Tuesday, July 23, 2019

गुरु-7

गुरु-7
     दत्तात्रेयजी का चौथा गुरु है, जल।जल का शरीर निर्माण में काम आने वाले पांच तत्वों में महत्वपूर्ण स्थान है।जल स्वभाव से ही शुद्ध,चिकना,मधुर और पवित्रता प्रदान करने वाला है।जल के स्वभाव की तरह ही मनुष्य का स्वभाव होना चाहिए।मनुष्य का हृदय शुद्ध हो, वाणी में स्पष्टता और मधुरता हो तथा अंतर्मन पवित्र हो, तभी वह संसार में सबका प्रिय होगा।जल सभी को पवित्र करने वाला होता है तभी गंगा सहित सभी नदियों में लोग स्वयं को पवित्र करने के लिए डुबकी लगाने को आतुर रहते हैं।इसी प्रकार जल से शिक्षा ग्रहण करने वाला भी स्वयं के दर्शन,स्पर्श और नाम के उच्चारण से सबको पवित्र करने वाला होता है।
           दत्तात्रेयजी का पांचवा गुरु है, अग्नि।अग्नि तेजस्वी और ज्योतिर्मय होती है। अग्नि को कोई भी अपने तेज से किसी भी प्रकार दबा नहीं सकता। अग्नि के पास संग्रह-परिग्रह के लिए कुछ भी नहीं होता, सब कुछ अपने पेट में  ही समाहित कर लेती है फिर भी उस वस्तु के दोष-गुण ग्रहण नहीं करती उसी प्रकार साधक को भी चाहिए कि वह भी तेजस्वी, साधना करता हुआ देदीप्यमान बने।वह केवल भोजन मात्र का ही संग्रही हो, किसी के भी दोष-गुण से प्रभावित न हो और सभी इंद्रियों का समुचित उपयोग करते हुए विषयों से निर्लिप्त रहे।
           अग्नि का एक और गुण है कि वह प्रकट भी होती है और अप्रकट भी रहती है। इससे हमें यह सीख लेनी चाहिए कि साधक आवश्यकता हो तब प्रकट हो जाए अन्यथा सबके मध्य रहते हुए भी गुप्त रूप से रहे। उसका प्रकट होना तभी लाभदायक है, जब कल्याण की भावना रखने वाले व्यक्ति उससे मार्गदर्शन लेना चाहते हों अन्यथा उसे सदैव अपने आपको अप्रकट ही रखना चाहिए।
       अग्नि विभिन्न स्रोतों में उसी के आकार में आड़ी, टेढ़ी, चौड़ी और सपाट रूप से प्रकट होती है,लेकिन वास्तव में वह वैसी होती नहीं है।इसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि संसार में जिनके मध्य वह निवास करता है, उन्हीं के अनुरूप दिखलाई पड़े परंतु भीतर से वह अपना आध्यत्मिक स्वभाव बनाये रखे।जिस प्रकार अग्नि यज्ञ में आहुति लेकर सब कुछ अशुभ को भस्म कर देती है उसी प्रकार साधक को भी कल्याण की इच्छा रखने वाले के सभी अशुभ को समाप्त कर देने का प्रयास करना चाहिए।
      इस प्रकार दत्तात्रेयजी महाराज ने एक एक कर पांचों भौतिक तत्वों से शिक्षा प्राप्त कर अपना गुरु माना है।अब हम स्थूल शरीर के तत्वों से बाहर निकलकर चलते हैं, अंतरिक्ष में स्थित चंद्रमा की ओर, जो कि उनका छठा गुरु है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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