Saturday, April 6, 2019

रामकथा-41-रामावतार के हेतु-

रामकथा-41-रामावतार के हेतु-
         भूलोक पर पहुंचते ही नारदजी देखते हैं कि एक  नगर में वहां के राजा शीलनिधि  की अति सुन्दर कन्या राजकुमारी विश्वमोहिनी का स्वयंवर हो रहा है | उस नगर में पहुंचकर वे राज निवास गए | शीलनिधि ने अपनी कन्या का हाथ देखकर उनसे उसका भविष्य बतलाने का आग्रह किया | हस्त-रेखा पढ़कर देवर्षि समझ गए थे कि इस कन्या का वर तो श्रीहरि के समान ही कोई होगा | उन्होंने उसके भविष्य फल में से थोड़ा कुछ अपने मन में छुपाकर रख लिया क्योंकि वे तो राजकुमारी को देखते ही उसके रूप में मोहग्रस्त हो गए थे | मोह ग्रस्त होना अर्थात मन में अज्ञान का प्रवेश।उनके मन में उत्कंठा उत्पन्न हुई कि क्यों न स्वयंवर में राजकुमारी उन्हें ही वर के रूप में चुने और जयमाला पहनाये | परन्तु ऐसा होना इतना आसान भी नहीं था | सब कुछ राजकुमारी विश्वमोहिनी के द्वारा किये जाने वाले चयन पर निर्भर था | सुंदर रूप पाने के लिए दीर्घावधि तक कर्म कांड करने की आवश्यकता होती है और इधर स्वयंवर कल ही होना निश्चित था। कर्म कांड के लिए समय कम था।इस प्रकार देवर्षि नारद के सामने केवल एक ही रास्ता था | अभी अभी वे वैकुंठ से लौटे ही तो हैं। क्यों न श्रीहरि से प्रार्थना कर तत्काल ही अपने लिए उनसे उन्हीं जैसा सुंदर रूप माँग लूँ। परमात्मा के स्वरूप को वही उपलब्ध हो सकता है जिसको वे स्वयं उपलब्ध कराना चाहते हों।
      रूपजाल और स्त्री मिलन का मोह कभी कभी इतना सीमा का अतिक्रमण कर जाता है कि व्यक्ति अपना भला बूरा समझता ही नहीं है। कोई भी व्यक्ति चाहे काम को कितनी बार भी जीत चुका हो, उसे काम फिर भी कभी न कभी अपने जाल में फंसा सकता है।
        नारदजी श्रीहरि से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु, आप मुझे आपके जितना सुन्दर रूप दे दीजिये | आप वह सब कुछ कीजिये जिससे राजकुमारी विश्वमोहिनी मुझे ही वर के रूप में स्वीकार करे | श्री हरि ने देवर्षि को कहा कि ‘मैं वह सब कुछ करूँगा जिसमें तुम्हारा हित निहित होगा | तुम्हारे हित के विरुद्ध मैं कुछ भी नहीं करूँगा |’
        श्रीहरि ने यह नहीं कहा कि मैं अपना रूप दे दूंगा, बल्कि यह कहा कि तुम्हारा हित जिस कार्य को करने में होगा, मैं वैसा ही होना निश्चित करूंगा।
कुपथ माग रूज ब्याकुल रोगी।
बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी।।1/133/1।।
   रोगी वैद्य से अपनी रूचि के अनुसार खाने को मांगता है जो कि उसके लिए कुपथ्य है।वैद्य उसको वह वस्तु खाने को कभी नहीं देता है। नारद मुनि को श्रीहरि ने एक दम स्पष्ट कर दिया कि वे क्या करने जा रहे हैं परंतु नारद नहीं समझ सके क्योंकि स्त्री के प्रति पैदा हुई आसक्ति ने देवर्षि  को अंधा जो बना दिया था।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
नववर्ष 2076 सभी के लिए शुभ हो। आप सभी को इस वर्ष की शुभकामनाएं।
।।हरि:शरणम्।।

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