रामकथा-48-रामजन्म-
नौमी तिथि मधुमास पुनीता।
शुक्ल पच्छ अभिजीत हरि प्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा।
प्रगटे अखिल लोक बिश्रामा।।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, दोपहर का समय, न अधिक शीत और न ही अधिक गर्मी, सुहावनी ऋतु, बयार मंद मंद गति से बह रही है, कौशल्या प्रसव पीड़ा में है और श्रीहरि संसार को भयमुक्त करने हेतु प्रकट हो रहे हैं।
"भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी..."
अचानक कौशल्या का कक्ष प्रकाश से भर जाता है।कौशल्या की आंखे चौंधिया जाती है।कौशल्या धीरे धीरे अपने नयन पट खोलती है। सामने चतुर्भुज रूप में साक्षात श्रीहरि दिखलाई पड़ते हैं।चतुर्भुज स्वरूप श्रीहरि का सौम्य रूप है।
"माते, अपने नयन खोलिये, मैं आ गया हूँ आपका पुत्र बनने के लिए। आपने कहा था न कि पुत्र रूप में आने से पहले मैं आपको चतुर्भुज रूप में दर्शन दूँ। आपको स्मरण नहीं है परंतु मैंने अपने कथन को विस्मृत नही होने दिया है।"श्री हरि बोले।
इतना सुनते ही मानो कौशल्या के भीतर पूर्वजन्म की शतरूपा जीवित हो उठी हो। उनकी स्मृति में अपने तपस्या काल की एक एक बात सक्रिय हो उठी। "हाँ, वरदान में आप जैसा ही पुत्र मांगा था मैंने। आपने ही तो कहा था, मेरे जैसा पुत्र आपके लिए कहाँ से लाऊं, मुझे स्वयं को ही आपका पुत्र बनने के लिए आना होगा।मेरी तपस्या सफल हो गई। मैं कृतार्थ हो गई।परंतु यह क्या, मैंने जी भर कर आपके चतुर्भुज रूप के दर्शन कर लिए हैं। अब शीघ्र ही अपनी शिशु लीला प्रारम्भ कीजिये प्रभु।
"सुनी बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा।"
इस प्रकार कौशल्या के वचन सुनकर श्रीहरि गर्भ में प्रवेश कर गए और उनके गर्भ से पुत्ररूप में जन्म ले लिया। कौशल्या के साथ ही साथ कैकयी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया और सुमित्रा भी उसी समय दो पुत्रों की मां बनी। राजा दशरथ की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । वे अपने मुख से कह तो रहे हैं कि मेरे घर साक्षात प्रभु आये हैं परंतु उन्हें अपने पूर्व जन्म की स्मृति अभी तक नहीं है कि वास्तव में साक्षात परमात्मा ही उनके घर पुत्र रूप में अवतरित हुए हैं।
संसार में जब भी कोई शिशु जन्म लेता है निश्चित मानिए, प्रत्येक बार परमात्मा ही अवतरित होते हैं। प्रत्येक जननी कौशल्या ही है, प्रसवपीड़ा में केवल और केवल श्रीहरि का स्मरण ही करे तो भला परमात्मा अवतरित क्यों नहीं होंगे? संसार में जन्म लेकर ही परमात्मा अपने अलग अलग स्वरूप में प्रत्येक शिशु में प्रकट होते हैं।हमारी भेद दृष्टि ही उनको कुछ का कुछ देखने लगती है, परमात्मा तो सबमें समान रूप से विराजमान हैं।
आप सभी को रामजन्म की बधाई और रामनवमी के पुनीत अवसर पर शुभकामनाएं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
नौमी तिथि मधुमास पुनीता।
शुक्ल पच्छ अभिजीत हरि प्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा।
प्रगटे अखिल लोक बिश्रामा।।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, दोपहर का समय, न अधिक शीत और न ही अधिक गर्मी, सुहावनी ऋतु, बयार मंद मंद गति से बह रही है, कौशल्या प्रसव पीड़ा में है और श्रीहरि संसार को भयमुक्त करने हेतु प्रकट हो रहे हैं।
"भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी..."
अचानक कौशल्या का कक्ष प्रकाश से भर जाता है।कौशल्या की आंखे चौंधिया जाती है।कौशल्या धीरे धीरे अपने नयन पट खोलती है। सामने चतुर्भुज रूप में साक्षात श्रीहरि दिखलाई पड़ते हैं।चतुर्भुज स्वरूप श्रीहरि का सौम्य रूप है।
"माते, अपने नयन खोलिये, मैं आ गया हूँ आपका पुत्र बनने के लिए। आपने कहा था न कि पुत्र रूप में आने से पहले मैं आपको चतुर्भुज रूप में दर्शन दूँ। आपको स्मरण नहीं है परंतु मैंने अपने कथन को विस्मृत नही होने दिया है।"श्री हरि बोले।
इतना सुनते ही मानो कौशल्या के भीतर पूर्वजन्म की शतरूपा जीवित हो उठी हो। उनकी स्मृति में अपने तपस्या काल की एक एक बात सक्रिय हो उठी। "हाँ, वरदान में आप जैसा ही पुत्र मांगा था मैंने। आपने ही तो कहा था, मेरे जैसा पुत्र आपके लिए कहाँ से लाऊं, मुझे स्वयं को ही आपका पुत्र बनने के लिए आना होगा।मेरी तपस्या सफल हो गई। मैं कृतार्थ हो गई।परंतु यह क्या, मैंने जी भर कर आपके चतुर्भुज रूप के दर्शन कर लिए हैं। अब शीघ्र ही अपनी शिशु लीला प्रारम्भ कीजिये प्रभु।
"सुनी बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा।"
इस प्रकार कौशल्या के वचन सुनकर श्रीहरि गर्भ में प्रवेश कर गए और उनके गर्भ से पुत्ररूप में जन्म ले लिया। कौशल्या के साथ ही साथ कैकयी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया और सुमित्रा भी उसी समय दो पुत्रों की मां बनी। राजा दशरथ की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । वे अपने मुख से कह तो रहे हैं कि मेरे घर साक्षात प्रभु आये हैं परंतु उन्हें अपने पूर्व जन्म की स्मृति अभी तक नहीं है कि वास्तव में साक्षात परमात्मा ही उनके घर पुत्र रूप में अवतरित हुए हैं।
संसार में जब भी कोई शिशु जन्म लेता है निश्चित मानिए, प्रत्येक बार परमात्मा ही अवतरित होते हैं। प्रत्येक जननी कौशल्या ही है, प्रसवपीड़ा में केवल और केवल श्रीहरि का स्मरण ही करे तो भला परमात्मा अवतरित क्यों नहीं होंगे? संसार में जन्म लेकर ही परमात्मा अपने अलग अलग स्वरूप में प्रत्येक शिशु में प्रकट होते हैं।हमारी भेद दृष्टि ही उनको कुछ का कुछ देखने लगती है, परमात्मा तो सबमें समान रूप से विराजमान हैं।
आप सभी को रामजन्म की बधाई और रामनवमी के पुनीत अवसर पर शुभकामनाएं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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