Friday, April 5, 2019

रामकथा-40-रामावतार के हेतु-

रामकथा-40-रामावतार के हेतु-
        थकहार कर मदन नारदजी के पैरों में गिर पड़ा और अपने उद्देश्य के प्रति क्षमा मांगने लगा।विशाल हृदय नारदजी ने कामदेव को क्षमा कर दिया।कामदेव लौट गया। नारदजी को अनुभव हुआ कि उन्होंने काम को जीत लिया है।बड़े खुश हुए।एक तो जीत का प्रभाव और दूसरा पृथ्वी लोक का असर, नारदजी आत्ममुग्ध हो गए। चल पड़े इंद्र लोक और करने लगे आत्म प्रशंसा।वे सभी देवताओं को अपनी उपलब्धि बताते हुए आत्मप्रशंसा कर रहे थे | इंद्र ने भी उनकी प्रशंसा की, आखिर उनको अपने पद की रक्षा जो करनी थी। इंद्रसभा से नारदजी गए कैलाश, शम्भू के पास। वहां पर भी शंकर को अपनी काम विजय का वर्णन करने लगे।भगवान शंकर ने उन्हें चेताया भी कि मुझे तुम जो यह सब काम-विजय की गाथा सुना रहे हो न उसे
श्रीहरि को जाकर मत बताना | देवर्षि तो काम-विजय के मद में चूर थे | भला वे शिव की बात को सुनने वाले कहाँ थे ? पहुँच गए बैकुण्ठ, श्रीहरि के दरबार में और करने लगे उनके समक्ष आत्मप्रशंसा | श्रीहरि ने भी स्वीकार किया कि आप जैसा कोई नहीं है, जो काम को जीत सका हो परन्तु नारद कहाँ रुकने वाले थे | वे तो लगातार अपनी प्रशंसा किये जा रहे थे |
                 परमात्मा की एक बहुत बड़ी विशेषता है | वे संसार में सब कुछ सहन कर सकते हैं परन्तु अपने भक्त का पतन उनको सहन नहीं होता | नारद जी ठहरे भगवान के परम भक्त | सदैव तीनों लोकों में ‘नारायण-नारायण’ का जप करते हुए घूमते रहते हैं | श्रीहरि ने देखा कि अहंकार के कारण मेरे भक्त नारद का पतन हो रहा है, उसको इस प्रकार पतित होने से रोकना होगा | नारद जब बैकुण्ठ में श्री हरि के सामने आत्मप्रशंसा करते-करते थक गए तो उन्होंने परमात्मा को प्रणाम कर पृथ्वी लोक के भ्रमण पर जाने के लिए आज्ञा मांगी | श्री हरि की स्वीकृति पाकर वे ‘नारायण-नारायण’ का जप करते हुए पृथ्वी-लोक के लिए चल पड़े | तुरंत ही वे पृथ्वी लोक में पहुँच भी गए |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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