म सर्वत्र है तथा असीम और अखंड है।
कहीं पर आग लगती है तो वह आकाश में दिखलाई पड़ती है, आंधी तूफान, बरसात आती है, बादल उमड़ते घुमड़ते हैं,इतना सब कुछ होने पर आकाश इन सबसे अछूता रहता है, मानो कुछ हुआ ही न हो।इसी प्रकार भूतकाल में चाहे कुछ हुआ हो, वर्तमान में चाहे जो कुछ हो रहा हो अथवा भविष्य में कुछ भी होनेवाला हो, आत्मा सदैव उससे अछूता ही रहेगा।आत्मा के साथ इन सब बातों का स्पर्श तक नहीं होता है। यह सीख हमें आकाश से ही मिलती है।
परंतु हम अपने जीवन को ठीक इसके विपरीत होकर जीते हैं। संसार में होने वाली प्रत्येक घटना हमें प्रभावित करती है। हम या तो भूतकाल में विचरण करते रहते हैं या भविष्य की कल्पना में खोए रहते हैं।वर्तमान में कभी जीते ही नहीं है।हम न तो भूतकाल में घटित किसी घटना को परिवर्तित कर सकते हैं और न ही भविष्य में घटित होने को अपने अनुसार घटित करा सकते हैं तो फिर वर्तमान को क्यों व्यर्थ के चिंतन से नष्ट करें?हमें आकाश से यही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि भूत भविष्य से हम विचलित न होकर सदैव आत्मा की शुद्धता को बनाये रखें,आत्मा कभी इनसे प्रभावित हो ही नहीं सकती। हम शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को आत्मा पर होने वाला प्रभाव मान लेते है, यही गलती कर बैठते हैं और जीवन के आनंद से बहुत दूर चले जाते हैं।
आकाश जिस प्रकार अखंड है उसी प्रकार ब्रह्म भी अखण्ड है और सभी प्राणियों में समान रूप से उपस्थित है। जिस प्रकार बादल,अग्नि,धूल इत्यादि आकाश को प्रभावित नहीं करते उसी प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य हमें अर्थात आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकते। ये दो महत्वपूर्ण शिक्षाएं हमें आकाश तत्व से ग्रहण करनी चाहिए।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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