रामकथा-50
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।1/192।।
कौशल्या के श्रीहरि राम रूप में आये हैं। भरत श्रीहरि के शंख, लखन शेषनाग और रिपुदमन श्रीहरि के पद्म रूप हैं।इस प्रकार श्रीहरि ने त्रेता में अपने भक्तों को अभय करने के लिए और जय विजय जो कि रावण और कुम्भकरण के रूप में असुर हैं, उनको असुर शरीर से दूसरी बार मुक्त करने के लिए अवतार लिया है। चाहे श्रीहरि सभी शक्तियों से युक्त होते हों, उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए मनुष्य रूप में ही अवतरित होना पड़ता है। परमपिता सभी प्रकार की शक्तियों के स्रोत होने के उपरांत भी "न करोति न लिप्यते" हैं और इस बात का पूर्ण रूप से पालन भी करते हैं। इसीलिए उनको इस पृथ्वी पर भक्तों को भयमुक्त करने के लिए अवतार लेना पड़ता है।
श्री हरि के अवतार रूप भगवान श्री राम ने भी मानवोचित व्यवहार करते हुए लीला की है। इस लीला को करने की पृष्ठभूमि अवतरित होने से पहले ही तैयार कर ली गई थी।नारद ने ही उनके त्रेता के अवतरित जीवन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी हालांकि इसको तैयार करने के पीछे श्रीहरि की ही इच्छा थी। वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं साथ ही वे भक्तों के पतन को भी रोकते हैं। श्रीराम के मनुष्य जीवन की लीला अब सनकादिक ऋषियों के द्वारा जय विजय को दिए गए श्राप और परम भक्त नारद द्वारा स्वयं को मिले श्राप के अनुसार चलेगी क्योंकि भक्तों के कथन को भगवान सदैव सत्य ही सिद्ध करते हैं।
भगवान अपनी लीला बाल्य काल से प्रारम्भ करते हैं और ऋषि मुनियों को राक्षसों के भय से मुक्त करते हुए असुरों तक पहुंचकर अपने जय विजय पार्षदों को दूसरी असुर योनि से मुक्त कर अपनी लीला का संवरण करते हैं।
कल समापन कड़ी-
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।1/192।।
कौशल्या के श्रीहरि राम रूप में आये हैं। भरत श्रीहरि के शंख, लखन शेषनाग और रिपुदमन श्रीहरि के पद्म रूप हैं।इस प्रकार श्रीहरि ने त्रेता में अपने भक्तों को अभय करने के लिए और जय विजय जो कि रावण और कुम्भकरण के रूप में असुर हैं, उनको असुर शरीर से दूसरी बार मुक्त करने के लिए अवतार लिया है। चाहे श्रीहरि सभी शक्तियों से युक्त होते हों, उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए मनुष्य रूप में ही अवतरित होना पड़ता है। परमपिता सभी प्रकार की शक्तियों के स्रोत होने के उपरांत भी "न करोति न लिप्यते" हैं और इस बात का पूर्ण रूप से पालन भी करते हैं। इसीलिए उनको इस पृथ्वी पर भक्तों को भयमुक्त करने के लिए अवतार लेना पड़ता है।
श्री हरि के अवतार रूप भगवान श्री राम ने भी मानवोचित व्यवहार करते हुए लीला की है। इस लीला को करने की पृष्ठभूमि अवतरित होने से पहले ही तैयार कर ली गई थी।नारद ने ही उनके त्रेता के अवतरित जीवन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी हालांकि इसको तैयार करने के पीछे श्रीहरि की ही इच्छा थी। वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं साथ ही वे भक्तों के पतन को भी रोकते हैं। श्रीराम के मनुष्य जीवन की लीला अब सनकादिक ऋषियों के द्वारा जय विजय को दिए गए श्राप और परम भक्त नारद द्वारा स्वयं को मिले श्राप के अनुसार चलेगी क्योंकि भक्तों के कथन को भगवान सदैव सत्य ही सिद्ध करते हैं।
भगवान अपनी लीला बाल्य काल से प्रारम्भ करते हैं और ऋषि मुनियों को राक्षसों के भय से मुक्त करते हुए असुरों तक पहुंचकर अपने जय विजय पार्षदों को दूसरी असुर योनि से मुक्त कर अपनी लीला का संवरण करते हैं।
कल समापन कड़ी-
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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