रामकथा-47-अयोध्या की ओर-
अयोध्या में सूर्यवंश का शासन है। रघुवंश की चौथी पीढ़ी के राजा दशरथ अभी सत्तासीन हैं। उनके तीन महारानियाँ हैं-कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा। राजा दशरथ पूर्वजन्म में वही मनु और शतरूपा थे, जिन्होने श्रीहरि जैसा पुत्र तपस्या के फल स्वरूप मील वरदान में मांगा था। श्रीहरि अपने जैसा पुत्र कहाँ से लाते? हम अपने जीवन में इतनी अधिक आसक्तियों, अधूरी कामनाओं और कर्मों से भरे होते हैं कि श्रीहरि के समकक्ष तो क्या, दूर दूर तक इनके आसपास तक पहुँचने की संभावना तक नहीं होती।ऐसे में भला श्रीहरि वर में अपने जैसा पुत्र देने का आश्वासन दे भी कैसे सकते थे?इसीलिए परमात्मा ने तुरंत ही कह दिया कि मेरे जैसा पुत्र कहाँ से लाऊं, मुझे ही आपका पुत्र बनकर आना होगा।
तीन तीन महारानियाँ होते हुए भी राजा दशरथ संतान सुख से अभी तक वंचित हैं। आखिर अपनी व्यथा एक दिन मुनि वसिष्ठ के समक्ष व्यक्त कर दी। पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण करने के लिए यज्ञ और अनुष्ठान संपन्न किया गया। यज्ञ में रखे पात्र के जल को महारानियों को पीने के लिए दिया गया।तीनों रानियों ने प्रसन्नतापूर्वक जल ग्रहण किया। समय पाकर तीनों रानियां गर्भवती हुई। समय अपनी गति से दौड़ा चला जा रहा था।सभी रघुवंश के उत्तराधिकारी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दशरथ कौशल्या को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं है कि स्वयं श्रीहरि उनके घर पुत्र बनकर अवतरित होने वाले हैं।उनको तो केवल अपने वंश के नए उत्तराधिकारी के आने का इंतज़ार है जबकि देवतागण, धरा,ब्रह्माजी, ऋषि मुनि सभी आतुरता से अयोध्या की ओर देख रहे हैं। देखे भी क्यों नहीं, आखिर उनके रक्षक, जगत के पालनहार अवतार जो लेने वाले हैं।
महारानियों के गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने की ओर अग्रसर है। अंततः वह समय भी आ ही गया। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हुई, किसी भी समय राजा दशरथ को शुभ समाचार मिल सकता है। अवध को यह अवधि बड़ी धीमी गति से चलती नज़र आ रही है।सत्य है, प्रतीक्षा में समय की गति मंद हुई प्रतीत होती ही है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अयोध्या में सूर्यवंश का शासन है। रघुवंश की चौथी पीढ़ी के राजा दशरथ अभी सत्तासीन हैं। उनके तीन महारानियाँ हैं-कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा। राजा दशरथ पूर्वजन्म में वही मनु और शतरूपा थे, जिन्होने श्रीहरि जैसा पुत्र तपस्या के फल स्वरूप मील वरदान में मांगा था। श्रीहरि अपने जैसा पुत्र कहाँ से लाते? हम अपने जीवन में इतनी अधिक आसक्तियों, अधूरी कामनाओं और कर्मों से भरे होते हैं कि श्रीहरि के समकक्ष तो क्या, दूर दूर तक इनके आसपास तक पहुँचने की संभावना तक नहीं होती।ऐसे में भला श्रीहरि वर में अपने जैसा पुत्र देने का आश्वासन दे भी कैसे सकते थे?इसीलिए परमात्मा ने तुरंत ही कह दिया कि मेरे जैसा पुत्र कहाँ से लाऊं, मुझे ही आपका पुत्र बनकर आना होगा।
तीन तीन महारानियाँ होते हुए भी राजा दशरथ संतान सुख से अभी तक वंचित हैं। आखिर अपनी व्यथा एक दिन मुनि वसिष्ठ के समक्ष व्यक्त कर दी। पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण करने के लिए यज्ञ और अनुष्ठान संपन्न किया गया। यज्ञ में रखे पात्र के जल को महारानियों को पीने के लिए दिया गया।तीनों रानियों ने प्रसन्नतापूर्वक जल ग्रहण किया। समय पाकर तीनों रानियां गर्भवती हुई। समय अपनी गति से दौड़ा चला जा रहा था।सभी रघुवंश के उत्तराधिकारी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दशरथ कौशल्या को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं है कि स्वयं श्रीहरि उनके घर पुत्र बनकर अवतरित होने वाले हैं।उनको तो केवल अपने वंश के नए उत्तराधिकारी के आने का इंतज़ार है जबकि देवतागण, धरा,ब्रह्माजी, ऋषि मुनि सभी आतुरता से अयोध्या की ओर देख रहे हैं। देखे भी क्यों नहीं, आखिर उनके रक्षक, जगत के पालनहार अवतार जो लेने वाले हैं।
महारानियों के गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने की ओर अग्रसर है। अंततः वह समय भी आ ही गया। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हुई, किसी भी समय राजा दशरथ को शुभ समाचार मिल सकता है। अवध को यह अवधि बड़ी धीमी गति से चलती नज़र आ रही है।सत्य है, प्रतीक्षा में समय की गति मंद हुई प्रतीत होती ही है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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