Wednesday, April 10, 2019

रामकथा-45-रामावतार के हेतु-

रामकथा-45-रामावतार के हेतु-
        जय विजय के असुर हो जाने की यात्रा हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप के प्रथम पड़ाव को पार कर रास्ते में प्रतापभानु,अरिमर्दन होते हुए अपने दूसरे पड़ाव रावण कुम्भकरण को पहुँच चुकी है।जहां से उन्हें श्रीहरि एक बार फिर असुर योनि से मुक्त कर  तृतीय पड़ाव शिशुपाल और दन्तवक्त्र होने की ओर धकेलेंगे।असुरों की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि वे तपस्या बहुत करते हैं, देवताओं की तुलना में तो कहीं बहुत ही अधिक। देवता तो केवल भोगों में रत ही रहते हैं, उनके पास हरि को भजने का समय ही कहाँ है? हाँ,पूर्व मानव जन्म के सद्कर्मों का ही यह प्रभाव है कि संकट पड़ने पर सभी देवता श्रीहरि के दरबार में तत्काल ही पहुंच भी सकते हैं।
     देवता भोग में रत रहते हैं और असुर तपस्या कर ब्रह्माजी आदि से वरदान प्राप्त कर अहंकार पाल बैठते हैं।रावण ने आशीर्वाद लिया ब्रह्माजी से कि हम असुर केवल मनुष्य और वानर के अतिरिक्त किसी अन्य से न मारे जाएं। ब्रह्माजी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि असुरों को ऐसा आशीर्वाद को दे देने से कहीं उनका पहला आक्रमण संत पुरुषों, ऋषि मुनियों और देवताओं पर ही तो नहीं हो जाएगा? जो ब्रह्मा जी ने नहीं सोचा वही असुरों ने किया।वर पाकर असुरों ने साधु, ब्राह्मण, ऋषि, मुनि किसी को नहीं छोड़ा और लगे सबका संहार करने। जब दावानल धधकती है तो जंगल में कोसों दूर रहने वाले पक्षी भी चिंतित होकर अपना घोंसला छोड़ देते हैं।ऐसा ही देवताओं के साथ भी हुआ।ऋषि,मुनि, साधु जन,ब्राह्मणों आदि का संहार देखकर देवताओं में चिंता व्याप गई। उन्हें यह सीधा सीधा अपने ऊपर आक्रमण लगा।भोगों में रत रहने के कारण देवता लोग प्रतिरोध करना तक भूल गए थे।इधर ब्राह्मण, ऋषि-मुनि, साधु,संसार के सभी प्राणी राक्षसों से त्रस्त।क्या किया जाए?पहुंच गए ब्रह्माजी के पास। "अरे, मैं भी क्या करूँ?मैंने ही राक्षसों के तप से उपजी प्रसन्नता के अतिरेक में आशीर्वाद दे दिया था।अब तो हम सबका केवल एक ही आश्रय है, श्रीहरि। श्रीहरि को आर्तभाव से पुकारो, वे ही अब कुछ कर सकते हैं।" ब्रह्माजी ने तो इतना कहकर एक बार के लिए अपना पीछा छुड़ा लिया।
          हाँ, इस संसार में सबका आश्रय एक ही तो है, श्रीहरि । परंतु न जाने हमें सुख के दिनों में यह आश्रय क्यों दिखलाई नहीं पड़ता? संकट आया तो श्रीहरि, सुख मिला तो 'मैं, मैंने और मेरा'। श्रीहरि तो परमपिता है, संतान कुपात्र हो सकती है, पिता नहीं।उनको तो अपनी सभी त्रस्त संतानों को संकट से मुक्ति दिलानी ही पड़ती है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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