रामकथा-49
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं
ते न परहिं भव कूपा।।
राम जन्म का चरित्र जो कोई भी मनुष्य गाता है, वह उस परम पद को प्राप्त कर लेता है, जिसको प्राप्त कर लेना ही इस जीवन का एक मात्र उद्देश्य है। परम पद पाने का अर्थ है, जीवन मुक्त हो जाना।यहां आकर एक प्रश्न खड़ा होता है कि क्या केवल प्रभु के चरित्र का गान ही मुक्ति के लिए पर्याप्त है? नहीं, हम सब गान का अर्थ मुंह से उच्चारित शब्दों से ले रहे हैं। मुंह से उच्चारित शब्द अगर मुक्त कर सकते तो संसार के सभी पिंजरे में बंद तोते कभी के मुक्त हो गए होते। वे भी तो पिंजरे के बंधन में जीते हुए राम राम बोलते रहते हैं। राम का चरित्र गाने का अर्थ केवल बोलने की क्रिया से ही न लें, वह क्रिया तो एक आडंबर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।जब राम का चरित्र आप अपने जीवन में उतार लेते हैं,तब आपके भीतर से जो स्वर फूटते हैं, वास्तव में वही उन प्रभु के चरित्र का गान है। इस गान में आपकी जिव्हा साथ दे अथवा नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। केवल भीतर से उठने वाला स्वर ही आपको आनंदित कर सकता है अन्यथा एक तोते और आपमें कोई अंतर नहीं है।
राम के चरित्र को अपनाने का अर्थ है स्वयं के जीवन को राम के जीवन जैसा बना लेना है।राम साक्षात श्रीहरि हैं जो कि वैकुंठ के वासी है। वैकुंठ इस ब्रह्मांड से अन्यत्र कोई स्थान नहीं है। हम हाथ उठाकर ऊपर की ओर संकेत अवश्य करते हुए कह देते हैं कि वो ऊपर बैठा सब कुछ देख रहा है। कोई नहीं है वैकुंठ यहां से ऊपर।वैकुंठ का अर्थ है, बिना कुंठा (frustration) का जीवन। कुंठा पैदा होती है मन चाहा न होने के कारण अर्थात कामनाएं ही कुंठाओं की जननी है। वैकुंठ अर्थात जिसके भीतर कोई कामना नहीं है।अतः जिसके जीवन में कुंठा नहीं है, उसके लिए यहीं इस संसार में ही वैकुंठ है। इसी को हरि पद पाना कहते हैं। जिसके जीवन में कुंठाएं भरी पड़ी है, उसके लिए यह संसार ही एक कुआं है अर्थात भवकूप। कुआं भी इतना गहरा की मेंढक की तरह छलांग पर छलांग लगाते रहो, बाहर निकल नहीं पाओगे, इस जन्म में ही क्या अनंत जन्मों में भी नहीं।आप भगवान राम के जीवन को देख लीजिए, न कोई कामना न कोई कुंठा। उनके जैसा जीवन जो मनुष्य जीने लग जाता है वही हरि पद का अधिकारी हो सकता है।जिसके मन में कोई कामना नहीं है, उसका मन ही वैकुंठ है और वहीं परमात्मा भी निवास करते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं
ते न परहिं भव कूपा।।
राम जन्म का चरित्र जो कोई भी मनुष्य गाता है, वह उस परम पद को प्राप्त कर लेता है, जिसको प्राप्त कर लेना ही इस जीवन का एक मात्र उद्देश्य है। परम पद पाने का अर्थ है, जीवन मुक्त हो जाना।यहां आकर एक प्रश्न खड़ा होता है कि क्या केवल प्रभु के चरित्र का गान ही मुक्ति के लिए पर्याप्त है? नहीं, हम सब गान का अर्थ मुंह से उच्चारित शब्दों से ले रहे हैं। मुंह से उच्चारित शब्द अगर मुक्त कर सकते तो संसार के सभी पिंजरे में बंद तोते कभी के मुक्त हो गए होते। वे भी तो पिंजरे के बंधन में जीते हुए राम राम बोलते रहते हैं। राम का चरित्र गाने का अर्थ केवल बोलने की क्रिया से ही न लें, वह क्रिया तो एक आडंबर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।जब राम का चरित्र आप अपने जीवन में उतार लेते हैं,तब आपके भीतर से जो स्वर फूटते हैं, वास्तव में वही उन प्रभु के चरित्र का गान है। इस गान में आपकी जिव्हा साथ दे अथवा नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। केवल भीतर से उठने वाला स्वर ही आपको आनंदित कर सकता है अन्यथा एक तोते और आपमें कोई अंतर नहीं है।
राम के चरित्र को अपनाने का अर्थ है स्वयं के जीवन को राम के जीवन जैसा बना लेना है।राम साक्षात श्रीहरि हैं जो कि वैकुंठ के वासी है। वैकुंठ इस ब्रह्मांड से अन्यत्र कोई स्थान नहीं है। हम हाथ उठाकर ऊपर की ओर संकेत अवश्य करते हुए कह देते हैं कि वो ऊपर बैठा सब कुछ देख रहा है। कोई नहीं है वैकुंठ यहां से ऊपर।वैकुंठ का अर्थ है, बिना कुंठा (frustration) का जीवन। कुंठा पैदा होती है मन चाहा न होने के कारण अर्थात कामनाएं ही कुंठाओं की जननी है। वैकुंठ अर्थात जिसके भीतर कोई कामना नहीं है।अतः जिसके जीवन में कुंठा नहीं है, उसके लिए यहीं इस संसार में ही वैकुंठ है। इसी को हरि पद पाना कहते हैं। जिसके जीवन में कुंठाएं भरी पड़ी है, उसके लिए यह संसार ही एक कुआं है अर्थात भवकूप। कुआं भी इतना गहरा की मेंढक की तरह छलांग पर छलांग लगाते रहो, बाहर निकल नहीं पाओगे, इस जन्म में ही क्या अनंत जन्मों में भी नहीं।आप भगवान राम के जीवन को देख लीजिए, न कोई कामना न कोई कुंठा। उनके जैसा जीवन जो मनुष्य जीने लग जाता है वही हरि पद का अधिकारी हो सकता है।जिसके मन में कोई कामना नहीं है, उसका मन ही वैकुंठ है और वहीं परमात्मा भी निवास करते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
No comments:
Post a Comment