Thursday, April 4, 2019

रामकथा-39-रामावतार के हेतु-

रामकथा-39-रामावतार के हेतु-
        मध्य में स्थित पृथ्वीलोक पर नारदजी की समाधि और उसका प्रभाव उच्च लोक स्वर्ग तक। इंद्र को आभास हुआ जैसे कि उसका सिंहासन डोल रहा हो। "हाँ, वैसे तो नारदजी स्वर्ग में कभी भी आ जा सकते हैं,परंतु कहीं ऐसा तो नहीं है कि वे स्वर्ग का राज्य ही मुझसे छीन लेना चाहते हों?" इंद्र का चिंतामग्न होना ही संकेत कर रहा है कि उनके मन में कोई गहन चिंतन चल रहा है। जिसके मन में जैसा होता है, वह अपनी सोच के अनुसार दूसरे के मन में भी वैसा ही होने का अनुमान लगा लेता है। हम बुरे हैं तो सामने वाला हमें बुरा नज़र आएगा ही।देश की व्यवस्था खराब है,इसका एक ही अर्थ है कि हम स्वयं खराब हैं। जब हम स्वयं अपने आपको सुधार लेंगे तो देश की व्यवस्था भी अपने आप सुधर जाएगी।
      इंद्र के चिंतन ने उसे विवश कर दिया, नारदजी की समाधि को तोड़ने के लिए । एक ही रास्ता है, इंद्र के समक्ष कि कामदेव का उपयोग किया जाए। आदेश मिलते ही चला पड़ा कामदेव भू लोक की ओर, साथ में रंभा आदि अप्सराओं को लेकर। कुछ ही समय में कामदेव आ पहुंचा पृथ्वी लोक, निकाले अपने तरकश तीर और एक एक कर छोड़ने लगा नारदजी पर।समाधिस्थ नारदजी के समक्ष सुगंधित द्रव्यों का लेप की हुई अप्सराएं विविध प्रकार के नृत्य-गान कर रही हैं। परंतु सभी प्रयास विफल। यह क्या, नारदजी की अखण्ड समाधि पर किसी भी प्रयास का कोई प्रभाव नहीं।आज "नारायण कवच" ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि इस कवच को पहन लेने वाले को कोई भी तीर घायल नहीं कर सकता।नारदजी ने हजारों वर्षों से "नारायण कवच" को धारण कर रखा था, भला कामदेव के तीर उनके हृदय को बिना नारायण की इच्छा के कैसे भेद पाते। निराश होकर कामदेव ने नारदजी के समक्ष हार स्वीकार कर ली।
सीम कि चाँपि सकइ कोइ तासू।
बड़ रखवार रमापति जासू।।1/128/8।।
        नारदजी को नारायण पर श्रद्धा और विश्वास था,इसलिए नारायण स्वयं उनके कवच बने। हम दिन भर तो मिलने जुलने वाले से "नारायण नारायण" कह कर मिलते हैं परंतु यह नाम हमारे लिए केवल एक तोता रटन्त बन कर रह गया है। नारायण बोलने का अर्थ है, आपके भीतर बैठे नारायण को मैं प्रणाम करता हूँ। जिस दिन इस बात को हम अपने भीतर तक उतार लेंगे, यह नाम  हमारे लिए भी "नारायण कवच" बन जायेगा।फिर जिस किसी का भी हम नारायण कहकर अभिवादन करेंगे, वह शुद्ध अंतर्मन से ही होगा, दिखावे के तौर पर नहीं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

1 comment:

  1. अंतिम पैराग्राफ में लिखा वाक्य ही सत्य है , दिखावा नहीं सिर्फ अपने भीतर मौजूद राम को जागा लो तो पूरा जगत राममय हो जाएगा वैसा ही नज़र आएगा

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