Thursday, July 18, 2019

गुरु-2

गुरु-2
       दत्तात्रेय भगवान आगे उन सभी साधनों का एक एक कर के वर्णन करते हैं, जिनसे उन्होंने अपने जीवन में कोई न कोई शिक्षा ली है।इस प्रकार उन्होंने राजा यदु को अपने 24 गुरु बतलाए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं- पृथ्वी,जल,आकाश,वायु,अग्नि,चंद्रमा,सूर्य,कबूतर, अजगर,समुद्र,पतंग, भौंरा या मधुमख्खी, हाथी, शहद निकालने वाले,हरिन, मछली,पिङ्गला वेश्या,कुरर पक्षी, बालक,कुआंरी कन्या,बाण बनाने वाला,सर्प, मकड़ी और भृङ्गी कीट।
         दत्तात्रेय जी ने तो राजा यदु से हुए इस संवाद में अपने केवल 24 गुरुओं की चर्चा की है। 24 ही क्यों, गुरु इससे अधिक की संख्या में भी हो सकते हैं क्योंकि इस संसार में प्रत्येक वस्तु,व्यक्ति, परिस्थिति आदि से भी हमें कोई न कोई सीख मिलती रहती है और यह सीख हमें हर बार एक नया गुरु प्रदान कर देती है। हाँ, यह बात अलग है कि आधुनिक युग में हम सीख मिल सकने वाले ऐसे प्रत्येक साधन की उपेक्षा करते रहते हैं।जिसकी हम उपेक्षा करते हैं,फिर भला वह हमारा गुरु कैसे हो सकता है?गुरु की कभी उपेक्षा नहीं की जाती अन्यथा हमें ज्ञान कैसे उपलब्ध होगा?
             राह चलते हुए लगी ठोकर से गिर जाना भी हमें सीख देता है कि रास्ते चलते हुए भली भांति देखते हुए संभलकर चलना चाहिए। अगर हम ठोकर लगने के बाद दुबारा ठोकर खा कर गिर जाते हैं तो इसका कारण है कि हमने पहली ठोकर  खाकर भी अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं किया, अगर किया हुआ होता तो यही एक ठोकर हमारा गुरु बनकर हमें एक सीख दी जाती।कहने का अर्थ है कि हमें इस संसार में कदम कदम पर ज्ञान मिलने के अवसर है, बस आवश्यकता है अपने विवेक का उयोग करने की, फिर संसार के प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति और परिस्थिति से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
         महाभारतकाल का ही एक उदाहरण है, जब एकलव्य को धनर्विद्या सीखाने से गुरु द्रोणाचार्य ने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था। एकलव्य ने सोच लिया था कि धनर्विद्या सीखूंगा तो केवल आचार्य द्रोण से ही। द्रोण के इनकार से भी उसकी सीखने की ललक कम नहीं हुई, बना ली आचार्य द्रोण की मिट्टी की मूर्ति और करने लगा उसको ही गुरु मानकर धनर्विद्या का अभ्यास।परिणाम हमारे सामने है।अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर हुआ है,एकलव्य।परंतु माने हुए गुरु की उपेक्षा नहीं की फिर भी उसने। आचार्य द्रोण ने गुरुदक्षिणा में उससे दांये हाथ का अंगूठा मांगा और तत्काल दे दिया एकलव्य ने, बिना किसी हिचक के।भले ही एकलव्य ने अर्जुन की तरह धनर्विद्या के बल पर द्रोपदी को न जीता हो, कोई युद्ध नहीं किया हो, इससे वह अर्जुन से कम धनुर्धर सिद्ध नहीं होता। अंगूठा देकर भी वह तर्जनी और मध्यमा अंगुली का उपयोग कर धनुष चला लेता था और अर्जुन से अच्छा धनुर्धर सिद्ध हुआ। आज अर्जुन के समक्ष एकलव्य को अधिक आदर के साथ याद किया जाता है।
कल से दत्तात्रेयजी के एक एक गुरु पर चर्चा प्रारम्भ करेंगे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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