Monday, April 1, 2019

रामकथा-36-रामावतार के हेतु-

रामकथा-36-रामावतार के हेतु-
      श्रीहरि ने जय विजय के लिए असुर योनि का तो प्रबंध कर दिया परंतु केवल इतना आधार उनके अवतार लेने के लिए पर्याप्त नहीं है।वे सोच रहे हैं कि और ऐसा क्या किया जाए कि पृथ्वी का भार उतारने के लिए अवतार लेने का पूर्ण कारण बन जाये। केवल अवतार लेकर भी क्या होगा, आगे उस जीवन में क्या क्या लीला करनी है,यह भी तो निश्चित करना है। अंततः उसका भी रास्ता उन्हें मिल ही गया। जैसा श्रीहरि चाहते हों वैसा होना भला कभी असंभव हो सकता है? नहीं, कदापि नहीं।
        ब्रह्मा के एक मानस पुत्र हैं, नारद।नारद सदैव करतल में वीणा लिए "नारायण नारायण" का जाप करते रहते हैं। वे स्वच्छंद रूप से तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं, कहीं कोई रोकने टोकने वाला नहीं। तीन लोक को चौदह भागों में विभाजित कर दिया गया है जिन्हें भुवन कहा जाता है।तीन लोक हैं-
1.पाताल लोक ( अधोलोक ): इस लोक में राजा बलि अमर है | यह वरदान उन्हें विष्णु ने दिया था | विष्णु पुराण के अनुसार सात प्रकार के पाताल लोक होते हैं। यहा  दैत्य, दानव, यक्ष और बड़े बड़े नागों की जातियां वास करतीं हैं।
2.भूलोक ( मध्यलोक ): यह पृथ्वी है जिसमे मनुष्य जीव जन्तु आदि निवास करते है |
3.स्वर्गलोक(उच्चलोक) : यहा देवताओ के राजा इंद्र , सूर्य देवता , पवनदेव , चन्द्र देवता , अग्नि देव , जल के देवता वरुण , देवताओ के गुरु बृहस्पति, अप्सराये आदि  निवास करती है | यहां हिन्दू देवी-देवताओं का वास है |
इन लोको को भी 14 भागों  में बांटा गया है। इन 14 भागों को भुवन भी कहा जाता है। ये चौदह भुवन हैं -
1. सत् लोक 2. तपोलोक 3. जनलोक 4. महलोक 5. ध्रुवलोक 6. सिद्धलोक 7. पृथ्वीलोक 8. अतललोक 9. वितललोक10. सुतललोक 11.तलातललोक 12. महातललोक 13. रसातललोक और 14. पाताललोक।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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